खनन कारोबारी अनिल अग्रवाल की अगुआई वाली वेदांत लिमिटेड ने 9,545 करोड़ रुपये (1.16 अरब डॉलर) की लागत स्वीकार नहीं करने के मामले में सरकार के खिलाफ मध्यस्थता का मुकदमा जीत लिया है।
सरकार ने कंपनी के राजस्थान तेल और गैस क्षेत्रों से अधिक भुगतान की मांग की थी। दूसरी ओर वेदांत ने कहा था कि कुछ निश्चित लागत में 9,545 करोड़ रुपये खर्च हुए। सरकार ने तेल ब्लॉक की कुछ लागत को फिर से आवंटित करने और राजस्थान ब्लॉक से उत्पादित तेल के लिए पाइपलाइन बिछाने पर आने वाली लागत का एक हिस्सा अस्वीकार कर दिया था। ऐसे में अतिरिक्त लाभ पेट्रोलियम (या तेल और गैस क्षेत्रों में इसका हिस्सा) की मांग की गई।
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समझौते के अनुसार कंपनी को सरकार के साथ तय अनुपात में लाभ बांटने से पहले सभी लागत वसूलने की अनुमति दी गई। अगर लागत का हिस्सा नकार दिया जाता है, तो इसकी वजह से अधिक मुनाफा होगा तथा सरकार को ज्यादा हिस्सा मिलेगा।
वेदांत ने इस मांग को मध्यस्थता न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी थी। वेदांता ने शेयर बाजार को बताया, ‘कंपनी को 23 अगस्त, 2023 को मध्यस्थता आदेश मिला है।’ कंपनी ने हालांकि मध्यस्थता फैसले का अधिक विवरण नहीं दिया और कहा कि वह फैसले की समीक्षा कर रही है और इसके वित्तीय प्रभाव का मूल्यांकन किया जा रहा है।
वेदांता ने अपनी ताजा वार्षिक रिपोर्ट में बताया था कि इसका वित्तीय प्रभाव 9,545 करोड़ रुपये तक का है।
फर्म ने कहा कि उसने मांग और अन्य ऑडिट अपवादों को चुनौती दी है क्योंकि उसका मानना है कि ये पीएससी के अनुरूप नहीं हैं और पूरी तरह से कमजोर हैं।
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पिछले महीने जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया था कि पीएससी की शर्तों के अनुसार समूह ने मध्यस्थता कार्यवाही शुरू कर दी थी। अंतिम सुनवाई और दलीलें सितंबर 2022 में पूरी कर ली गईं। सुनवाई के बाद दोनों पक्षों द्वारा विवरण दाखिल कर दिया गया और फैसले का इंतजार है।
सूत्रों ने कहा कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की अपस्ट्रीम नोडल एजेंसी हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) ने मई 2018 में सरकार के लिए तेल के लाभ के अतिरिक्त हिस्से की मांग उठाई थी। बाड़मेर में तेल भेजने के लिए पाइपलाइन बिछाने पर आने वाली लागत में से 1,508 करोड़ रुपये तथा कुछ सामान्य लागतों के पुनर्आवंटन में 2,723 करोड़ रुपये की लागत स्वीकार नहीं की गई थी।
बाद के वर्षों में यह राशि संशोधित की गई थी। ये लागत राजस्थान ब्लॉक में केवल वेदांत की हिस्सेदारी से संबंधित है क्योंकि सरकारी स्वामित्व वाली तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), जिसकी इस ब्लॉक में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है, इन लागतों को अस्वीकार किए जाने पर सरकार को भुगतान करने के लिए सहमत हो गई थी।