मैं अगले एक साल में शादी करने जा रहा हूं। इसके लिए मैं बचत खाते में पैसा रखने के बजाय हर महीने एक तय रकम बचाना चाहता हूं।
मैं बिना जोखिम वाली योजनाओं में एक साल के लिए निवेश करना चाहता हूं, सबसे बेहतर कौन सा होगा?
राज अभिषेक
एक साल की लघु अवधि के निवेश के लिए आपको बैंक में रिकरिंग डिपॉजिट पर विचार करना चाहिए। यह इसलिए भी बेहतर रहेगा क्योकि आप अपना निवेश बिना जोखिम चाहते हैं यानी कोई झंझट नहीं चाहते।
इस तरह का रिटर्न रिकरिंग डिपॉजिट से और शार्ट टर्म डेट फंड से ही आ सकता है लेकिन पहले वाले में पूंजी ज्यादा सुरक्षित होगी और रिटर्न की (ब्याज) भी गारंटी होगी जबकि बाद वाले में ऐसी कोई गारंटी नहीं होगी।
ब्याज दर आकर्षक होने की वजह से मैंने पिछले कुछ महीनों में बैंक की एफडी में पैसा डाला है।
अब जबकि एफडी की दरें घट रही हैं, मैं म्युचुअल फंड में भी निवेश चाहता हूं और मीडियम से लांग टर्म (पांच साल से ऊपर) के लिए ऋण योजनाओं में निवेश करना चाहता हूं।
चूंकि बाजार में कई तरह के डेट फंड हैं जैसे गिल्ट पंड, एमआईपी, एफएमपी, लिक्विड फंड, शार्ट या मीडियम या लांग टर्म फंड, आप कौन से फंड की सलाह देंगे।
क्या इस निवेश से मुझे बैंक की एफडी जिसमें कोई जोखिम नहीं, से बेहतर पोस्ट-टैक्स (कर पश्चात) रिटर्न मिलेगा।
क्या डेट फंड में एसआईपी का विकल्प चुनना एकमुश्त निवेश से बेहतर होगा? क्या इन फंडों में एंट्री लोड होता है और क्या बिना एजेंट के सीधे फंड में निवेश से यह लोड बच जाएगा?
अंकुर
पांच साल की अवधि के लिए आप मीडियम टर्म के डेट फंड में निवेश की सोच सकते हैं। अच्छी रेटिंग वाला इनकम फंड जिसका ट्रैक रिकार्ड ठीक हो, उसे भी चुना जा सकता है।
डेट फंड (लांग टर्म) एफडी के मुकाबले ज्यादा टैक्स एफीशियंट और लिक्विड होते हैं। बैंक एफडी से मिलने वाला ब्याज कर की गणना के लिए इनकम में जोड़ दिया जाता है, यह निवेशक के टैक्स स्लैब के मुताबिक किया जाता है।
दूसरी ओर लंबी अवधि के डेट फंड से मिलने वाला रिटर्न, यानी जो एक साल से ज्यादा का हो, लांग टर्म कैपिटल गेन माना जाता है।
डेट फंड के निवेशक लांग टर्म कैपिटल गेन के मामले में इंडेक्सेशन का लाभ ले सकते हैं जो टैक्स की लायबिलिटी भी कम करेगा। लांग टर्म कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन के बिना 11.33 फीसदी की दर से टैक्स लगता है और इंडेक्सेशन के साथ 22.66 फीसदी।
हालांकि डेट फंड बैंक की एफडी की तरह बिना जोखिम वाले नहीं होते। ये फंड बॉन्ड में निवेश करते हैं। लिहाजा उनके पोर्टफोलियो के मुताबिक उनमें क्रेडिट रिस्क और लिक्विडिटी रिस्क होता है। उनमें ब्याज दर जोखिम भी रहता है।
लिहाजा, आप बैंक एफडी में पैसा लगाते हैं या फिर डेट फंड में, यह आपके जोखिम लेने की क्षमता पर निर्भर करता है। एसआईपी इक्विटी फंडों में निवेश का एक सही तरीका है क्योंकि इक्विटी में असेट क्लास के तौर पर ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है।
डेट फंड में एकमुश्त निवेश ही सही रहता है। जहां तक एंट्री लोड से बचने का सवाल है तो बिना किसी एजेंट के सीधे निवेश पर कोई एंट्री लोड नहीं लगता।
मैंने बिड़ला इनकम ग्रोथ फंड में 7.5 लाख रुपए का निवेश किया है और एचडीएफसी इनकम फंड (डिविडेंड) में 2.5 लाख रुपए का निवेश किया है।
मैंने इनमें इसलिए निवेश किया क्योंकि मेरे सलाहकार ने राय दी थी कि अगले तीन महीनों में इनमें 10 से 15 फीसदी का रिटर्न मिल सकता है और कैपिटल पर कोई रिस्क भी नहीं होगा।
लेकिन हाल की गिरावट से मैं काफी चिंतित हूं। आपको अगले 3 से 6 महीने कैसे लगते हैं।
क्या आपको लगता है कि मैं अपनी पूंजी खो सकता हूं? क्या आप हमें किसी खास समय बाहर निकलने की सलाह दे सकते हैं, भले ही हमें एक्जिट लोड देना हो। ऐसे में एक्जिट लोड कितना होगा?
विशाल गुप्ता
रिजर्व बैंक द्वारा हाल में उठाए गए कदम बाजार में नकदी के संकट से निपटने के लिए उठाए गए हैं और सिस्टम में तरलता बढ़ाने की कोशिश है।
हालांकि इससे सरकारी बॉन्ड की कीमतों में रैली आ गई है और इससे हर कोई गिल्ट की ओर आकर्षित हो रहा है। लेकिन यह समय नहीं जब फिक्स्ड इनकम का बाजार सामान्य है।
लिहाजा, डेट बाजार काफी उतार-चढ़ाव भरे दौर की ओर बढ़ रहा है। ऊपर दिए गए दो फंड जो आपके पास हैं, उन्होंने पिछले तीन महीने में दस फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है।
ब्याज दरें कम होने से इन फंडों को फायदा मिला है। हमें यह याद रखना चाहिए कि ब्याज दरें पिछले कुछ समय से गिर रही हैं और हो सकता है ये और गिरें या नहीं गिरें। लेकिन यहां यह जान लेना अहम है कि मूलधन किसी भी घाटे से सुरक्षित नहीं है।
डेट फंड की इन योजनाओं की वैल्यू बदलती ब्याज दरों के साथ बदलती रहती है। लिहाजा, फंड में बने रहा जाए या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप कितना उतार-चढ़ाव झेल सकते हैं।
पीई और पीबी अनुपात क्या होते हैं? आप इन अनुपातों के आधार पर किसी फंड को किस तरह से रेट करते हैं?
सत्यमूर्ति
किसी स्टॉक या शेयर का पीई (प्राइस टु अर्निंग्स) अनुपात बताता है कि कोई निवेश उस कंपनी की एक रुपए की अर्निंग्स के लिए कितना दे सकता है। ऊंचे पीई का मतलब है कि निवेशक उस शेयर से काफी उम्मीदें रखता है।
लेकिन किसी फंड का पीई रेशियो इस फंड के पोर्टफोलियो में शामिल स्टॉक्स के पीई का वेटेड औसत होता है। पीबी (प्राइस टु बुक वैल्यू) अनुपात किसी शेयर की मार्केट वैल्यू और बुक वैल्यू की तुलना करता है।
ऊंची पीबी वैल्यू का मतलब है कि स्टॉक ओवर वैल्यूड है और पीबी अनुपात कम हो तो इसका मतलब है कि स्टॉक अंडरवैल्यूड है। पीबी अनुपात कम होने का यह भी मतलब है कि कंपनी के साथ फंडामेंटली कुछ गड़बड़ है।
किसी फंड के लिए पीबी रेशियो पीई रेशियो की ही तरह निकाला जाता है यानी फंड के पोर्टफोलियो में शामिल सभी शेयरों के पीबी रेशियो का वेटेड औसत।
किसी फंड के पीई और पीबी रेशियो कैश कंपोनेंट को शामिल नहीं करते। लिहाजा, ये रेशियो फंड के संदर्भ में उतने अहम नहीं जितने कि शेयर के संदर्भ में।
फिर भी इन्हें किसी भी फंड के पोर्टफोलियो को समझने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी कैटेगरी के ग्रोथ फंड का पीई और पीबी वैल्यू फंड से ज्यादा होगा।