गैर-अपराधीकरण के खिलाफ अभियान के तहत केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के जुड़े संज्ञेय और गैर जमानती अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए मौद्रिक सीमा बढ़ाकर 25 करोड़ रुपये और उससे ऊपर कर सकती है। इस समय अगर 5 करोड़ रुपये सा इससे ऊपर की कर चोरी या इनपुट टैक्स क्रेडिट गलत तरीके से दिखाने का मामला पकड़ा जाता है तो उसमें जेल की सजा 5 साल तक हो सकती है।
अप्रत्यक्ष कराधान मामलों का शीर्ष निकाय केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) धारा 132 (दंडित किए जाने संबंधी मामले) और धारा 162 (कई अपराधों से निपटने) के कुछ प्रावधानों में बदलाव पर काम कर रहा है। इस योजना से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि कारोबार के तरीके में बदलाव और सजा होने के कम मामलों को देखते हुए सीबीआईसी इस तरह के बदलाव पर विचार कर रहा है।
राजस्व विभाग का विचार है कि गंभीर अपराध और गिरफ्तारी के मामले में मौद्रिक सीमा बहुत कम है, इसे अपवाद वाला मामला बनाया जाना चाहिए। अगर चोरी की राशि 2 करोड़ रुपये से ज्यादा, लेकिन 5 करोड़ रुपये से कम होती है तो जेल की सजा 3 साल हो सकती है। अगर कर चोरी 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है लेकिन 2 करोड़ रुपये से कम है तो सजा की अवधि 1 साल है।
विभाग जीएसटी के तहत गैर संज्ञेय और जमानती अपराधों में गिरफ्तारी की सीमा भी तार्किक करने पर विचार कर रहा है। सूत्रों ने कहा कि मौद्रिक सीमा बढ़ाकर 2 करोड़ की जा सकती है, जिसमें जेल की न्यूनतम सजा 1 साल होगी। अधिकारी ने कहा कि गिरफ्तारी के उद्देश्य में भी बदलाव किया जा सकता है, जो गंभीर मामलों में ही हो सकेगा। माना जा रहा है कि राजस्व विभाग ने इस मामले में उद्योग के हिस्सेदारों से राय मांगी है।
एक अधिकारी ने कहा कि उन्होंने मामूली कर चोरी में जेल की सजा का प्रावधान न करने का सुझाव दिया है और कहा है कि कारोबार सुगमता को देखते हुए इसे संयुक्त रूप से निपटाए जाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि जीएसटी से संबंधित गैर जमानती अपराधों में सीमा बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये की जानी चाहिए।
मामले से जुड़े लोगों ने कहा कि विभाग मौजूदा कंपाउंडिंग प्रावधानों पर भी नए सिरे से विचार कर रहा है और इस पर चर्चा हो रही है कि क्या कारोबार की कुल मात्रा के हिसाब से शुल्क लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए 5 से 10 करोड़ रुपये तक कारोबार वाले छोटे व्यवसाय के मामलों में शामिल कुल कर पर कम शुल्क (15 से 20 प्रतिशत) लगाया जा सकता है।
इस समय कंपाउंडिंग प्रावधानों में 50 से 150 प्रतिशत शुल्क की जरूरत होती है। जीएसटी कानून में बदलाव को जीएसटी परिषद की आगामी बैठक में पेश किया जा सकता है। परिषद की मंजूरी मिलने के बाद इसे बजट सत्र के दौरान अधिसूचित किए जाने की उम्मीद है।
डेलॉयट में अप्रत्यक्ष कर पार्टनर एमएस मणि ने कहा, ‘दंडित करने की सजा सिर्फ बहुत दुर्लभ मामलों में होना चाहिए, जब दुर्भावना के साथ किया गया मामला साबित हो जाए। चोरी पर काबू पाने के लिए यह जरूरी है।’ईवाई में टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने कहा, ‘दंडित करने के मामले में सीमा बढ़ाए जाने, कुछ उल्लंघनों को अपराधमुक्त करने से कर विभाग व करदाता के बीच याचिकाओं की संख्या घटाने में मदद मिलेगी।’
