महामारी के बाद की दुनिया की जरूरतों पर बात करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि देश में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के आकार के कम से कम चार-पांच बैंक होने चाहिए जो बदलती और बढ़ती आवश्यकताएं पूरी कर सकें।
महामारी से पहले भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण के पीछे अहम कारण बैंकिंग का दायरा बढ़ाना था। सीतारमण ने इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) की सालाना आम बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में कई बैंकों की जरूरत है मगर उससे भी ज्यादा बड़े बैंकों की जरूरत है। मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का और भी एकीकरण करने की योजना है या नहीं।
वित्त मंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था में आ रहे बदलाव को देखते हुए एकीकरण जरूरी है। अर्थव्यवस्था और उद्योग महामारी के बाद जिस तरह वृद्घि के लिए विभिन्न तरीके तलाश रहे हैं, उसे देखते हुए भी यह जरूरी है। इसलिए बैंकों को फौरी और सुदूर भविष्य के बारे में सोचने की जरूरत है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की एकीकरण प्रक्रिया अप्रैल, 2017 में शुरू हुई थी, जब एसबीआई के पांच पांच सहायक बैंकों तथा भारतीय महिला बैंक का विलय उसी बैंक में कर दिया गया था। इसके बाद अप्रैल, 2019 में देना बैंक और विजया बैंक का विलय बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ किया गया।
अप्रैल, 2020 में बड़े स्तर पर एकीकरण हुआ। उस समय पंजाब नैशनल बैंक में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का विलय किया गया। इसके साथ ही कॉर्पोरेशन बैंक और आन्ध्रा बैंक का विलय यूनियन बैंक में तथा इलाहाबाद बैंक का यूनियन बैंक में एवं सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में विलय किया गया। बैंकिंग क्षेत्र में हालिया एकीकरण के तहत 2020 में सिंगापुर के डीबीएस बैंक ने निजी क्षेत्र के लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण किया था।
बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के संदर्भ में वित्त मंत्री ने कहा कि आर्थिक गतिविधियों में सक्रियता वाले कुछ इलाकों में अब भी बैंकिंग सुविधाओं का अभाव है। बैंकों को यह अंतर पाटने के लिए डिजिटल दायरा बढ़ाना चाहिए और सुधार की राह पर अग्रसर देश में सेवाएं सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आईबीए को डिजिटल नेटवर्क के जरिये जिलों में बैंकिंग सुविधाओं की खाई पाटने में अग्रणी भूमिका अदा करनी चाहिए। बैंकों को यह तय करना चाहिए कि कहां बैंक शाखा की जरूरत है और कहां डिजिटल या सीधी मौजूदगी जरूरी है। डिजिटलीकरण से बैंकों की लागत भी बचती है और बैंक सेवाओं के साथ समझौता भी नहीं करना पड़ता है।
बैंक अपने दफ्तर के बगैर भी ग्राहकों को सेवाएं दे सकते हैं। बैंकों के खातों को दुरुस्त करने का जिक्र करते हुए सीतारमण ने कहा कि राष्ट्रीय संपत्ति पुनर्गठन कंपनी और ऋण समाधान कंपनी का गठन किया जा रहा है। ये गैर-निष्पादित आस्तियों का अधिग्रहण करेंगी और उन्हें पुनर्गठित कर बेचेंगी। यह बैड बैंक नहीं है बल्कि बैंकिंग प्रणाली की व्यवस्था है जिसे बैंकों के खाते तेजी से दुरुस्त करने के मकसद से लाया गया है। बैंकों के खातों पर आज बोझ पहले से कम हुआ है जिसके परिणामस्वरूप वे बाजार से पूंजी जुटाने में सक्षम हैं।
