बीएस बातचीत
डीएसपी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख सौरभ भाटिया ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि ऊंचे राजकोषीय आंकड़े प्रतिफल की राह में बदलाव और इसे नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा किए गए उपायों के असर को दर्शा रहे हैं। पेश है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
ताजा घटनाक्रम को देखते हुए, बॉन्ड बाजारों द्वारा अगली कुछ तिमाहियों में कैसा प्रदर्शन किए जाने की संभावना है?
पिछले कुछ महीनों के दौरान बॉन्ड बाजारों ने अपेक्षाकृत सीमित दायरे में कारोबार किया है। अतिरिक्त नकदी के साथ साथ हेल्ड टु मैच्युरिटी (एचटीएम)-आधारित टारगेटेड लॉन्ग-टर्म रीपो ऑपरेशंस (टीएलटीआरओ) ने भी क्रेडिट स्प्रेड को सीमित बनाए रखा है। चूंकि प्रतिफल रेखा काफी गहरी है, हम लगातार यह उम्मीद कर रहे हैं कि अल्पावधि में प्रतिफल रीपो दरों में बदलाव की संभावना के बजाय मांग-आपूर्ति पर केंद्रित होगा। आरबीआई का बॉन्ड खरीदारी कार्यक्रम भी प्रतिफल को सपाट बनाए रखने में मददगार साबित हो सकता है और हमें दर कटौती चक्र के अंत के करीब ला सकता है। कम प्रतिफल और पूंजीगत लाभ की कम संभावना वाला शॉर्टर-ऐंड सेगमेंट मध्यावधि से दीर्घावधि बॉन्डों के लिए राह बना सकता है।
क्या आप वित्त वर्ष 2021 के अंत तक बड़े राजकोषीय घाटे की आशंका देख रहे हैं?
हम राजकोषीय घाटे में बड़ी तेजी की अवधि से गुजर रहे हैं। ऊंचे राजकोषीय आंकड़ों का असर प्रतिफल पर पहले ही दिख चुका है और इसे नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा समर्थन मुहैया कराया गया है।
पिछले कुछ महीनों से आपकी निवेश रणनीति क्या रही है?
हम लगातार मध्यावधि से दीर्घावधि बॉन्डों को पसंद कर रहे हैं। संक्षिप्त अवधि के सेगमेंट में, कैलेंडर वर्ष 2022 की पहली छमाही में परिपक्व हो रहे बॉन्ड पसंदीदा हैं।
क्या बॉन्ड बाजारों का मौजूदा समय में वैश्विक केंद्रीय
बैंकों द्वारा निरंतर तरलता से संबंध है?
केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनाए गए नीतिगत उपायों (पारंपरिक और गैर-पारंपरिक उपाय समेत) की मात्रा को देखते हुए, हमें निकदी की निकासी के परिवेश से पहले वृद्घि में सुधार की उम्मीद है। हम एक तरफ जहां अर्थव्यवस्था में सकारात्मक सुधार देख रहे हैं, वहीं कुछ देश लॉकडाउन फिर से शुरू कर रहे हैं। अभी भी अज्ञात जोखिम बने हुए हैं और जब तक ऐसी स्थिति रहेगी, इस दौर से मुकाबले के लिए एक तरीका है अल्पावधि में निवेश विभाजित करना। इससे न सिर्फ प्रतिफल की रेखा को सपाट बनाए रखने का फायदा मिलेगा बल्कि बड़े उतार-चढ़ाव से संपूर्ण निवेश को सुरक्षित बनाने में भी मदद मिलेगी।