पिछले सप्ताह जयप्रकाश एसोसिएट (जेपीए) का शेयर दिन केकारोबार के दौरान 52 सप्ताह के सबसे निचले स्तर तक पहुंच गया। जब से कंपनी बांबे स्टॉक एक्सचेंज में इस साल मार्च में सूचीबध्द हुई है तब से कंपनी के शेयरों में 46 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि इस दौरान सेंसेक्स में मात्र 15.5 प्रतिशक की गिरावट आई है।
कंपनी का प्रदर्शन इस लिहाज से आश्चर्यजनक रहा है कि पिछले साल कंपनी का प्रदर्शन बेहतर रहा था और इसकी बिक्री में 14.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि मुनाफे में 47 प्रतिशत की तेजी आई थी। निवेशकों को जो बात सबसे ज्यादा परेशानी में डाल रही है वह है सीमेंट का कारोबार जिसका कि योगदान कंपनी के राजस्व में लगभग आधा होता है।
पिछले साल जेपीए ने पूंजी पर 3,080 करोड रुपये खर्च किए जिसमें कि तीन चौथाई या 2,270 करोड़ रुपये सीमेंट की क्षमता बढाने पर खर्च किए गया। जेपीए के इस साल के अंत तक क्षमता को दोगुना कर 20 मिलियन टन तक करने की योजना है।
हालांकि उद्योग जगत केजानकारों का मानना है कि सीमेंट की मांगों धीरे-धीरे कमी आ रही है और अगले तीन सालों में इसके मात्र 10-12 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढने के आसार हैं।
अत: सीमेंट की सुस्त आपूर्ति में वित्त वर्ष 2008-11 के बीच 20-22 प्रतिशत की बढोतरी होने के आसार हैं जिससे कि कीमतों में अगले 12-15 महीनों में 8 से 12 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
जून 2008 को समाप्त हुई तिमाही में जेपीए का सीमेंट उत्पाद साल-दर-साल के हिसाब से 13 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ा जबकि वॉल्यूम में 11 प्रतिशत और रियलाइजेशन में 1.7 प्रतिशत की बढोतरी हुई।
सेगमेंट मार्जिन साल-दर-साल के हिसाब से 280 आधार अंकों की गिरावट के साथ 30.3 प्रतिशत रहा। जेपीए का निर्माण कारोबार के हाइड्रोपावर प्रोजक्ट (4,290 मेगावाट) के शुरू करने से बेहतर करने की संभावना है। वर्तमान में यह 700 मेगावाट के हाइड्रोपावर का इस्तेमाल कर रहा है और ऑर्डर बुक करीब 12,000 करोड रुपये है।
जून 2008 की तिमाही में निर्माण और इंजीनियरिंग 17 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ा जबकि सेगमेंट मार्जिन साल-दर-साल के हिसाब से 180 आधार अंक चढ़कर 21 प्रतिशत रहा।
हाल में ही जेपीए केप्रवर्तकों ने अपने आप को 120 मिलियन वारंट का आवंटन कि या है जोकि पूर्णरूप से डायल्यूटेड इक्विटी का 9 प्रतिशत है और यह 397 रुपये प्रति शेयर की हिसाब से आवंटित किए गए जनवरी 2008 के आवंटन केअतिरिक्त है।
रैनबैक्सी-कड़वी गोली
भारत की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी रैनबैक्सी (जिसका कुल कारोबार 6,692 करोड़ रुपये है) अगले कुछ समय तक पंता साहिब और देवास में बनने वाली अपनी 30 जेनरिक दवाओं को अमेरिकी बाजार में नहीं बेच सकेगी।
हालांकि इन दवाओं के बारे में एक बिल्कुल ठीक ठीक आंकड़े तो उपलब्ध नही हैं पर यह अनुमानित है कि अमेरिकी बाजार में रैनबैक्सी के कुल दवाओं की बिक्री में 30 से 40 फीसदी हिस्सेदारी इन दवाओं की है।
जबकि कंपनी की कुल दवाओं की बिक्री में 10 फीसदी की भागीदारी इन दवाओं की है। नतीजतन मौजूदा परेशानी से कंपनी के मुनाफे पर असर पर सकता है।
लेकिन बात यहीं पर खत्म नही होती क्योंकि रैनबैक्सी की दवा सोट्रैट जिसकी अमेरिकी बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है उसकी निकासी की जानी है। जाहिर तौर पर कंपनी के लिए यह एक सबसे तगड़ा झटका साबित होगा।
क्योंकि इन उत्पादों से बनने वाले परिचालन अंतर खासे आकर्षक साबित हो सकते हैं हालांकि घरेलू बिक्री में ये अंतर ज्यादा साबित हो सकते हैं। यहां रैनबैक्सी जैसी दवा कंपनियों के लिए खुशी की सौगात इनके दवाओं को कुछ समय तक बिक्री के लिए स्वीकृति दिया जाना।
क्योंकि जब इन दवाओं को बिक्री की स्वीकृति मिल जाती है तो फिर रैनबैक्सी को अपना कारोबार और मजबूत करने में मदद मिलती।
मालूम हो कि रैनबैक्सी की अमेरिकी बाजार में वित्तीय वर्ष 2007 की बिक्री कुल 1,600 करोड़ रुपये की थी और इस साल इसके 15 से 20 फीसदी की दर पर बढ़ने की उम्मीद है।
कंपनी अमेरिका में कुल 130 उत्पादों की बिक्री करता है और इस जून तिमाही तक अमेरिका एवं कनाडा के बाजारों में बिक्री में 18 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है जो किसी और देश में कंपनी के दवा बिक्री में हुए इजाफे से कहीं ज्यादा है।
इसके अलावा कंपनी को अपने दूसरे उत्पादों का यहां के बाजार में विपणन में करने की स्वीकृति है। कंपनी इसके साथ ही 2009 तक वेलासाइक्लोविर(एंटी-हर्पीस) जबकि 2010 तक सुमैट्रिप्टन (एंटी-माइग्रेन) को क्रमश: लांच एवं बनाने की तैयारी में है। इन सबके बावजूद यह साल रैनबैक्सी के लिए काफी बेहतर साबित नही हुआ है।
अमेरिका एवं कनाडा में एक तगड़ा उपभोक्ता आधार होने के बावजूद भी इनकी दवाएं छिट-पुट कारोबार ही कर सकी हैं। जून तिमाही में इसके कारोबार में पिछली अवधि के मुकाबले 13 फीसदी की गिरावट आई और यह कुल 1,830 करोड़ रुपये के स्तर पर था।
हालांकि कंपनी अपनी ओर से कारोबार को बेहतर रखने की हरसंभव कोशिश कर रही है और ब्रिटेन एवं रोमानिया जैसे उभरते हुए बाजारों में अपनी पकड़ बना रहा है। हालांकि वहां भी इनकी दवाओं की बिक्री में वह रंग नही आ सका है।
बहरहाल कंपनी के शुद्ध मुनाफे में 91 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है जो इसके फॉरेक्स घाटों के कारण दर्ज हुआ है। जबकि कंपनी के द्वारा कर भुगतान के बाद के मुनाफे यानी पीएटी को समायोजित किए जाने के बावजूद भी कंपनी का ट्रांसलेशनल घाटा साल दर साल के आधार पर सपाट ही रहा।