वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में दो अंकों की जोरदार बढ़ोतरी हुई है, लेकिन अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि राजस्व व्यय में गिरावट से आर्थिक रिकवरी सुस्त पड़ सकती है।
अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने में राजस्व व्यय की अहम भूमिका होती है। पहली तिमाही के दौरान इसमें 2.4 प्रतिशत की गिरावट आई है और ग्रामीण व्यय में बहुत घटा है। इसके अलावा विशेषज्ञों ने कहा कि राजस्व खर्च में कमी संभवत: पूंजीगत व्यय की ओर नहीं मोड़ा गया है।
अप्रैल महीने में पिछले साल की तुलना में 35.6 प्रतिशत संकुचन के बाद केंद्र ने राजस्व व्यय मई महीने में 32.4 प्रतिशत और जून में 8.9 प्रतिशत बढ़ाया है। पहली तिमाही में पूंजीगत व्यय 26 प्रतिशत बढ़कर 1.14 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
राजस्व व्यय नियत देयताओं या चल रहे परिचालन व्यय जैसे वेतन और पेंशन में जाता है, लेकिन इससे मांग के सृजन में मदद मिलती है। राजस्व व्यय का एक हिस्सा सब्सिडी होती है और इस हिस्से पर लगाम लगाने को विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन माना जाता है।
बहरहाल सब्सिडी को छोड़कर राजस्व व्यय में कुल खर्च की तुलना में पहली तिमाही में भारी कमी आई है।
पूंजीगत व्यय का इस्तेमाल बुनियादी ढांचा जैसी संपत्तियों के सृजन में होता है और यह गुणक का काम करता है। आर्थिक वृद्धि पर इसका असर दिखने में वक्त लगता है क्योंकि मंजूरियों और श्रमिकों की उपलब्धता जैसी समस्याएं इसमें आती हैं।
वित्त वर्ष 22 के बजट में पूंजीगत आवंटन 5.54 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें वित्त वर्ष 21 के बजट अनुमान की तुलना में 34.5 प्रतिशत की तेज बढ़ोतरी हुई है।
इक्रा रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि सरकार के खर्च का असर वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में सकल मूल्य वर्धन में अनुमानित दो अंकों के प्रसार पर पड़ सकता है।
नायर ने कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में कुल व्यय में बदलाव न होने की धारणा, आधार के असर की वजह से तमाम क्षेत्रों में मात्रात्मक वृद्धि के विरोधाभासी है। केंद्र सरकार के खर्च में सुस्त बढ़ोतरी से वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में जीडीपी के विस्तार पर असर पड़ सकता है।’
पहली तिमाही में गैर सब्सिडी वाले राजस्व व्यय में तेज कमी आई है। यह 6.1 लाख करोड़ रहा, जो पिछले साल की समान अवधि के 6.48 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 6 प्रतिशत कम है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय का व्यय पहली तिमाही में 44,500 करोड़ रुपये रह गया, जो पिछले साल 87,611.41 करोड़ रुपये था। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का खर्च 13 प्रतिशत घटकर 18,696 करोड़ रुपये रह गया है। उर्वरक विभाग का
व्यय पिछले साल से 34 प्रतिशत घटा है।
बहरहाल उपभोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का व्यय पहले साल की पहली तिमाही की तुलना में 63.4 प्रतिशत बढ़कर 87,770 करोड़ रुपये हो गया है।
केयर रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि राजस्व व्यय में किसी तरह की कमी किए जाने का असर चल रहे कुछ कार्यक्रमों पर पड़ेगा, जो संभवत: अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यहां बचत राजस्व संग्रह में समायोजित हो जाएगी और संभवत: वह पूंजीगत व्यय में नहीं जाएगा।’ उन्होंने कहा कि कम व्यय की प्रमुख वजह ग्रामीण इलाकों में उल्लेखनीय रूप से कमी है, जो मनरेगा में इस साल मांग कम रहने के कारण हुआ है।
इक्रा रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने कहा कि ऐसे समय में जब निजी खपत और निवेश की मांग सुस्त है और ज्यादा निर्यात के साथ ज्यादा आयात हो रहा है और शुद्ध निर्यात कमजोर है, सरकार का व्यय अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकता है।
पंत ने कहा, ‘पिछले साल मांग को बढ़ावा देने की सरकार की कवायद नदारद थी और इस साल भी पहली तिमाही में ऐसा ही रहा। इसकी बड़ी वजह इस साल मनरेगा का व्यय सुस्त रहना है। पिछले साल गांवों की ओर विस्थापन हुआ था, जो इस बार क्षेत्रीय व स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन के कारण कम था।’
बहरहाल वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने तर्क दिया कि पिछले साल का आधार सामान्य तिमाही आधार नहीं था क्योंकि महामारी की वजह से तमाम खर्च बढ़े थे और जनधन खाते में हस्तांतरण, ईपीएफओ भुगतान हुआ और कुछ सब्सिडी दी गई। अधिकारी ने कहा, ‘लेकिन, पूंजीगत व्यय बढ़ रहा है, जिसकी हमें जरूरत थी।
इसके अलावा हमने 44,000 करोड़ रुपये आर्थिक मामलों के विभाग के पास आरक्षित रखा है, जिसे जरूरत पडऩे पर किसी भी विभाग या मंत्रालय को दिया जा सकता है।’
अर्थव्यवस्था को बहाल करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंत्रालयों व केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (सीपीएसई) से पूंजीगत व्यय के लिए कहा है।