बीमा नियामक द्वारा किए गए नियामकीय बदलाव और केंद्र के द्वारा बीमा कानून में संशोधन के प्रस्ताव से भारत के बीमा क्षेत्र में नई संभावनाओं का आगाज हो सकता है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के बीएफएसआई इनसाइट समिट में शामिल हुए देश की सामान्य बीमा कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के सकारात्मक माहौल में बीमा कंपनियां भी ग्राहकों की जरूरतों पर आधारित योजनाओं की पेशकश पर जोर दे सकती हैं।
आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस के प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) भार्गव दासगुप्ता ने कहा, ‘पिछले 20 सालों में पहली बार हम केंद्र की तरफ से कई पहल देख रहे हैं और नियामक भी उन क्षेत्रों में पहल करती दिख रही हैं जिन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था। हमारा मानना है कि दीर्घावधि के लिहाज से यह बेहद सकारात्मक है। नियमन की पूरी प्रक्रिया ही नियम पर आधारित है और पहली बार हम सैद्धांतिक आधार पर नियमन की ओर बढ़ रहे हैं। इससे पूरी परिचालन प्रक्रिया में संतुलन बनेगा। मौजूदा दौर में कई तरह के सूक्ष्म नियमन हैं जो खत्म होंगे।’
उनका कहना था कि इस वक्त पूरा जोर बीमा योजनाओं का वितरण बढ़ाने पर है। उन्होंने कहा, ‘बैंक की तरफ से भी काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। अगर बैंक का संपर्क अधिकारी 9 बीमा कंपनियों की योजनाओं को बेच सकता है तब इसकी कोई वजह नहीं बचती है कि किसी एजेंट को ऐसा करने की अनुमति न दी जाए।’ एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ रितेश कुमार ने कहा, ‘हम फिलहाल इंश्योरेंस 4.0 के चरण को देख रहे हैं। हमारे पास सार्वजनिक क्षेत्र का विकल्प है और फिर निजी क्षेत्र भी वर्ष 2000 के बाद जन्मी पीढ़ी (मिलेनियम) से उम्मीद कर रहा है। दुनिया के बीमा क्षेत्र के अनुरूप ही हम खुद को ढालने की कोशिश में लगे हैं और इसकी वजह से नियामकीय बदलाव लाने के साथ ही बीमा कानून में संशोधन के प्रस्ताव किए गए हैं।’
वहीं दूसरी तरफ फ्यूचर जेनेराली इंडिया इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ अनूप राव ने कहा, ‘मुझे लगता है कि कुछ नियमन की वजह से उद्योग भी ग्राहकों पर आधारित योजनाओं की पेशकश करने में सक्षम होंगे। इस वक्त जो भी बदलाव दिख रहे हैं उन सभी पर उद्योग के साथ चर्चा की गई है। बुनियादी रूप से इसके जरिये उन लोगों तक पहुंच बनाने की कोशिश की जा रही है जो लोग पीछे छूट चुके हैं।’ पिछले 20 सालों में सामान्य बीमा के स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। भारत में इसका दायरा तकरीबन 1 फीसदी है जो अन्य दक्षेस देशों की तुलना काफी कम है।
इसी तरह बीमा का दायरा चीन का लगभग दसवें हिस्से तक है जो वैश्विक स्तर के औसत आंकड़े के सामने कहीं नहीं टिकता है। देश में जब भी कोई आपात स्थिति बनती है तब बीमाकर्ताओं द्वारा केवल 10-15 फीसदी घाटे की ही भरपाई की जाती है जबकि बाकी बीमा योजनाओं के दायरे में नहीं आते। इससे यह बात समझ आती है कि देश में सामान्य बीमा का दायरा कितना कम है। हालांकि अगर सकारात्मक पक्ष की बात करें तब पिछले 20 सालों में गैर-जीवन बीमा उद्योग में सालाना 16 फीसदी की चक्रवृद्धि दर देखी है वहीं देश की मौजूदा बाजार कीमत पर आधारित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 12 फीसदी तक की वृद्धि हुई है।
इस क्षेत्र में मौजूदा बाजार कीमत पर आधारित जीडीपी की तुलना में 400 आधार अंकों की वृद्धि हुई है।रिलायंस जनरल इंश्योरेश के सीईओ राकेश जैन का कहना था, ‘पहले दशक में हम खुद की खोज में ही हैं। एक बार जब डी-टैरिफिंग हुआ तब कंपनियों को यह महसूस हुआ कि उन्हें जोखिम की लागत भी तय करनी होगी और इसी वजह से उन्होंने एक बिजनेस मॉडल तैयार करना शुरू कर दिया। डि-टैरिफिंग की प्रक्रिया के साथ ही कीमतों में गिरावट होती है और वर्ष 2017-18 में उद्योग प्रतिभागियों ने यह महसूस किया कि वे कीमतों के मोर्चे पर ज्यादा कमी नहीं कर सकते हैं।
कोविड की वजह से सभी लोगों ने अब जोखिम के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। हम पिछले 20 साल की तुलना में आगे के 20 साल में कुछ अलग तरीके से परिचालन करने वाले हैं। ’वैश्विक स्तर पर बीमा अब जोखिम प्रबंधन और जोखिम सेवा कारोबार की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में भारत को भी ऐसा ही करना होगा। परिचर्चा में शामिल विशेषज्ञों ने कहा कि जोखिम होने पर दावे का भुगतान करने के मुकाबले, बीमा कंपनियां अपने ग्राहकों को काफी मूल्य वर्धित सेवाएं मुहैया करा पाएंगी जिससे जोखिम कम होगा।