प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) अप्रैल 2015 में शुरू होने के बाद अब अपने 10 साल पूरे करने वाली है। इस मौके पर एसबीआई रिसर्च (SBI Research) की एक नई रिपोर्ट सामने आई है, जो इस योजना के जमीनी स्तर पर उद्यमिता, वित्तीय समावेशन और देशभर में क्रेडिट एक्सेस पर पड़े दूरगामी प्रभाव को रेखांकित करती है। “PMMY: A Decade of Audacious Dreams” शीर्षक वाली यह रिपोर्ट बताती है कि इस योजना के तहत ₹33 लाख करोड़ के लोन बांटे गए है। वही, 10 वर्षों में 52 करोड़ से ज्यादा खाते खोले गए है। रिपोर्ट में इस योजना की सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने वाली भूमिका को भी प्रमुखता से रेखांकित किया गया है। PMMY खाताधारकों में 68% महिलाएं है।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत पिछले 10 वर्षों में कुल स्वीकृत ऋण ₹33 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है। वित्त वर्ष 2014 में जहां यह आंकड़ा ₹8.5 लाख करोड़ था। वहीं, वित्त वर्ष 2024 में यह बढ़कर ₹27.25 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। अनुमानों के मुताबिक, यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2025 में ₹30 लाख करोड़ से भी ऊपर जा सकता है।
योजना के पहले तीन वर्षों में बांटे गए लोन अमाउंट की औसत वृद्धि दर 33% रही, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसमें गिरावट आई। हालांकि, वित्त वर्ष 2023 में इसमें लगभग 36% की वृद्धि दर्ज की गई, जो भारत की आर्थिक संरचना के सबसे निचले स्तर पर उद्यमशीलता की वापसी का संकेत देती है। औसतन प्रति ऋण राशि लगभग तीन गुना बढ़ गई है—वित्त वर्ष 2016 में जहां यह ₹38,000 थी। वहीं वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर ₹72,000 और वित्त वर्ष 2025 में ₹1.02 लाख तक पहुंच गई है।
पिछले 10 वर्षों में, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत कुल 52 करोड़ से ज्यादा खाते खोले गए हैं, जिनमें से 78% खाते शिशु श्रेणी (40 करोड़), 20% किशोर (10 करोड़) और 2% तरुण/तरुण प्लस (~2 करोड़) श्रेणी के हैं।
दिलचस्प बात यह है कि शिशु खातों की कुल हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2016 में 93% थी, जो वित्त वर्ष 2025 में घटकर 51.7% रह गई है। वहीं, किशोर खातों की हिस्सेदारी 2016 में 5.9% थी, जो बढ़कर 2025 में 44.7% हो गई है। यह साफ संकेत है कि कई शिशु खाते अब परिपक्व होकर ज्यादा ऋण सीमा वाले किशोर खातों में परिवर्तित हो चुके हैं- यानी MSMEs इकाइयों का आकार अब बड़ा हो रहा है।
रिपोर्ट में इस योजना की सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने वाली भूमिका को भी प्रमुखता से रेखांकित किया गया है। PMMY खाताधारकों में लगभग 68% महिलाएं हैं, जबकि 50% लाभार्थी एससी, एसटी या ओबीसी वर्ग से हैं। महिला लाभार्थियों की संख्या के लिहाज से बिहार, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सबसे आगे हैं जबकि कुल महिला भागीदारी के प्रतिशत के आधार पर महाराष्ट्र, झारखंड और पश्चिम बंगाल टॉप पर हैं।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) को माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंसिंग एजेंसी (MUDRA) के तहत भारत सरकार द्वारा सूक्ष्म इकाइयों के विकास और फंडिंग से जुड़ी गतिविधियों के लिए शुरू किया गया था। 8 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्रा योजना की शुरुआत की थी। यह योजना अगले सप्ताह अपने 10 वर्ष पूरे कर लेगी।
यह योजना यह सुनिश्चित करती है कि सदस्य ऋणदाता संस्थानों (MLIs) — जैसे कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCBs), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs) और माइक्रो फाइनेंस संस्थान (MFIs) — के माध्यम से ₹20 लाख तक का बिना जमानत वाला संस्थागत ऋण उपलब्ध कराया जाए।
इस योजना के तहत ऋण की तीन प्रमुख श्रेणियां तय की गई हैं, जो इस प्रकार हैं:
• शिशु: ₹50,000 तक का ऋण
• किशोर: ₹50,000 से ऊपर और ₹5 लाख तक का ऋण
• तरुण: ₹5 लाख से ऊपर और ₹10 लाख तक का ऋण
• तरुण प्लस: ₹10 लाख से ऊपर और ₹20 लाख तक का ऋण (यह विशेष रूप से उन उधारकर्ताओं के लिए है जिन्होंने पहले तरुण श्रेणी का ऋण लिया और समय पर चुकाया है)
इन ऋणों को क्रेडिट गारंटी फंड फॉर माइक्रो यूनिट्स (CGFMU) द्वारा गारंटी दी जाती है। यह एक ट्रस्ट फंड है जिसे भारत सरकार ने स्थापित किया है और जिसे NCGTC एक ट्रस्टी के रूप में प्रबंधित करता है। यह फंड डिफॉल्ट की स्थिति में पोर्टफोलियो स्तर पर गारंटी प्रदान करता है।