रुपये पर पड़ रही दोहरी मार आगे हो सकता है इसमें सुधार

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 9:12 PM IST

ऑर्फियस में विदेशी मुद्रा यानी फॉरेक्स के संबंध में पूछताछ बढ़ने के साथ ही बदहवासी में की जा रही पूछताछ में खासी तेजी आई है। हमारे पास भारत और यूरोप के कुछ देशों से इस संबंध में काफी पूछताछ की जा रही है।


ऐसा लगता है कि  जितनी भी पूछताछ की जा रही है वो कहीं न कहीं विदेशी मुद्रा के नुकसान से ही मनोवैज्ञानिक रूप से जुड़ी हुई है। इस बाबत एक सदस्य का कहना है कि अगर मुद्रा की कीमत में कमी आती है तो विदेशी निश्चित तौर पर देश से बाहर निकल जाने में ही भलाई समझेंगे जिससे पेचीदगी और ज्यादा बढ़ जाएगी।

यह चिंता विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से अपने पांव पसारती है। भारत की चिंता ज्यादातर इक्विटी में आई गिरावट को लेकर प्रतीत होती है।

अगर यहां इक्विटी औंधे मुंह गिरती है और बड़ी ब्लू चिप कंपनियां दिवालिया होकर सूचकांक से बाहर होती है तो इसका असर मुद्रा पर जरूर पड़ेगा क्योंकि इससे देश में अविश्वास का माहौल बन जाता है।

इसके बाद एक ओर तो हम इसके पीछे संभावित कारणों पर विचार करते हैं और दूसरी ओर समय के हिसाब से यह बिल्कुल समझ से परे होती है। जैसा कि हमने पिछले कई मौकों पर देखा है, इक्विटी बाजार और करेंसी में गिरावट आम तौर पर साथ-साथ आती है।

तेजी से उभरते कई बाजारों में इक्विटी बाजार में गिरावट तकरीबन 15 महीने आई थी, जबकि भारत में 12 महीने पहले ऐसा हुआ। मुद्राओं में गिरावट आने में लगभग इतना ही समय लगता है।

जब नौकरियां कम होने लगें, खातों में धोखाधड़ी दिखने लगे और अरबपतियों की हालत खराब होने लगे तो इसका संकेत यही होता है कि सेंटिमेंट चरम पर पहुंच चुके हैं।

हमें यह भी समझना चाहिए कि एकाउंटिंग से जुड़ी धोखाधड़ियों का खुलासा कभी भी ऐसे समय में नहीं होता है जब बाजार शिखर पर हो।

ऐसे घोटालों की पोल तो तब ही खुलती है जब बाजार निचले स्तर पर होता है। इधर, सोने और कच्चे तेल में भी कारोबार तेजी से बदल रहा है। अगले चार सालों में उम्मीद है कि डॉलर की स्थिति में ठोस बदलाव आएगा। डॉलर के मुकाबले रुपये में भी खासी मजबूती आने के आसार हैं।

हो सकता है कि हम जो उम्मीद पाले बैठे हैं हालात वैसे न बन पाएं, तो ऐसे में हमें समीक्षा के लिए भी तैयार रहेंगे। जब नुकसान हो रहा हो तो शांति बनाए रखना, यानी विचलित नहीं होना आसान नहीं होता है। यही वजह है कि ऐसे समय के वित्तीय योजनाकारों से अधिक जरूरत मनोवैज्ञानिकों की होती है।

राजू ने सत्यम मामले में आगे बढ़ते हुए फर्जीवाड़े को स्वीकार किया और इससे कंपनी को मिला गोल्डन पीकॉक अवार्ड छिन गया और साथ ही कंपनी को निफ्टी पर ब्लू चिप कंपनी का जो दर्जा मिजा था, वह भी खत्म हो गया, पर कम से कम एक सुकून तो हमारे साथ है कि राजू ने रॉड ब्लैगोजेविक की तुलना में घोटाले को जल्दी स्वीकार कर लिया।

अब सत्यम निदेशक मंडल में सरकार की भागीदारी पर सबकी नजरें टिकीं हैं।

First Published : January 11, 2009 | 9:31 PM IST