अर्थव्यवस्था

स्थायी नौकरी वाली महिलाएं घटीं, स्वरोजगार में लगी महिलाओं की संख्या बढ़ी

वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में शहरी इलाकों में नियमित नौकरियां करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी 6 साल के निचले स्तर पर

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शिवा राजौरा   
Last Updated- May 19, 2024 | 10:16 PM IST

वित्त वर्ष 2024 की मार्च तिमाही में शहरी इलाकों में नियमित वेतन पर नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या नए निचले स्तर पर पहुंच गई। वहीं इस दौरान स्वरोजगार में लगी महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है।

आवधिक श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) के ताजा तिमाही आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में काम करने वाली सभी महिलाओं में नियमित वेतन पर काम करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी घटकर 52.3 प्रतिशत रह गई है, जो इसके पहले की तिमाही के 53 प्रतिशत की तुलना में कम है। इसके पहले का निचला स्तर वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में था, जब नियमित वेतन पर काम करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी घटकर 52.8 प्रतिशत पर आई थी।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा वित्त वर्ष 2019 की तीसरी तिमाही से हर तिमाही में पीएलएफएस सर्वे जारी किया जाता है। इन आंकड़ों को जारी करने की शुरुआत यानी पिछले 6 साल के दौरान किसी भी तिमाही में वेतन पर काम करने वाली महिलाओं की यह सबसे कम हिस्सेदारी है। वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही में कुल कामकाजी महिलाओं में वेतन पर काम करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी 61.2 प्रतिशत थी।

इस सर्वे में रोजगार की स्थिति को जानने के लिए ‘ताजा साप्ताहिक स्थिति’ (सीडब्ल्यूएस) का इस्तेमाल किया गया है। इसमें व्यक्ति के काम के प्रकार के मुताबिक वर्गीकरण किया जाता है, जिसमें संदर्भ की अवधि एक सप्ताह होती है। इस दौरान रोजगार करने वाले व्यक्ति की स्थिति, जैसे स्व रोजगार और नियमित वेतन/वेतनभोगी कर्मचारी व अस्थायी श्रमिक, शामिल की जाती है।

सर्वे से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में स्वरोजगार करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़कर 41.3 प्रतिशत हो गई है, जो वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही में 40.3 प्रतिशत थी। वहीं अस्थायी काम करने वाली महिलाओं की संख्या घटकर 6.5 प्रतिशत रह गई है, जो पहले 6.7 प्रतिशत थी।

नियमित मजदूरी या वेतन पर काम करने में कामगारों को नियमित रूप से पहले से तय वेतन मिलता है। सामान्यतया इसे अस्थायी श्रम करने वालों और स्वरोजगार की तुलना में बेहतर रोजगार माना जाता है। अस्थायी कामगारों में घरों में नौकर का काम करने वाले, खेत में काम करने वाले या घर के कारोबार में हाथ बंटाने वाले या छोटा उद्यम करने वाले शामिल होते हैं।

वहीं दूसरी तरफ, कामकाजी के साथ नौकरियों की तलाश करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है। वित्त वर्ष 2024 की मार्च तिमाही में श्रम बल हिस्सेदारी दर (एलएफपीआर) बढ़कर 6 साल के उच्च स्तर 25.6 प्रतिशत पर पहुंच गई है। हालांकि यह ग्रामीण इलाकों की तुलना में अभी भी कम है। 2022-23 के ताजा सालाना पीएलएफएस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण कार्यबल में महिला श्रम बल की हिस्सेदारी 30.5 प्रतिशत रही है।

श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि भारत में सामान्यतया महिलाएं परिवार की आमदनी में थोड़ी सी वृद्धि करने के लिए श्रम बाजार में आती हैं, न कि वे अपने पेशेगत वृद्धि के लिए आती हैं। महिलाओं के शिक्षा के स्तर में वृद्धि का मकसद यह होता है कि वे परिवार का काम और बच्चों की देखभाल बेहतर तरीके से कर सकेंगी। खासकर शहरी इलाकों में ऐसी धारणा है।

उन्होंने कहा, ‘शहरी अर्थव्यवस्था पर्याप्त बेहतरीन नौकरियों के सृजन में सक्षम नहीं है, जिससे कि पुरुषों और महिलाओं के बढ़ते कार्यबल के मुताबिक काम मिल सके। इसकी वजह से उनमें प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। यह वजह है कि ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार के काम में मदद कर रही हैं या अपने छोटे कामकाज में लगी हैं। भारत में विनिर्माण क्षेत्र अब तक गति नहीं पकड़ सका है, जिसकी वजह से अच्छी नौकरियों की कमी बनी हुई है।’

बहरहाल भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की हाल की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत महिला रोजगार सहित भारत के श्रम बाजार में ढांचागत बदलाव हो रहा है, जिसमें खुद का कामकाज भी शामिल है। यह सभी स्तर पर हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक उच्च शिक्षा और मुद्रा योजना, पीएम स्वनिधि जैसी औपचारिक ऋण योजनाओं से इसे बल मिला है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार द्वारा ऋण की सुविधा उपलब्ध कराकर उद्यमशीलता पर बल दिए जाने से परिवारों को मदद मिली है और वे औपचारिक ऋण से अपना उद्यम चला रहे हैं और कारोबार का आकार बढ़ा रहे हैं। अब ज्यादा लोग अपने परिवार के कामकाज से जुड़ रहे हैं और काम पा रहे हैं, जिससे इसके संकेत मिलते हैं।

First Published : May 19, 2024 | 10:16 PM IST