ऐसा लगता है कि कोविड-19 के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी से आर्थिक गतिविधियों के प्रमुख साप्ताहिक संकेतक फिसले हैं। बिजली उत्पादन में 2019 के मुकाबले वृद्धि एक अंक में आ गई। ताजा आंकड़े दर्शाते हैं कि देश में बिजली का उत्पादन पिछले साल महामारी से पहले के मुकाबले नौ फीसदी अधिक रहा है। जनवरी में वृद्धि 15 फीसदी से अधिक रही थी। इस विश्लेषण में बिजली उत्पादन की गणना सात दिन के चल औसत आधार पर की गई है। सभी आंकड़े 11 अप्रैल तक के हैं। केवल सर्च इंजन गूगल की तरफ से जारी होने वाले आवाजाही के आंकड़े 7 अप्रैल तक के हैं।
इससे पता चलता है कि आवश्यक खरीदारी के लिए आवाजाही में बढ़ोतरी हुई है। महामारी के दौरान लोग कैसे आवाजाही कर रहे हैं, इस पर नजर रखने के लिए गूगल गोपनीय लोकेशन डेटा का इस्तेमाल करता है। यह श्रेणीवार विभिन्न स्थानों की यात्रा पर नजर रखता है। इन आंकड़ों की महामारी से पहले के समय से तुलना की गई है। देश में कोविड के दैनिक मामले दो लाख के नजदीक पहुंच रहे हैं। ऐसे में मामलों को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाइन की चर्चा चल रही हैं। इस वजह से लोग कथित रूप से आवश्यक वस्तुओं का स्टॉक कर रहे हैं।
बिज़नेस स्टैंडर्ड प्रदूषण के आंकड़ों पर नजर रखता है। इनसे पता चलता है कि मुंबई में नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन वर्ष 2019 के मुकाबले काफी कम है। मुंबई देश के सबसे अधिक कोविड प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन औद्योगिक गतिविधियों और वाहनों से होता है। दूसरी तरफ दिल्ली में उत्सर्जन पर कोई अहम असर नहीं पड़ा है। यहां 2019 के मुकाबले उत्सर्जन का अंतर और कम हुआ है।
इसकी पुष्टि यातायात जाम के आंकड़ों से भी होती है। वैश्विक लोकेशन तकनीक कंपनी टॉमटॉम इंटरनैशनल के आंकड़ों के मुताबिक मुंबई में यातायात 2019 के मुकाबले 65 फीसदी कम है। यह पिछले सप्ताह में 56 फीसदी कम था। नई दिल्ली में यातायात जाम पिछले सप्ताह 41 फीसदी कम था, जो ताजा सप्ताह में 24 फीसदी कम रहा है।
भारतीय रेलवे के आंकड़े पिछले लॉकडाउन के आधार प्रभाव को दर्शाते हैं। देश में मार्च 2020 में संपूर्ण लॉकडाउन लगा था। इससे भारतीय रेलवे भी प्रभावित हुआ था। मौजूदा आंकड़े माल ढुलाई और उससे कमाई के लिहाज से पिछले साल की तुलना में 79 से 95 फीसदी बढ़ोतरी को दर्शाते हैं। कोयला एवं कोक, सीमें और संबंधित उत्पादों की माल ढुलाई में 2020 के मुकाबले बढ़ोतरी नजर आ रही है। बिज़नेस स्टैंडर्ड इन संकेतकों पर नजर इसलिए रखता है ताकि अर्थव्यवस्था के हाल के प्रदर्शन के बारे में जानकारी मुहैया कराई जा सके। आम तौर पर आधिकारिक वृहद आर्थिक आंकड़े देरी से जारी होते हैं। दुनिया भर में विश्लेषक ऐसे संकेतकों पर नजर रख रहे हैं ताकि जमीनी हकीकत की थाह ली जा सके।