भारत ने यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ एक ‘नॉन पेपर’ या चर्चा पत्र साझा किया है, जिसमें कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम), वनों की कटाई, जांच-पड़ताल आदि के बारे में यूरोपीय नियमों को लागू करने से उत्पन्न व्यवधान के संबंध में नई दिल्ली का दृष्टिकोण व्यक्त किया गया है। यह जानकारी एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को दी।
इस ‘नॉन पेपर’ (अनौपचारिक दस्तावेज) के एक भाग के रूप में भारत ने इन नियमों का पालन करने से पहले एक ‘संक्रमण अवधि’ की आवश्यकता पर जोर दिया है। दरअसल भारत का मानना है कि साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारी और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांत को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण है।
इसका अर्थ यह है कि देशों को उनकी वृद्धि की संभावनाओं के आधार पर जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। इसके अलावा इसमें भारत को सीमित फायदा होगा। इसका कारण यह है कि जब दोनों पक्ष मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने का प्रयास कर रहे हैं तो ये विनियमन आखिरकार गैर व्यापारिक बाधा ही साबित होंगे।
इस मामले की जानकारी देने वाले एक अधिकारी ने बताया, ‘इस पेपर के आधार पर ईयू अपना जवाब दे पाएगा और इसके बाद दोनों पक्ष बातचीत कर सकते हैं।’ अधिकारी ने बताया कि यह विचार – विमर्श फिलहाल चल रहे मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं का भी हिस्सा होगा।
ब्रसेल में भारतीय वाणिज्य मंत्रालय और यूरोपियन आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों की नवंबर में हुई बैठक के दौरान ईयू ने यह स्पष्ट कर दिया था कि इन विनियमनों के तहत भारत को कोई छूट देना या अपवाद के रूप में स्वीकारना मुश्किल होगा क्योंकि यह वैश्विक व्यापार नियमों के खिलाफ होगा। इस नॉन-पेपर पर जवाब अगले साल की शुरुआत में मिलने की उम्मीद है।
हालांकि भारत ने नॉन-पेपर साझा करते हुए तर्क दिया कि भारत के लिए संक्रमण अवधि महत्त्वपूर्ण है। भारत में कंपनियों को बदलाव करते हुए हरित इस्पात जैसी वस्तुओं के उत्पादन के लिए समय की आवश्यकता है, तथा इस यात्रा में उन्हें यूरोपीय संघ के साथ सहयोग की भी आवश्यकता हो सकती है।
भारत और ईयू में मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत की शुरुआत जून 2022 में हुई थी और इसके बाद नौ दौर की बातचीत हो चुकी है। भारत और ईयू के अधिकारियों ने प्रस्तावित एफटीए पर अनुमान से कम प्रगति पर चिंता जाहिर की थी।
इस सिलसिले में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि व्यापार या व्यवसाय से कोई सरोकार नहीं रखने वाले ‘बाहरी तत्व’ व्यापार और कारोबार दोनों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे एफटीए वार्ता की प्रगति धीमी हो रही है।
इस क्रम में वाणिज्य मंत्रालय ने गुरुवार को जारी बयान में कहा कि भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते को ‘वाणिज्यिक रूप से सार्थक’ समझौते पर पहुंचने के लिए ‘राजनीतिक दिशानिर्देश’ की जरूरत है। इसमें दोनों पक्षों को एक दूसरे की भावना को समझने की आवश्यकता है। वित्त वर्ष 24 में भारत का ईयू से द्विपक्षीय व्यापार 137.41 अरब डॉलर था।