रोजगार देने में कारगर है कानून

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 11:19 PM IST

बीएस बातचीत
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार 29 श्रम कानूनों को चार संहिता में तब्दील करने की महत्त्वाकांक्षी योजना पूरी करने में सफल रही है। श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने इंदिवजल धस्माना और सोमेश झा को एक साक्षात्कार में बताया कि श्रम संहिता के कारण लालफीताशाही खत्म होगी और बड़ी फैक्टरियां लगाने में मदद मिलेगी क्योंकि श्रम कानूनों की सख्ती को कम कर दिया गया है। बातचीत के संपादित अंश:
नया कानून रोजगार सृजन को किस तरह बढ़ावा देगा?
श्रम संहिता नियुक्ति पत्र जारी करने, सामाजिक सुरक्षा के दायरे का विस्तार करने और न्यूनतम मजदूरी के माध्यम से श्रमिकों के अधिकार को सुरक्षित रखने के प्रावधानों के जरिये रोजगार के औपचारिक स्वरूप को बढ़ावा देगा। असंगठित क्षेत्रों और रोजगार के नए प्रारूपों मसलन ठेका और प्लेटफॉर्म वर्कर पर कानून में विशेष रूप से जोर दिया गया है। श्रम कानूनों की सख्ती खत्म करने, अनुपालन की जरूरतों को कम करने के साथ-साथ समयसीमा के भीतर सेवाएं देना बड़े उद्योग लगाने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में होगा जो रोजगार सृजन में भी कारगर होगा।
ऐसा माना जा रहा है कि नए श्रम कानून से उद्योगों को अनुबंध की नौकरियां देने के लिए छूट मिल जाएगी और इससे नौकरी पर रखने और हटाने की प्रवृत्ति बढ़ेगी…
आईआर संहिता के प्रावधान नौकरी पर रखने या हटाने को बढ़ावा नहीं देते हैं बल्कि इसका इरादा श्रम कानून प्रशासन में लालफीताशाही को खत्म करना है। छंटनी या बंदी से पहले अनुमति लेने की प्रक्रिया से कोई मकसद पूरा नहीं होता है बल्कि इसके विपरीत बंद होने के कगार पर कंपनियों का नुकसान और देनदारियां ही बढ़ती हैं। प्रक्रियात्मक जटिलताओं की वजह से वित्तीय रूप से संकटग्रस्त प्रतिष्ठानों को बंद करने में देरी से कामगारों किसी भी तरह की मदद नहीं मिलेगी। हमें यह समझना चाहिए कि कोई भी नियोक्ता अपनी मर्जी से अपने प्रतिष्ठान को बंद नहीं करना चाहता है। इसके अलावा कम से कम 100 की सीमा की वजह से कंपनियां अपने आकार का विस्तार करने में हिचकती हैं और कई दफा वे अपने भुगतान रजिस्टर पर कर्मचारियों का नाम तक शामिल नहीं करती हैं। इस कदम से श्रमिक आधारित उत्पादन को मिलेगा और बड़े उद्यम लगाने को भी बढ़ावा मिलेगा। हमने यह सुनिश्चित किया कि छंटनी वाले कर्मचारियों के अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
लेकिन सरकार ने छंटनी के मुआवजे में बढ़ोतरी नहीं की। क्या इसकी कोई वजह है?
औद्योगिक संबंध संहिता में छंटनी मुआवजे को बढ़ाने के लिए संबंधित सरकार को छूट दी गई है। इसलिए हमने इस विकल्प को संबंधित सरकार पर छोड़ दिया है कि वे सही समय पर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
क्या हम नए कानून के तहत ज्यादा औद्योगिक सद्भाव वाली स्थिति देखेंगे?
हमारी सरकार ने श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और औद्योगिक सद्भाव बनाए रखने में श्रमिक संगठनों को अधिक महत्त्व दिया है। हमने पहली बार कानूनी रूप से श्रमिक संगठनों की तीन स्तरीय मान्यता की अवधारणा को पेश किया है जैसे कि इकाई स्तर, राज्य स्तर और केंद्रीय स्तर। हमारा यह मानना है कि ये कदम श्रमिकों, कारोबारों के हितों की रक्षा करेंगे और औद्योगिक शांति एवं सद्भाव को भी बढ़ावा देंगे। इसके अलावा कानूनों में विवादों के शीघ्र और निश्चित समयावधि में समाधान सुनिश्चित करने के प्रावधान भी औद्योगिक शांति और सद्भाव में योगदान देंगे।

श्रमिक संगठनों को लगता है कि अब हड़ताल करना उनके लिए असंभव होगा…
कामगारों के हड़ताल पर जाने के अधिकार की रक्षा की गई है और उन्हें किसी भी तरह से दूर नहीं किया गया है। कामगारों की शिकायतों के समाधान के लिए या विवाद के मुद्दे को आपसी बातचीत या विचार-विमर्श के माध्यम से सुलझाने के लिए 14 दिनों की नोटिस अवधि इसी वजह से अनिवार्य की गई है।
लेकिन श्रमिक संगठनों का कहना है कि हड़ताल का नोटिस देने पर ही सुलह की कोशिशें शुरू होती हैं लेकिन नए कानून में बातचीत के दौरान हड़ताल पर जाने की इजाजत नहीं दी गई है। क्या उनका यह आकलन सही नहीं है?
पहली बात, हमें यह समझने की जरूरत है कि विवाद निपटान व्यवस्था का मकसद कामगारों के हित में ही इसे जल्द-से-जल्द संभव कर दिखाना है। इसका मकसद हड़ताल या तालाबंदी कर कारखाने में उत्पादन ठप करना नहीं है। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि मेलमिलाप की प्रक्रिया हड़ताल का नोटिस मिलने के साथ ही शुरू नहीं होती है बल्कि बातचीत के लिए हुई पहली बैठक से इसका आगाज होता है। दूसरी बात, हड़ताल का नोटिस मिलने के बाद होने वाली सुलह की प्रक्रिया 14 दिनों में पूरी करनी होगी। अगर बातचीत से मसला सुलझ नहीं पाता है और मेलमिलाप की कोशिश नाकाम हो जाती है तो फिर श्रमिक हड़ताल पर जा सकते हैं। इस तरह यह भय निराधार नहीं है कि मेलमिलाप या बातचीत की प्रक्रिया शुरू होने पर श्रमिक हड़ताल नहीं कर सकेंगे। अगर इस नोटिस के दौरान मसले का समाधान नहीं निकल पाता है तो श्रमिक हड़ताल करने के लिए स्वतंत्र हैं। नोटिस अवधि का यह प्रावधान नियोक्ताओं पर भी लागू होता है जब वे कारखाने को बंद करने जा रहे हों। ऐसा इसलिए कि कामगारों को नियोक्ता के फैसले से अचानक झटका न लगे। इस तरह 14 दिनों की यह नोटिस अवधि हड़ताल या तालाबंदी दोनों ही वजहों से अचानक काम ठप होने से राहत देकर श्रमिकों के हित में ही होगी।
क्या ये श्रम कानून कार्यपालिका के जरिये किए गए बदलावों के जरिये राज्यों को अधिक शक्तियां देते हैं, जैसा कि संसद की स्थायी समिति ने कहा है?
हम सभी जानते हैं कि भारत एक विशाल देश है जिसमें स्थानीय परिस्थितियों, कामगारों के जनांकिकीय स्वरूप एवं आर्थिक विकास के अलग स्तरों के आधार पर गहरी विविधता होती है। श्रम संबंधी मामला संविधान की समवर्ती सूची का विषय होने से केंद्र एवं राज्यों दोनों को ही अपने अधिकार-क्षेत्र में कानूनी बदलाव करने के अधिकार मिले हुए हैं। यह संविधान में निहित संघवाद की भावना के अनुरूप ही है। हमारी मंशा श्रम कानूनों को लचीला एवं गतिशील बनाने की है ताकि पारिश्रमिक संबंधी सीमाएं एवं सुरक्षा मानदंडों को हालात के हिसाब से बदला जा सके।

क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि श्रम कानूनों के दायरे में अधिक कारखानों एवं प्रतिष्ठानों को शामिल करना कहीं बेहतर होता क्योंकि श्रमिकों के कल्याण पर नजर रखना कहीं अधिक मुश्किल हो जाएगा?
हमने कामगारों के लिए श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में समाविष्ट करने की कोशिश की है। पारिश्रमिक संहिता और औद्योगिक संबंध संहिता सभी तरह के प्रतिष्ठानों पर लागू होगी। हमने श्रमिक को न्यूनतम मजदूरी पाने एवं समय पर भुगतान का सार्वभौम अधिकार दिया है। इसी तरह पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी हालात संहिता का दायरा भी बढ़ाया गया है। प्रवासी मजदूरों, सिनेमा कामगार एवं श्रमजीवी पत्रकार की परिभाषाओं में बदलाव कर इसका दायरा बढ़ाया गया है। इतना ही नहीं, इस संहिता के प्रावधान अब सभी तरह के प्रतिष्ठानों पर लागू होंगे, खास क्षेत्र के कारखानों एवं खदानों तक ही नहीं। जहां तक कारखाने का सवाल है तो हम एक श्रमिक वाले कारखाने पर भी इन प्रावधानों को लागू कर सकते हैं। संबंधित सरकार यह तय करेगी कि किसी स्थान पर विनिर्माण गतिविधियों में लगी इकाइयों पर कौन-कौन प्रावधान लागू होंगे? इसी तरह सामाजिक सुरक्षा संहिता में भी कई बदलाव किए गए हैं ताकि ईएसआईसी एवं ईपीएफओ का दायरा बढ़ाया जा सके और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी सामाजिक सुरक्षा मिल सके। लिहाजा विश्लेषण करें तो आपको पता चलेगा कि कामगारों को मजदूरी सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए श्रम कानूनों का दायरा काफी बढ़ाया गया है।

First Published : October 2, 2020 | 11:00 PM IST