हाल ही में चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त योजनाओं की घोषणा की गई। छत्तीसगढ़ और तेलंगाना इन चुनावी वादों को पूरा करने की बेहतर स्थिति में हैं लेकिन राजस्थान के लिए इन वादों को पूरा करने की राह आसान नहीं है। मध्य प्रदेश राजस्व के लिहाज से बेहतर स्थिति में है लेकिन यहां कर्ज का स्तर ज्यादा है।
राज्य में जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चुनावों के दौरान उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को 450 रुपये में एलपीजी सिलिंडर उपलब्ध कराने, पीएम किसान सम्मान निधि के तहत वित्तीय सहायता की राशि बढ़ाकर 12,000 रुपये सालाना करने, गेहूं की खरीद 2,7000 रुपये प्रति क्विंटल करने के साथ ही वृद्धावस्था पेंशन में वृद्धि करने जैसे वादे किए थे।
यह राज्य पहले से ही वित्तीय अनिश्चितता से जूझ रहा है ऐसे में इन योजनाओं को लागू करने से वित्तीय दबाव और बढ़ेगा। वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के पहले वर्ष (2014-15) को छोड़कर पिछले 10 वर्षों में राज्य का ऋण, कभी भी सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 30 प्रतिशत से कम नहीं रहा है।
हालांकि, भाजपा सरकार के दौरान यह 35 प्रतिशत से कम था और मौजूदा कांग्रेस शासन (वर्ष 2018-23) के दौरान यह 35 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा पिछले साल कराए गए एक अध्ययन में राजस्थान को अधिक वित्तीय दबाव वाले राज्य के तौर पर वर्गीकृत किया गया था।
राजस्थान के राजस्व खर्च का आधा हिस्सा, वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान जैसे निश्चित मद में चला जाता है। राजस्व व्यय की अन्य श्रेणियों के साथ, यह संपत्ति सृजन में निवेश के लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़ता है। पूंजीगत खर्च पिछले एक दशक में कुल खर्च के 15 प्रतिशत से कम रहा है।
कई लोग राज्य में लगभग 20 साल के सत्ता विरोधी रुझानों के बावजूद भाजपा की सत्ता में फिर से वापसी का श्रेय लाडली बहना योजना को देते हैं जो महिलाओं पर केंद्रित कार्यक्रम है और जिसका वादा पार्टी ने कई अन्य कल्याणकारी योजनाओं के साथ किया था।
राज्य सरकार ने वर्ष 2023-24 के बजट में इस योजना के लिए 8,000 करोड़ रुपये आवंटित किए। हालांकि, अक्टूबर से कम से कम 23 साल की उम्र की महिलाओं को 1,200 रुपये दिए जाएंगे जो राशि फिलहाल 1,000 रुपये है।
कोविड महामारी प्रभावित वर्ष 2020-21 सहित कुछ वर्षों को छोड़कर, राज्य में अतिरिक्त राजस्व है। ऐसे में यह आसानी से इन मुफ्त योजनाओं की फंडिंग कर सकता है।
हालांकि, चालू वित्त वर्ष में इसका कर्ज, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 30 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचने का अनुमान है। राज्य पूंजीगत खर्च के लिए ऋण ले सकता है और इसमें से अधिकांश का इस्तेमाल संपत्ति (पूंजीगत खर्च) सृजन के लिए किया जाता है। हालांकि, सरकार द्वारा घोषित लोकलुभावन योजनाओं से सरकार के राजस्व अधिशेष पर असर पड़ सकता है और इससे आगे राज्य के ऋण में बढ़ोतरी हो सकती है।
भाजपा ने दो साल में 100,000 सरकारी रिक्त पदों को भरने, गरीब महिलाओं को 500 रुपये प्रति सिलिंडर की दर से रसोई गैस सिलिंडर देने, कॉलेज जाने वाले छात्रों को मासिक यात्रा भत्ता देने, 18 लाख घरों का निर्माण करने, भूमिहीन कृषि मजदूरों को एक वर्ष में 1,000 रुपये देने, विवाहित महिलाओं को एक वर्ष में 12,000 रुपये भत्ता देने, और 3,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीद का वादा किया।
राज्य के पास इन योजनाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन हैं क्योंकि भूपेश बघेल सरकार के कुछ वर्षों, विशेष रूप से आर्थिक मंदी वाले वर्ष 2019-20 और 2020-21 को छोड़कर और रमन सिंह की पिछली सरकार के एक वर्ष (2014-15) को छोड़कर राज्य ने राजस्व अधिशेष के स्तर को बनाए रखा है।
छत्तीसगढ़ का कर्ज इसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का लगभग 24 प्रतिशत हो गया है जिसका प्रबंधन संभव है। राजस्थान की तरह राज्य ने पहले ही पुरानी पेंशन प्रणाली का विकल्प चुन लिया है। हालांकि राजकोष की देनदारियां वर्ष 2034 के करीब पूरी तरह स्पष्ट हो जाएंगी जब वर्ष 2004 में भर्ती होने वाले कर्मचारी सेवानिवृत्त होने लगेंगे।
कांग्रेस ने अपनी छह गारंटी में हर महिला को प्रतिमाह 2,500 रुपये की वित्तीय सहायता का वादा करने के साथ ही 500 रुपये में एलपीजी सिलिंडर देने, सभी घरों के लिए 200 यूनिट मुफ्त बिजली, किसानों को 15,000 रुपये प्रति एकड़ वार्षिक सहायता देने की बात की गई है।
इसके अलावा कृषि मजदूरों को प्रति वर्ष 12,000 रुपये, धान की फसलों के लिए हर साल 500 रुपये का बोनस देने और वरिष्ठ नागरिकों के लिए 4,000 रुपये मासिक पेंशन का वादा भी किया गया है।
राज्य कर राजस्व के लिहाज से वित्तीय रूप से मजबूत है ऐसे में मुफ्त योजनाओं की फंडिंग करने में यहां कोई दिक्कत नहीं आएगी। पिछले सात वर्षों में राज्य के कर राजस्व का इसकी राजस्व प्राप्तियों में 60 फीसदी से अधिक योगदान है। इसके बावजूद के चंद्रशेखर राव की सरकार की दूसरी पारी के पहले तीन वर्षों के दौरान तेलंगाना को राजस्व घाटे का अनुभव करना पड़ा।
हालांकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति) शासन के शुरुआती कार्यकाल के दौरान, राज्य ने लगातार राजस्व अधिशेष बनाए रखा। इससे इस बात को लेकर चिंता पैदा होती है कि जिन मुफ्त सेवाओं और योजनाओं का वादा किया गया है क्या उसके चलते राज्य को राजस्व घाटा होगा।