राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेतृत्व वाली सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अपने स्वतंत्र निदेशक खुद नियुक्त करने का अधिकार देने और अन्य संचालन सुधार करने की योजना बना रही है।
5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ निजी और सरकारी बैंकों तथा कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारियों की बैठक में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संचालन में सुधार का मसला अहम था। बैठक में शामिल एक शख्स ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि सरकार पीजे नायक समिति की कुछ सिफारिशों को अमल में लाने की संभावना तलाश रही है। समिति ने मई 2014 में ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इस समिति का गठन भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा बैंक बोर्डों के संचालन की समीक्षा के लिए किया गया था।
उक्त शख्स ने बताया कि सार्वजनिक बैंकों के बोर्डों को गैर-अधिकारी निदेशक (नॉन-ऑफिशियल डायरेक्टर) नियुक्त करने की अनुमति देने पर भी विचार किया जा रहा है। अभी वित्त मंत्रालय का वित्तीय सेवा विभाग सरकारी बैंकों के लिए गैर-अधिकारी निदेशकों (एक सरकार का नामित होता है और दूसरा चार्टर्ड अकाउंट) की नियुक्ति करता है।
सरकारी बैंकों के पास गैर-अधिकारी निदेशक नियुक्त करने का अधिकार नहीं होता है, जबकि निजी बैंकों के पास यह अधिकार है। चुने गए शेयरधारक निदेशकों को छोड़कर सार्वजनिक बैंकों के बोर्डों के पास अन्य निदेशक चुनने के मामले में सीमित अधिकार हैं। सिंडिकेट बैंक (पूर्व नाम) के पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी मृत्युजंय महापात्र ने कहा, ‘सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शेयरधारक (सरकार) के पास काफी अधिकार होते हैं, जबकि निजी बैंकों में मुख्य कार्याधिकारी काफी शक्तिसंपन्न होता है और इसके शेयरधारकों के पास सीमित अधिकार होते हैं।’ उन्होंने कहा कि निदेशकों को नियुक्त करते समय सरकार बैंक के प्रबंधन से सलाह-मशविरा करती है, लेकिन निदेशक नियुक्त करने का अधिकार मिलने पर बैंक का बोर्ड अपने तात्कालिक लक्ष्यों के हिसाब से निदेशक चुन सकता है। नायक समिति ने इसे रेेखांकित किया है कि बैंकों के शीर्ष प्रबंधन के पास गैर-कार्यकारी निदेशक नियुक्त करने के मामले में कोई अधिकार नहीं हैं और इसमें सरकार की अहम भूमिका होती है।
समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बोर्ड को सुदृढ़ बनाने के लिए तीन चरणों का सुझाव दिया था। पहले चरण में बैंक बोर्ड ब्यूरो तीन साल के लिए बोर्ड की सभी नियुक्तियों पर सलाह देगा। इसके बाद बैंकों के लिए एक होल्डिंग कंपनी बनाई जाएगी, जो इस भूमिका का निर्वहन करेगी। तीसरे चरण में बैंकों के बोर्ड अपना शीर्ष प्रबंधन नियुक्त कर सकते हैं।
हालांकि पूर्णकालिक निदेशकों की नियुक्ति 2016 में गठित बैंक बोर्ड ब्यूरो की सिफारिशों के तहत की जाती है, लेकिन गैर-कार्यकारी निदेशकों को सरकार नियुक्त करती है और बैंक बोर्ड ब्यूरो का इसमें कोई भूमिका नहीं है।
पिछले साल अगस्त में वित्त मंत्रालय ने गैर-आधिकारिक निदेशकों का प्रभाव बढ़ाने का फैसला किया और उन्हें स्वतंत्र निदेशकों की तरह काम करने की अनुमति दी गई। इसके साथ ही बैंक के बोर्डों को गैर-अधिकारी निदेशकों के सीटिंग शुल्क में इजाफा करने का भी अधिकार दिया गया। बोर्ड को ऐसे निदेशकों के प्रदर्शन का हर साल मूल्यांकन करने की भी अनुमति दी गई है।