विनिमय दरों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता और कर्जों के डूबने के बढ़ते जोखिम के कारण भारतीय बैंकों ने अब ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) करेंसी डेरिवेटिव बाजार में फॉरवर्ड कांट्रेक्ट को बुक करने के लिए मार्जिन वसूलना करना शुरू कर दिया है।
इन मार्जिन की दर 5-15 फीसदी के बीच होती है जो ग्राहकों की भविष्य में किसी तारीख समय पर खास रकम के भुगतान करने की क्षमता पर निर्भर करता है। हालांकि एक्सचेंज में मार्जिन की वसूली कोई नई बात नहीं है लेकिन इस पूरे घटना पर पैनी नजर रख रहे सूत्रों का कहना है कि ओटीसी में कारोबार करने वाले निर्यातकों को भी अपने बैंकरों को अब मार्जिन का भुगतान करना पड़ेगा।
बकौल सूत्र, बैंकों को इस बात की चिंता खाए जा रही है कि निर्यात के ठेकों के रद्द हो जाने की स्थिति में निर्यातक भविष्य में निश्चित तारीख को मुद्रा में उतार-चढाव के कारण पहले से तय रकम का भुगतान करने में असफल रह सकता है या फिर इसमें देरी हो सकती है।
इस उहापोह की स्थिति से बचने के लिए बैंकों ने मार्जिन की वसूली करनी शुरू कर दी है। उल्लेखनीय है कि फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट के तहत कॉर्पोरेशन और वाणिज्यिक बैंकों के बीच किसी खास समय पर खास रकम के निश्चित दर पर विनिमय को लेकर समझौता होता हैं। इसमें परिपक्वता की अवधि सामान्य तौर पर एक महीने से लेकर एक साल तक की होती है।
जब कोई कंपनी विदेशी मुद्रा के भविष्य में प्राप्ति को लेकर आवश्यकता महसूस करता है तो ऐसी स्थिति में वह कंपनी किसी खास दर पर विनिमय के लिए फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करता है। इससे मुद्रा के विनिमय दरों में आने वाले उतार-चढाव से छुटकारा मिलता है।
फिलहाल केवल एक्सचेंज ही सदस्यों से करेंसी डेरिवेटिव में काउंटर पार्टी रिस्क से बचने के लिए मार्जिन वसूलते हैं। इस बाबत करेंसी फ्यूचर्स कारोबार करने वाले एक बड़े घरेलू एक्सचेंज के प्रमुख ने कहा कि मुद्रा दरों में बढ़ती अनिश्चितताओं के मद्देनजर बैंकों ने भी फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट बुक करने के लिए अपने ग्राहकों से मार्जिन वसूलना शुरू कर दिया है।
…मामला जोखिम का
ओटीसी करेंसी डेरिवेटिव बाजार में होता है रोजाना 34 अरब डॉलर का कारोबार
अभी तक ओटीसी बाजार में नहीं होता था मार्जिन वसूली
मुद्रा दरों और अन्य जोखिम की वजह से बैंक ने उठाया यह कदम