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Government Bonds: दीर्घावधि सरकारी बॉन्डों से पीछे छूटे कम अवधि के बॉन्ड

निवेशक लंबी अवधि के सरकारी बॉन्डों या जी-सैक के पक्ष में हैं।

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अंजलि कुमारी   
Last Updated- February 19, 2024 | 11:40 PM IST

बैंकिंग व्यवस्था में नकदी की कमी और दर में कटौती देर से होने की उम्मीद के कारण फरवरी में कम अवधि के सरकारी बॉन्ड, लंबी अवधि की प्रतिभूतियों से पीछे छूट गए हैं। बाजार के हिस्सेदारों ने यह जानकारी दी।

निवेशक लंबी अवधि के सरकारी बॉन्डों या जी-सैक के पक्ष में हैं। बीमा कंपनियां और पेंशन फंड 30 साल और इससे ज्यादा अवधि की परिपक्वता वाले सरकारी बॉन्ड इकट्ठा कर रहे हैं।

शुक्रवार को उधारी योजना खत्म होने तक लंबी अवधि की प्रतिभूतियों के लिए प्राथमिकता बनी रही। इसने संस्थागत निवेशकों को द्वितीयक बाजार में अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मजबूर किया।

बैंक अपनी देनदारी प्रोफाइल के मुताबिक कम अवधि के पक्ष में रहे, वहीं पेंशन फंड और बीमा कंपनियों जैसे निवेशकों ने दीर्घावधि बॉन्डों को तरजीह दी है, जिससे उनकी दीर्घावधि देनदारियां पूरी सकें। इसी तरह से मध्य अवधि खासकर 10 से 14 साल की सीमा वाले निवेश के साधनों पर प्राथमिक रूप से ट्रेडिंग में मांग रही।

शुक्रवार को फरवरी में (सोमवार को मुद्रा बाजार बंद थे) 40 साल का सरकारी बॉन्ड 12 आधार अंक गिरकर बंद हुआ। वहीं 5 साल और इससे कम अवधि में परिपक्व हो रहे बॉन्ड की मांग कम रही और 5 साल, 3 साल के सरकारी बॉन्ड इस अवधि के दौरान क्रमशः 1 आधार अंक और 3 आधार अंक बढ़े।

10 साल के सरकारी बेंचमार्क बॉन्ड का यील्ड भी फरवरी में 5 आधार अंक कम हुआ है।

बैंकिंग व्यवस्था में नकदी 5 दिसंबर 2023 से ही कम बनी हुई है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार को नकदी की कमी 2.10 लाख करोड़ रुपये थी।

करूर वैश्य बैंक के कोषागार प्रमुख वीआरसी रेड्डी ने कहा, ‘नकदी की कमी और दर में कटौती की उम्मीद देरी से होने की संभावना के कारण स्थिति अल्पावदि बॉन्डों के अनुकूल नहीं है।’ उन्होंने कहा कि दीर्घावधि बॉन्ड के लिए स्थिति अनुकूल है क्योंकि केंद्र का बजट सकारात्मक रहा है और बाजार जानता है कि दर में कटौती में देरी होगी, लेकिन यह होना निश्चित है। ऐसे में बाजार दीर्घावधि के हिसाब से पोजिशन ले रहा है।

First Published : February 19, 2024 | 11:40 PM IST