अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली के तहत वित्तीय घाटे से निपटने के लिए राज्यों को केंद्र द्वारा दिए गए दो विकल्पों के बाद चालू वित्त वर्ष के दौरान राज्यों का राजकोषीय घाटा उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 4.2 प्रतिशत से 5.5 प्रतिशत के दायरे में रहेगा।
इससे वित्त वर्ष 21 के दौरान देश का सामान्य घाटा, केंद्र और राज्यों दोनों का ही, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 11 प्रतिशत से 14 प्रतिशत के स्तर पर रह सकता है।
हालांकि केंद्र ने राज्यों को राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) की सीमा के लिहाज से व्यापक छूट नहीं दी है, लेकिन केंद्र ने उन्हें पहला विकल्प चुनने पर 97,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सुविधा प्रदान की है। इसके अलावा राज्यों को उनके जीएसडीपी के 0.5 प्रतिशत तक बिना शर्त अतिरिक्त छूट दी गई है।
पहले विकल्प में केंद्र ने राज्यों को 97,000 करोड़ रुपये की पेशकश की है जो कि जीएसटी प्रणाली के कारण क्षतिपूर्ति के लिए उनकी आवश्यकताओं और क्षतिपूर्ति उपकर की अपेक्षित राशि के बीच का अंतर है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस विकल्प के तहत फिलहाल उपलब्ध कराई गई राशि के अलावा 97,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सुविधा है। इस पांच प्रतिशत में राज्यों द्वारा बिजली क्षेत्र और एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड समेत विभिन्न सुधारों वाले दायित्वों के लिए स्वीकृत एक प्रतिशत हिस्सा भी शामिल है।
दूसरे विकल्प में राज्य पूरे 2.35 लाख करोड़ रुपये उधार लेते हैं, जो उनके लिए कोविड-19 के कारण आर्थिक मंदी से प्रभावित राजस्व की जरूरत और उपकर राशि के बीच का अंतर है। इस विकल्प में राज्यों को अपने जीएसडीपी के पांच प्रतिशत तक या चार प्रतिशत की संपूर्ण उधार की राशि के अलावा, जो भी ज्यादा हो, की अनुमति रहती है।
इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और समूह प्रमुख जयंत रॉय ने कहा कि हम यह समझ रहे हैं कि अब राज्य उधार लेने में सक्षम होंगे और इसलिए यदि सभी सुधारों को पूरा किया जाता है, तो उनके द्वारा चुने गए विकल्प के आधार पर वित्त वर्ष 21 के दौरान राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के कम से कम 4.17 प्रतिशत से लेकर 5.5 प्रतिशत तक रह सकता है।