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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने करीब दो साल के अंतराल के बाद 2022 में नीतिगत रीपो रेट में बढ़ोतरी शुरू की। रिजर्व बैंक की 6 सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति ने 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान रीपो रेट में कटौती शुरू की और ब्याज दरों में 115 आधार अंक की तेज गिरावट हुई। राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा के कुछ दिनों के बाद मार्च 2020 में पूर्व निर्धारित बैठकों से इतर एक बैठक कर रिजर्व बैंक ने रीपो रेट में 75 आधार अंक की कटौती कर दी, उसके बाद मई में 40 आधार अंक की और कटौती की गई। अगले दो साल तक यथास्थिति बनी रही और मई 2022 में रीपो रेट में बढ़ोतरी की शुरुआत हुई।
2021 के मध्य में ब्याज दरों में बढ़ोतरी को लेकर सुगबुगाहट शुरू हुई, लेकिन एमपीसी के अधिकांश सदस्यों ने यथास्थिति बनाए रकने का फैसला किया, क्योंकि अर्थव्यवस्था हिचकोलों से बाहर नहीं निकली थी। बहरहाल नकदी के समर्थन के तमाम कदमों की घोषणा 2020 में की गई थी, उसे पलट दिया गया। लेकिन नीतिगत दरें यथावत रखी गईं। इस साल मई में हुई बैठक भी पूर्व निर्धारित नहीं थी, जिसमें दरें तय करने वाली समिति ने रीपो रेट में बढ़ोतरी का फैसला किया।
इसकी प्रमुख वजह रूस यूक्रेन के बीच शुरू हुआ युद्ध था, जिसने केंद्रीय बैंक के महंगाई दर के अनुमान को बिगाड़ दिया था। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के ठीक पहले फरवरी के आखिर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर 2022-23 में 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। मई में रीपो रेट में 40 आधार अंक की बढ़ोतरी मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास के 2018 में पदभार ग्रहण करने के बाद पहली बार की गई थी।
2022 के शुरुआती 10 महीनों में खुदरा महंगाई दर केंद्रीय बैंक की ओर से तय ऊपरी सीमा के पार रही है। औसत खुदरा महंगाई दर लगातार 3 तिमाहियों में 2 से 6 प्रतिशत की सीमा में नहीं रही है और इसे मौद्रिक नीति की विफलता के तौर पर देखा जा रहा है।
अब तक 2022 में रीपो रेट में तेज बढ़ोतरी की गई है और यह 225 आधार अंक बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो गया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास और डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा के हाल के बयानों से पता चलता है कि वे एक बार फिर नीतिगत दर में बढ़ोतरी के पक्ष में मतदान करेंगे, जब समिति की अगली बैठक फरवरी में होगी। बहरहाल दो बाहरी सदस्यों जयंत वर्मा और आशिमा गोयल ने अब रीपो रेट स्थिर करने का पक्ष लिया है। फरवरी महीने में आने वाला फैसला अभी खुला हुआ है, वहीं तमाम लोगों का यह मानना है कि केंद्रीय बैंक अब दरें कम करने के पहले लंबे वक्त तक यथास्थिति बनाए रखने की रणनीति अपनाएगा।
आईडीएफसी एएमसी में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख सुयश चौधरी ने कहा, ‘2022 में जहां सभी प्रमुख बाजारों में नीतिगत दरें शीर्ष पर ले जाने का दौर चला है, 2023 में यह देखना है कि केंद्रीय बैंक कितने वक्त तक नीतिगत दर उच्च स्तर पर रखता है।’ चौधरी ने कहा, ‘मेरे विचार से नीतिगत दर या तो उच्चतम स्तर पर है, या उससे 25 आधार अंक नीचे है। मौदूदा अपेक्षाओं के आधार पर हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में नीतिगत दरों में लंबा ठहराव रहेगा।’
मौद्रिक नीति तय करने में खुदरा महंगाई की प्रमुख भूमिका होती है। यह एक बार फिर 2 से 6 प्रतिशत की रिजर्व बैंक की तय सीमा में नवंबर महीने में आ गई। रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक खुदरा महंगाई अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही में रिजर्व बैंक द्वारा तय ऊपरी सीमा के आसपास बनी रहेगी। अप्रैल-जून के दौरान खुदरा महंगाई 5 प्रतिशत और जुलाई सितंबर के दौरान 5.4 प्रतिशत देखी गई है।
एलऐंडटी फाइनैंस होल्डिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे के मुताबिक वृद्धि की चिंता की वजह से केंद्रीय बैंक ने संकेत दिया है कि फरवरी की बैठक में नीतिगत दर में स्थिरता रहेगी और उसके बाद जुलाई-अगस्त 2023 से दरों में कटौती फिर शुरू होगी। नित्सुरे ने कहा, ‘हाल के महीनों में विनिर्मित वस्तुओं में डब्ल्यूपीआई में महंगाई का असर कम नजर आया है, जबकि लागत का दबाव ज्यादा था। इससे विनिर्माण कंपनियों द्वारा कीमत तय करने की कमजोर स्थिति का पता चलता है। वहीं दूसरी तरफ वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही में प्रमुख खुदरा महंगाई दर गिरकर 6 महीने से नीचे रहने और वित्त वर्ष 24 की पहली तिमाही में 5 प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है।
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साफ है कि वृद्धि के नीचे जाने का जोखिम ज्यादा है और महंगाई बढ़ने का जोखिम अभी कम है।’उन्होंने कहा, ‘घरेलू वृद्धि और महंगाई की स्थिति और बढ़ती वैश्विक आर्थिक मंदी की धारणा के बीच बहुत ज्यादा संभावना यह है कि एमपीसी फरवरी 2023 में नीतिगत दर यथावत रखने और जुलाई-अगस्त 2023 से इसमें कमी करने की शुरुआत करे, जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सके।’
बंधन बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल ने भी कहा कि महंगाई दर तय सीमा के भीतर रह सकती है। उन्होंने कहा, ‘2022 में महंगाई दर में तेजी की वजह से कई केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की, जिसमें रिजर्व बैंक भी शामिल है। बहरहाल अगर आगे की स्थिति देखें तो भारत में महंगाई दर रिजर्व बैंक के टॉलरेंस बैंड के भीतर रहने की उम्मीद है। बाहरी क्षेत्र के संतुलन और रुपये को लेकर लगाए जा रहे अनुमान भी रिजर्व बैंक को कुछ राहत देने वाले हैं।’