प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की का मानना है कि महंगाई बढ़ने का एक कारण इस्पात और स्टील कंपनियों की गुटबंदी या कार्टेलाइजेशन नहीं है।
फिक्की के अनुसार इस वृद्धि का कारण ठोस आर्थिक नीति का अभाव है। फिक्की के आर्थिक मामले और शोध प्रभाग के उपनिदेशक अंशुमन खन्ना ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों में कई बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी होती है इसलिए कुछ ही कंपनियों द्वारा दामों को नियंत्रित करना आसान नहीं होता। लेकिन इस्पात और सीमेंट कंपनियों के मामले में ऐसा नहीं है।
सरकार आर्थिक नीतियों को अमली जामा पहनाते समय कड़े कदम उठाने से बचती है। उन्होंने कहा कि सीमेंट और इस्पात कंपनियों की विनिर्माण लागत पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है। सरकार इन कंपनियों के लिए उचित राहत और पुनर्स्थापना में मदद मुहैया नहीं करा पाती है। कानून व्यवस्था के हरेक स्तर पर सरकार असफल नजर आती है।
कभी कभी इन कंपनियों की स्थापना में पर्यावरणीय समस्याएं भी आड़े आती हैं। भूमि अधिग्रहण की समस्या से कंपनियों को रूबरू होना पड़ता है। इससे कंपनियों की निर्माण लागत में वृद्धि हो जाती है। इसके बाद कुछ कं पनियों के वर्चस्व के कारण दामों को मनमाने ढंग से नियंत्रित भी किया जाता है। इन सारी गतिविधियों का परिणाम मूल्य वृद्धि के रुप में नजर आता है।
खन्ना ने कहा कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण ईंधनों की कीमतों में काफी उछाल आया है और इसका असर हरेक क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि इस मूल्य वृद्धि को केवल काटर्ेलाइजेशन का एक परिणाम मान लेना सही नही है।
सीमेंट, इस्पात और तेल की कीमतों में वैश्विक वृद्धि हो रही है और सरकार सिर्फ यह कहकर कि यह बढ़ोतरी सीमेंट और इस्पात की कंपनियों द्वारा बनाए गए कार्टेल से हो रही है, बच नहीं सकती है। सरकार अगर चाहती है कि इनके दामों में गिरावट आए तो उसे इसके आयात पर लग रहे शुल्क में कटौती करनी होगी।