यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) कंपनियों के लिए 30 फीसदी बाजार हिस्सेदारी सुनिश्चित करने की समय सीमा जैसे जैसे नजदीक आ रही है उनके लिए इस लक्ष्य को पूरा करना चुनौती बनती जा रही है। इसकी वजह है कि उद्योग के अनुमानों के मुताबिक यूपीआई पर होने वाले लेनदेनों की संख्या के लिहाज से डिजिटल कंपनियां फोनपे और गूगल पे 41 फीसदी और 37 फीसदी हिस्सेदारी के साथ बाजार पर काबिज हैं। वहीं पेटीएम का दावा है कि फोनपे और गूगल पे जैसे यूपीआई ऐप के मुकाबले उसके ऐप से 30 फीसदी अधिक लेनदेन होते हैं। ये आंकड़े इन प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के लिए समय सीमा से पहले 30 फीसदी की बाजार हिस्सेदारी सुनिश्चित करने में चुनौती बन रहे हैं।
उद्योग के सूत्रों का कहना है कि इस बात को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) की ओर से 30 फीसदी बाजार हिस्सेदारी का आदेश किस प्रकार से प्रभावी होगा। कंपनियां इसको लेकर चिंतित हैं। एक कार्यकारी ने कहा, ‘यह एक कठोर ग्राहक अनुभव होगा।’ एक कार्यकारी ने कहा, ‘हमें वृद्घि नहीं करने के लिए कैसे कहा जा सकता है।’
बाजार हिस्सेदारी पर एनपीसीआई की चेतावनी प्रणाली शुरू हो चुकी है ऐसे में वैसी मौजूदा कंपनियां जिन्होंने मात्रा की सीमा का पार कर लिया है उनके पास 31 दिसंबर, 2022 तक चरणबद्घ तरीके से नए नियमों का पालन करने का विकल्प है। एनपीसीआई जनवरी 2022 से छमाही आधार पर इस अनुपालन की समीक्षा करेगा।
जब कोई ऐप आकार के लिहाज से 30 फीसदी बाजार हिस्सेदारी को पार करेगा तब एनपीसीआई तीसरे पक्ष के ऐप को नए ग्राहकों को अपने प्लेटफॉर्म पर लेने से रोकने के लिए कहेगा। एनपीसीआई के मुताबिक हालांकि, इसमें छूट मिल सकती है जिससे कि उपयोगकर्ता को शामिल करने के प्रतिबंधों को आसानी से लागू किया जा सके।
यूपीआई पर तीसरे पक्ष के ऐप को सीमित करने के पीछे की मंशा बढ़ते भुगतान बाजार में बड़ी तकनीक कंपनियों के एकाधिकार को समाप्त करना है। बैंकों के लिए इस प्रकार की कोई सीमा नहीं है।
विशेषज्ञों ने कहा कि यूपीआई और रुपे के लिए मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) को शून्य कर सरकार पहले ही उद्योग का नुकसान कर चुकी है।