प्रतीकात्मक तस्वीर
जेपी मॉर्गन के जीबीआई-ईएम इंडेक्स में भारत सरकार के बॉन्ड आने के बाद पूर्ण सुलभ मार्ग (एफएआर) से अच्छा खासा विदेशी निवेश आने की उम्मीद थी। लेकिन ब़ॉन्ड चरणबद्ध तरीके से इंडेक्स में पहुंचने के बाद भी विदेश से काफी कम निवेश आया है।
जेपी मॉर्गन ने सितंबर 2023 में कहा था कि भारतीय बॉन्ड चरणबद्ध तरीके से उसके इंडेक्स में लाए जाएंगे और यह काम 28 जून 2024 से शुरू होगा। हर महीने 1 फीसदी भार के साथ 31 मार्च 2025 तक इनका पूरा 10 प्रतिशत भार हो जाएगा। विश्लेषकों ने उस समय उम्मीद जताई थी कि इससे 20-25 अरब डॉलर का निवेश आएगा, जो बढ़कर 30 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। लेकिन जून 2024 से मार्च 2025 तक पूर्ण सुलभ मार्ग से कुल 1.09 लाख करोड़ रुपये का विदेशी निवेश आया, जो 14 अरब डॉलर के करीब बैठता है। यह रकम सामान्य स्थिति में अनुमानित आवक से भी 40-45 फीसदी कम रही, जिसका मतलब है कि बाजार ने इन्हें खास तवज्जो नहीं दी।
दिलचस्प है कि इन बॉन्डों में ज्यादातर विदेशी निवेश सितंबर 2023 से जून 2024 के बीच यानी बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होने से पहले आया। उस दरम्यान तकरीबन 92,302 करोड़ रुपये के निवश आया। इससे पता चलता है कि कुछ निवेशकों को पहले से ही इस कदम का अंदाजा था और उन्होंने पहले ही बॉन्ड में रकम लगा दी।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने बताया, ‘शुरू में 20 से 25 अरब डॉलर निवेश का अनुमान लगाया गया था मगर जब ब़ॉन्ड इंडेक्स में शामिल हुए तब अमेरिकी बॉन्डों की यील्ड बढ़ गई। इससे भारत ही नहीं दूसरे उभरते बाजारों पर भी असर पड़ा। वित्त वर्ष 25 की दूसरी छमाही में यील्ड इसीलिए बढ़ी क्योंकि अनुमान था कि अमेरिका में वृद्धि बहुत कमजोर रहेगी। हाल-फिलहाल राजकोषीय चिंताओं और जोखिम से बचने की भावना बढ़ने के कारण धन की निकासी होती रही।’
उन्होंने कहा कि निवेश का बड़ा हिस्सा सितंबर 2023 के बाद आया था। इसका कारण यह था कि कई विदेशी निवेशकों ने जून 2024 में औपचारिक रूप से बॉन्ड शामिल होने से पहले ही पोजिशन ले ली थीं। इस तरह ज्यादातर निवेश पहले ही आ चुका था और इंडेक्स में बॉन्ड शामिल होने के बाद निवेश बहुत सुस्त हो गया।