भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी मुद्रा में लिया जाने वाला कर्ज जुलाई-सितंबर तिमाही में तकरीबन नगण्य हो गया। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कंपनियों ने विदेशी मुद्रा में महज 21 करोड़ डॉलर का कर्ज लिया, जो पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही की तुलना में 93.3 फीसदी कम है। वित्त वर्ष 2022 की जुलाई-सितंबर तिमाही में पांच कंपनियों ने 3.1 अरब डॉलर का कर्ज जुटाया था।
चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में कंपनियों ने दिसंबर 2003 तिमाही (19.1 करोड़ डॉलर) के बाद सबसे कम विदेशी कर्ज लिया है। बीती 60 तिमाहियों में भारतीय उद्योग जगत द्वारा विदेशी बाजार से औसतन हर तिमाही 5 अरब डॉलर कर्ज लिया गया था।
देसी कंपनियों द्वारा विदेशी बाजार से पूंजी जुटाने में कमी की मुख्य वजह मुद्रा बाजार में भारी उतार-चढ़ाव, अमेरिका में ब्याज दरों में तेज बढ़ोतरी और भारत में पूंजी की उपलब्धता बताई जाती है।
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार केवल दो कंपनियों ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में विदेश से कर्ज लिया है क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपये में काफी नरमी आई है। इस साल जून तिमाही में सात भारतीय कंपनियों ने 1.69 अरब डॉलर जुटाए थे और मार्च 2022 तिमाही में 13 कंपनियों ने 6.9 अरब डॉलर का कर्ज लिया था।
बजाज समूह के पूर्व वित्तीय निदेशक और अंतरराष्ट्रीय वित्त सलाहकार प्रबाल बनर्जी ने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा फॉरवर्ड कवर लेना अनिवार्य करने और अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद भारतीय कंपनियों की ओर से सितंबर तिमाही में विदेशी बाजार से कर्ज जुटाना लगभग बंद कर दिया गया है।
ब्याज दरों में इजाफा और फॉरवर्ड कवर की अतिरिक्त लागत से भारत और विदेशी बाजार में कर्ज की दर का अंतर अब तकरीबन खत्म हो गया है।’ उन्होंने कहा कि भारतीय बैंकों के पास काफी पूंजी है और वे अच्छी
साख वाली कंपनियों को कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इससे भी कंपनियां विदेशी बाजार से कर्ज लेने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं।
विदेशी बाजार से कर्ज लेने में कमी की एक वजह यह भी है कि मझोली और छोटी आकार की कंपनियों ने कमजोर मांग के मद्देनजर कम पूंजीगत व्यय की योजना बनाई है।
केयर रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा, ‘पिछले कुछ महीनों में दुनिया भर में ब्याज दरों में तेजी और रुपये में नरमी आई है। ऐसे में भारतीय उद्योग जगत द्वारा विदेशी उधारी में कमी आना स्वाभाविक है। आगे भी ब्याज दरों में तेजी और रुपये पर दबाव बना रह सकता है, जिससे देसी कंपनियों की ओर से विदेशी कर्ज की मांग कम ही रहेगी।’
विश्लेषकों ने कहा कि आईआईपी में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि अगस्त में लगभग सपाट रही। वैश्विक नरमी का असर निर्यात में दिख रहा, जिससे आने वाले महीनों में घरेलू उधारी और पूंजीगत व्यय चक्र प्रभावित हो सकता है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूंजी की आपूर्ति, पीएमआई, नए ऑर्डर, अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल में तेजी, अमेरिका में मकानों की बिक्री में कमी आदि वैश्विक नरमी का संकेत दे रहे हैं। नुवामा ग्रुप (पूर्व नाम एडलवाइस सिक्योरिटीज) के कपिल गुप्ता ने कहा कि आरबीआई भी दरों में इजाफा कर रहा है और तरलता घटा रहा है, जिससे घरेलू अर्थव्यवस्था में भी गिरावट का जोखिम है। ऐसे में औद्योगिक गतिविधियों में अभी नरमी बनी रहने की आशंका है।
