मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद रियल एस्टेट के क्षेत्र में काफी गिरावट आई। स्थानीय बिल्डरों को मकानों और अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बेचने में काफी दिक्कत पेश आ रही है।
सन 1999 के बाद आई आर्थिक मंदी से रियल एस्टेट क्षेत्र पर दोहरी मार पड़ी।मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच संपत्ति और कर्मचारियों के बंटवारे के मद्देनजर ‘बाबुओं का शहर’ कहे जाने वाले भोपाल में उहापोह की स्थिति सन 2003 तक बनी रही।
सन 2003 के आखिर और 2004 की शुरुआत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में भाजपा की नई सरकारों के गठन के बाद स्थिरता आई और कर्मचारियों को अपना आवास सुनिश्चित करने का निर्णय लेने में आसानी हुई। यहीं से रियल एस्टेट क्षेत्र में वृध्दि, महंगाई और तेजी का दौर शुरु हुआ।भोपाल के एक प्रमुख बिल्डर राज डेवलपर्स के पार्टनर पवन भंडारी के मुताबिक, ‘जब छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ तब निर्माण उद्योग में काफी मंदी का दौर रहा।
भोपाल में जहां जमीन की कीमतें 75 रुपये से लेकर 100 रुपये प्रति वर्गफुट थीं, वहीं अब 300 रुपये प्रति वर्गफुट से कम कीमत में कहीं भी जमीन उपलब्ध नहीं है। वहीं निर्माण लागत जहां 250 रुपये प्रति वर्गफुट थी वह अब 650 रुपये प्रति वर्गफुट से कम में मकान या भवन निर्माण करना नामुमकिन है।’बकौल भंडारी सन 2005 से भोपाल ही नहीं, बल्कि राज्य के लगभग हर खास बड़े शहर और छिंदवाड़ा जैसे कस्बों में भी जमीन, मकान आदि की कीमतों में काफी उछाल आया है।
लगभग 2500 मकानों का निर्माण और तीन बड़े शॉपिंग मॉल तैयार करने वाले भंडारी को आने वाले पांच वर्षों में इस क्षेत्र में और तेजी की उम्मीद है। उनका मानना है कि वृध्दि दर 25-30 प्रतिशत है जो और भी बढ़ सकती है।बेशक भोपाल श्हर में आवास की मांग ज्यादा बढ़ी है, वहीं मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल, भोपाल विकास प्रधिकरण जैसी संस्थाओं ने आम आदमी को सस्ते आवास उपलब्ध कराने के बजाए निजी बिल्डर्स की अपेक्षा अधिक महंगे मकान तैयार करने शुरू कर दिए।
साथ ही साथ न के बराबर सुविधाओं वाले बड़े शॉपिंग परिसर जैसे प्लेटिनम प्लाजा, मेट्रो प्लाजा आदि तैयार किए , जहां आज से तीन वर्ष पहले एक छोटी सी दुकान भी 20 लाख रुपये से कम में उपलब्ध नहीं थी। मध्य प्रदेश गृह निर्माण के आवासीय परिसर (निर्माणाधीन) ‘रिवेरा टाउनशिप’ हमेशा चर्चाओं में रहे हैं, जहां चार बेडरूम वाले मकान की कीमत 22 लाख रुपये थी जो आज चार साल बाद 75 लाख रुपये में भी उपलब्ध नहीं हैं। इस कृत्रिम उछाल के परिणाम स्वरूप निजी भवन निर्माताओं ने भी अपने परिसरों की कीमतों में बढ़ोतरी शुरू कर दी।
आज भोपाल शहर में भले ही 1000 वर्गफुट मकान निजी निर्माता के पास 25 लाख रुपये से कम न हो, लेकिन बैंकाें के पास चौंकाने वाले आंकड़े हैं। भारतीय स्टेट बैंक जो राज्य में सबसे अधिक आवासीय ऋण देती है। अधिकतर ‘टेक ओवर’ कर्जों के मामले निपटाती है। बैंक सूत्रों के मुताबिक, ‘भोपाल शहर में सालाना हम 150 करोड़ रुपये से 200 करोड़ रुपये के कर्ज देते हैं। इनमें से 50 प्रतिशत ‘टेकओवर’ के मामले होते हैं।
निजी बैंकों के रवैये से तंग आकर लोग हमारे बैंक के दरवाजे खटखटाते हैं। जो वास्तविक वृध्दि है वह 25 फीसदी से ज्यादा नहीं है।’बैंक सूत्रों के मुताबिक रियल एस्टेट में अचानक आई तेजी और बैंक ब्याज दरों के बढ़ने से सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की सहयोगी हाउसिंग लोन फाइनैंस कंपनी सेंट बैंक होम फाइनैंस लिमिटेड को बंद करने की नौबत आ गई।
आज यह कंपनी बमुश्किल कोई लोन देती है।जहां एक ओर आवासीय क्षेत्र में तेजी, मंदी फिर तेजी का रुख रहा है, वहीं दूसरी ओर बड़े-बड़े उद्योगपतियों जैसे रिलायंस, आदित्य बिड़ला समूह, ओमेक्स, प्रोजोन लिबर्टी, पार्श्वनाथ आदि ने भी मध्य प्रदेश में बड़े शॉपिंग मॉल्स, विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) में अपनी न सिर्फ दिलचस्पी दिखाई है, बल्कि अपनी परियोजनाओं पर काम में तेजी दिखाई है। रिलायंस ने अचारपुरा जैसे छोटे से गांव में भोपाल के समीप अपना धीरूभाई प्रौद्योगिकी संस्थान खोलने की घोषणा की है, वहीं प्रभातम ने भोपाल और जबलपुर में अपने लगभग 300 करोड़ निवेश के लिए राज्य सरकार से सहूलियतें मांगी हैं।
राज्य विधानसभा में विगत सत्र में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इस बात पर खासी नाराजगी जताई कि राज्य सरकार निवेश सम्मेलनों क ेनाम पर वैज्ञानिक रूप से अपुष्ट परियोजनाओ जैसे बायोडीजल की खेती के नाम पर जमीनों की बंदरबांट में लगी हुई है। कांग्रेस के सदस्यों का कहना था कि भवन और व्यावसायिक परिसरों और विशेषज्ञ आर्थिक क्षेत्र के नाम पर रियल एस्टेट को उद्योग का दर्जा दिया जा रहा है।
पिछले साल इंदौर में आयोजित एक निवेशक सम्मेलन में राज्य सरकार को निवेश के लिए मिले प्रस्तावों में अधिकतर रियल एस्टेट से जुड़े हैं, जिनमें मल्टीप्लेक्स, सेज, सिने प्लेक्स, एंटरटेनमेंट पार्क आदि के प्रस्ताव हैं, जन पर करों में छूट चाही गई है, तो कहीं सस्ती दरों पर छूटी चाही गई है।बीना जैसे छोटे कस्बे में भारत ओमान रिफाइनरी के 10 हजार करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा के बाद, मकानों की कीमतों में जबर्दस्त उछाल आया है।
वहीं विश्व प्रसिध्द ऑटो टेस्टिंग ट्रैक के इंदौर के पास पीथमपुर में आने की घोषणा के (4 हजार करोड़ रुपये का निवेश) के बाद इंदौर शहर में भी मकानों, आवासीय परिसरों व बड़े शॉपिंग मॉल्स में तेजी आई है।भोपाल में आईआईटी, धीरूभाई अंबानी प्रौद्योगिकी संस्थान, न्यू मार्केट क्षेत्र में सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट, जबलपुर में फैशन एवं डिजाइन संस्थान (600 करोड़ रुपये का निवेश) की घोषणा के बाद से आस-पास के छोटे-छोटे कस्बों में भी तेजी आई है।
अचरज की बात यह है कि मध्य प्रदेश में 15 करोड़ हेक्टेयर जमीन है, जिसमें संभवत: 15 लाख हेक्टेयर पर भी रियल एस्टेट उद्योग नहीं है, फिर यह तेजी क्यों है? राज्य देश का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य है फिर भी लागत निर्माण में अचानक बढ़ोतरी क्यों? लौह से भरे छत्तीसगढ़ राज्य को पड़ोसी होने के बाद इस्पात के लिए मारामारी क्यों? क्या इस विकास की दौड़ के बावजूद, चुटकियों में कर्जों का दावा करने वाले बैंकों की मौजूदगी के बावजूद मकानों की किल्लत क्यों? क्या ‘रियल एस्टेट’ वाकई निवेश का क्षेत्र है या एक फिर आवश्यकता मात्र है? बकौल भंडारी, ‘आने वाले पांच सालों में वास्तविक वृध्दि पता चलेगी।’