मंदी की मार रिटेल सेक्टर पर खूब पड़ी है। यही वजह है कि दिसंबर 2008 में इस क्षेत्र की बिक्री में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले दो-तिहाई की गिरावट आई है।
यह जानकारी सलाहकार संस्था केपीएमजी की ओर से कराए गए सर्वे से मिली है। केपीएमजी का कहना है कि उपभोक्ताओं की ओर से खर्चों में कटौती के चलते रिटले कंपनियों की बिक्री पर असर पड़ा है। इस कारोबार से जुड़े लोगों का मानना है कि रिटेल कंपनियां अक्टूबर-दिसंबर में सालभर की बिक्री का 40 फीसदी माल बेच लेती हैं।
केपीएमजी का कहना है कि यह नरमी अगले 12 से 18 महीनों तक रहने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बुनियादी ढांचे में खर्च बढ़ाने जैसे सरकारी प्रोत्साहन से रिटेल क्षेत्र को मदद मिल सकती है। इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था 7 फीसदी की दर से विकास करेगी, जबकि पिछले वित्त वर्ष में विकास दर 9 फीसदी थी।
अध्ययन में कहा गया कि ग्राहकों की तादाद कम होने और कन्वर्जन अनुपात कम होने से दिसंबर 2008 में बिकी की वृध्दि दर घटकर 11 फीसदी रह गई है। जबकि दिसंबर 2007 में यह 35 फीसदी थी।
केपीएमजी इंडिया के राष्ट्रीय उद्योग निदेशक रमेश श्रीनिवास ने कहा कि बिक्री की दर में कमी से इनवेंटरी कारोबार में कमी आएगी और वृध्दि दर बढ़ाने के लिए कार्यपूंजी बढ़ाने की जरूरत ने कई घरेलू खुदरा कंपनियों पर तरलता का दबाव डाला है।
केपीएमजी के मार्केट हेड नील ऑस्टिन का कहना है कि मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए रिटेलरों को स्टोरों की संख्या में कटौती, खार्चों पर अंकुश और लागत कम करने के उपाय अपनाने होंगे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रिटेलरों को छोटे शहरों का रुख करना चाहिए, क्योंकि वहां किराया कम है।
