वाणिज्यिक बैंकों ने सरकारी तेल रिफाइनरी कंपनियों को ऋण देना बंद कर दिया है। उत्पादन मूल्य से भी कम दर पर पेट्रोलियम उत्पाद बेच पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबी हैं।
कंपनियों ने बताया कि बैंकों द्वारा उन्हें ऋण न देने की एक वजह तरलता की कमी तो है ही साथ ही तेल कंपनियों की लेनदारी इतनी अधिक बढ़ गई है कि बैंक उन्हें ऋण देने से कतरा रहे हैं। वैश्विक वित्तीय बाजारों में जो भूचाल आया है उसका असर भारतीय बाजारों पर भी पड़ा है और देश में अल्पकालिक ऋणों के लिए ब्याज दरें बढ़कर 16 फीसदी तक पहुंच गई हैं।
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ‘घरेलू बैंकों ने हमें ऋण देना बंद कर दिया है।’ उन्होंने कहा, ‘हम बाजार से डॉलर तभी खरीद सकते हैं, जब हमारे पास उसे खरीदने के लिए पैसा हो।’
देश की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी कंपनी आईओसी हर महीने कच्चा तेल खरीदने के लिए करीब 3 अरब डॉलर खर्च करती है। इस खरीद के लिए जितने डॉलर की जरूरत होती है, उसे कंपनी घरेलू और विदेशी बैंकों से पूरा करती है। साथ ही कंपनी के पास खुद का जितना पैसा होता है, उससे भी कंपनी बाजार से डॉलर खरीदती है।
पर विदेशी बाजारों में जो वित्त संकट पैदा हुआ है, उससे बैंकों में तरलता की कमी उत्पन्न हुई है और उन्होंने कंपनियों को ऋण देना कम कम कर दिया है। आईओसी और बीपीसीएल लिमिटेड के दो प्रमुख अधिकारियों ने बताया कि बैंकों ने पिछले महीने से ही तेल मार्केटिंग कंपनियों को डॉलर उधार देना बंद कर दिया था।
तेल कंपनियों को सब्सिडी दामों पर पेट्रोलियम उत्पाद बेचकर जो नुकसान होता है उसका कुछ हिस्सा सरकार भी उठाती है जिसके लिए वह तेल कंपनियों को बॉन्ड जारी करती है। आईओसी के अधिकारी ने बताया, ‘अगर हमें नए बॉन्ड्स जारी नहीं कि गए तो 31 अक्टूबर के बाद हम कच्चे तेल का आयात नहीं कर पाएंगे।’