कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में बढ़ती बॉन्ड यील्ड वहां की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को दिखाती है, लेकिन इसका असर दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की मौद्रिक नीति (monetary policy) पर ज्यादा नहीं पड़ेगा। लेकिन, डॉलर इंडेक्स (DXY) में गिरावट का असर पूरी दुनिया पर हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में हालिया तेजी इस बात का संकेत है कि निवेशक अब वहां की कमजोर अर्थव्यवस्था, बढ़ते फिस्कल घाटे (fiscal deficit) और नीति से जुड़ी अनिश्चितता को लेकर ज्यादा प्रीमियम मांग रहे हैं। इसका मतलब है कि अमेरिका को अब निवेश के लिए ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है। अगर ये यील्ड लंबे समय तक ऊंची बनी रहीं, तो अमेरिका की कर्ज और बजट की स्थिति और बिगड़ सकती है, क्योंकि उसे नए बॉन्ड अब पुराने से कहीं ज्यादा महंगे दर पर बेचने होंगे।
यह भी पढ़ें…India US trade deal: अमेरिका संग अंतरिम व्यापार करार 25 जून तक! 26% जवाबी शुल्क पर राहत की उम्मीद
कोटक का मानना है कि भले ही अमेरिका में यील्ड बढ़ रही हो, लेकिन इसका भारत की मौद्रिक नीति यानी RBI के फैसलों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। भारत की बॉन्ड यील्ड अभी भी अमेरिकी यील्ड से ऊपर है, और भारत की मैक्रो इकोनॉमिक स्थिति अमेरिका से बेहतर मानी जा रही है। भारत का चालू खाता घाटा (CAD) कम है, महंगाई भी नियंत्रण में है और रुपया (INR) की वैल्यू भी स्थिर बनी हुई है। ये सब मिलकर भारत को बाहरी जोखिमों से कुछ हद तक बचा सकते हैं।
कोटक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में अमेरिका में जो भी अतिरिक्त खपत हुई, वो एशिया और यूरोप की “अतिरिक्त बचत” की वजह से संभव हुई। यानी बाकी दुनिया ने अमेरिका के बॉन्ड और एसेट्स में पैसा लगाया और अमेरिका को खर्च करने की आज़ादी मिली। लेकिन अब अगर डॉलर इंडेक्स (DXY) और ज्यादा कमजोर होता है, तो विदेशी निवेशक अमेरिकी एसेट्स से दूरी बना सकते हैं। इससे अमेरिका को या तो खपत घटानी होगी, या उत्पादन और बचत बढ़ानी होगी।
रिपोर्ट के अनुसार, डॉलर इंडेक्स में गिरावट का असर पूरी दुनिया पर होगा। जो देश अब तक अमेरिकी एसेट्स में बेझिझक निवेश कर रहे थे, वो अब सोच-समझकर फैसला करेंगे। इससे ग्लोबल कैपिटल फ्लो में बदलाव आ सकता है।
हालांकि ये बदलाव भारत जैसे उभरते बाजारों (EMs) के लिए फायदेमंद हो सकते हैं, लेकिन कोटक का कहना है कि ये तय नहीं है कि भारत को इससे सीधा लाभ मिलेगा। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि निवेशक किस देश को कितनी प्राथमिकता देते हैं और वहां की आर्थिक स्थिति कैसी है।