सरकार ने इस्पात के आयात पर निर्भरता कम करने और इस क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद तेज कर दी है। इसके लिए सरकार इस्पात उद्योग के सुझावों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक नीति तैयार करने में जुट गई है। सरकार इसे बुनियादी क्षेत्र का दर्जा देने के अलावा आयात पर सीमा समायोजन कर (बीएटी) लगाने के विकल्प पर भी विचार कर रही है। साथ ही निगरानी ढांचे का दायरा बढ़ाने और उत्पादों की गुणवत्ता तय करने के लिए मानक तैयार करने पर भी काम हो रहा है।
भारत दुनिया में इस्पात का उत्पादन और इसका उपभोग करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इस क्षेत्र का योगदान करीब 2.3 प्रतिशत है। इस पूरी कवायद पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘देश के इस्पात उद्योग में काफी क्षमता है और हम इसके निर्यात का एक प्रमुख केंद्र बन सकते हैं। इस उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि कुछ करों और शुल्कों के कारण भारत इस्पात उद्योग में दुनिया के दूसरे देशों को टक्कर नहीं दे पा रहा है। इस उद्योग से जो सुझाव आए हैं उनमें आपूर्ति ढांचे के विकास के साथ संकुल विकास भी शामिल है। हम इन सुझावों पर विचार कर रहे हैं और उसके आधार पर इस क्षेत्र के लिए एक नीति तैयार करेंगे।’
बुनियादी ढांचा और धन की कमी इस्पात क्षेत्र के पर्याप्त विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा मानी जा रही है। इसके साथ ही बिजली और लौह-अयस्क पर विभिन्न शुल्कों से भी घरेलू उत्पादकों को अधिक लागत की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। देश को आत्मनिर्भर और निर्यात का एक अहम केंद्र बनाने के लिए करीब 20 ऐसे प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है, जिन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। बड़े पैमाने पर गुणवत्ता पूर्ण उत्पादों के उत्पादन पर खासा जोर दिया जाएगा। देश की जरूरतें पूरी करने के बाद बचे उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दिए जाने की योजना भी तैयार की जा रही है। उद्योग जगत के साथ सरकार की बातचीत के दौरान इस्पात क्षेत्र को बुनियादी दर्जा दिए जाने की मांग जोर-शोर से उभरी है। बुनियादी क्षेत्र का दर्जा मिलने से इस क्षेत्र की रकम तक पहुंच आसान हो जाएगी। सरकार सीमा समायोजन कर पर भी विचार कर रही है। इसके माध्यम से देश में आने वाले आयात पर कर लगाया जाएगा, जिससे घरेलू उत्पादकों को समान अवसर मिलेंगे।