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कर्ज देने में सरकारी बैंक हुए अव्वल

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 11:12 PM IST

इसमें तनिक भी शक नहीं कि  मौजूदा गंभीर वित्तीय संकट का विश्व की अर्थव्यवस्था और इसके तमाम पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है लेकिन भारतीय बैंकिंग क्षेत्र कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।


हाल के कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था में जान फूं कने और बैंकों को अधिक से अधिक नकदी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक ने प्रमुख दरों में भाड़ी कटौती की घोषणा कर चुका है।

इसका नतीजा यह निकला है कि रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए 2 जनवरी 2009 तक के आंकड़ों के अनुसार सरकारी बैंकों के कर्ज मुहैया क राने की रफ्तार में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

इसके उलट निजी और विदेशी बैकों की कर्ज देने की क्षमता में काफी तेज गिरावट देखने को मिली है। इस बाबत सरकारी बैंक के अधिकारियों का कहना है कि सरकारी बैंकों के कर्ज देने की क्षमता और दरों में तेजी का एक मुख्य कारण निजी और विदेशी बैंकों से लोगों के कर्ज लेने के रुझान में कमी आना है।

दिल्ली स्थित एक सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ऐसे लोग जो कुछ समय पहले तक विदेशी और निजी बैंकों से कर्ज ले रहे थे उनके लिए अब इन बैेंकों से कर्ज लेना काफी महंगा हो गया है और इन्हें कर्ज जुटाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

विदेशी से आनेवाले फंडों की कमी और साथ ही शेयर बाजार की दिनों दिन बिगड़ती हालत के कारण सरकारी बैंकों की तरफ आम लोगों का रुझान काफी ज्यादा बढ़ गया है।

जहां तक विदेशी बैंकों के प्रदर्शन की बात है तो निश्चित तौर पर इनका प्रदर्शन वैश्विक स्तर पर बैंकिंग क्षेत्र के कई बड़े दिग्गजों के धराशायी होने के कारण काफी प्रभावित हुआ है।

भारत में अपना कारोबार कर रहे विदेशी बैंकों के कर्ज देने की दर में साल-दर-साल के हिसाब से जनवरी 2008 से लेकर जनवरी 2009 की अवधि के बीच करीब 3.7 फीसदी की गिरावट आई है।

भारतीय बैंक महासंघ के मुख्य कार्यकारी आर रामकृष्णा का कहना है कि कुछ विदेशी बैंकों को अपने ही देशों में गंभीर रूप से फंडों की कमी का सामना करना पडा रहा है। रामकृष्णा ने कहा कि इन बैंकों को फंडों की सख्त जरूरत है जबकि फंडों के स्रोत फिलहाल कहीं दिखाई नहीं पड रहे हैं ।

जिस वजह से ये बैंक भारत में कर्ज मुहैया करा पाने में अपने को अक्षम पा रहे हैं। निजी बैंकों का कमोबेश ऐसा ही हाल है इनमें से कई बैंकों, जिसमें इस क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक आईसीआईसीआई का नाम भी शुमार है, की परिसंपत्ति आधार में काफी कमी आई है।

इस बाबत एक बैंकर ने कहा कि अब निजी क्षेत्र के बैंक गैर-निष्पादित धनों पर नियंत्रण रखने के लिए अपने कारोबार को संयमित कर रहे हैं और ज्यादा कर्ज देने की बजाय सुरक्षात्म रवैया अपनाए हुए हैं।

सरकारी क्षेत्र के कुछ अधिकारियों का कहना है कि सरकारी दबाव के कारण भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कर्ज देने की रफ्तार में तेजी आई है।

विभिन्न क्षेत्रों को फंड उपलब्ध कराने के लिए सरकारी दबाव के कारण इन बैंकों को अपनी उधारी दरों में 150 आधार अंकों तक की कमी करनी पडी है जबकि इसकी तुलना में निजी और विदेशी बैंकों ने अपनी उधारी दरों में मात्र 50 आधार अंकों की कटौती की है।

First Published : January 27, 2009 | 9:27 PM IST