कंपनियां

विमानन क्षेत्र में रतन टाटा की विरासत: नाकामी से कामयाबी का सफर

रतन टाटा ने जिस ‘विनाशकारी प्रतिस्पर्धा’ की चेतावनी दी थी, अब नजर नहीं आती। हवाई किराए स्थिर हैं और बाजार 4 प्रमुख कारोबारियों के साथ मजबूत व बेहतर हुआ है

Published by
दीपक पटेल   
Last Updated- October 10, 2024 | 10:26 PM IST

दिसंबर 2012 में टाटा संस के चेयरमैन का पद छोड़ने की तैयारी कर रहे रतन टाटा ने एक साक्षात्कार में टाटा समूह के दोबारा विमानन क्षेत्र में प्रवेश को लेकर शुबहा जाहिर करते हुए कहा था कि यह क्षेत्र ‘विनाशकारी प्रतिस्पर्धा’ का शिकार है। उनकी इस हताशा के मूल में भारतीय विमानन क्षेत्र में अपना झंडा लहराने के दो दशकों के नाकाम प्रयास छिपे थे।

इससे काफी पहले वर्ष 1994 में टाटा ने सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर देश में एक संयुक्त उपक्रम आधारित विमानन सेवा शुरू करने की योजना बनाई थी। परंतु राजनेताओं, अफसरशाहों और प्रतिद्वंद्वी विमानन कंपनियों के तीव्र विरोध ने इस सपने को जल्दी ही पटरी से उतार दिया।

भारतीय विमानन सेवा में एक शक्तिशाली विदेशी विमानन कंपनी की मजबूत हिस्सेदारी के विचार से ही सत्ता प्रतिष्ठान सहित चौतरफा खलबली मच गई थी। टाटा ने इन चिंताओं को दूर करने के लिए सौदे में कुछ बदलाव भी किए लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार ने कथित तौर पर इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

वर्ष 2010 में एक भाषण में टाटा ने बताया था कि इस घटनाक्रम ने उन्हें किस प्रकार प्रभावित किया था। उन्होंने याद किया था कि कैसे 1990 के दशक के आखिर में एक विमान यात्रा के दौरान ‘उनके साथ वाली सीट पर बैठे एक अन्य उद्योगपति’ ने उनसे कहा था, ‘मुझे समझ में नहीं आता। आप लोग बहुत मूर्ख हैं। आपको पता है कि मंत्री को 15 करोड़ रुपये चाहिए, आप ये रुपये दे क्यों नहीं देते?’

टाटा ने बहुत सख्ती से जवाब दिया था, ‘आप नहीं समझ सकते। मैं चाहता हूं कि रात में जब सोने जाऊं तो मुझे यह बात न कचोटे कि मैंने इस विमानन कंपनी के लिए पैसे दिए हैं। मैं आपसे कह सकता हूं कि अगर हमें पैसे देकर विमानन कंपनी मिल भी जाती तो मैं बहुत अधिक शर्मिंदा महसूस करता।’

यह कहानी 2001 में फिर दोहराई गई जब भाजपानीत सरकार ने एयर इंडिया में 40 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव रखा। उस समय भी सिंगापुर एयरलाइंस के साथ साझेदारी में टाटा ने इकलौती बोली लगाई थी। इस बार भी श्रम संगठनों और प्रतिद्वंद्वी विमानन कंपनियों के विरोध के कारण सौदा नहीं हो सका। एक बार फिर टाटा का विमानन कंपनी का सपना, सपना ही रह गया।

परंतु विमानन को लेकर रतन टाटा का जुनून अपनी जगह पर बना रहा। उनका पायलट लाइसेंस और 2007 में एफ-16 फाल्कॉन लड़ाकू विमान का सह-पायलट बनना इसका उदाहरण है। ऐसे में 2012 में शुबहा जाहिर करने के महज दो महीने के भीतर एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में टाटा समूह ने मलेशिया की विमानन कंपनी एयरएशिया के साथ संयुक्त उपक्रम में किफायती विमानन सेवा ‘एयर एशिया इंडिया’ शुरू करने की घोषणा की।

2013 तक टाटा ने एक और साहसी कदम उठाया और एक बार फिर सिंगापुर एयरलाइंस के साथ साझेदारी कर प्रीमियम विमानन सेवा ‘विस्तारा’ की शुरुआत की। सेवानिवृत्ति के बाद भी रतन टाटा की विमानन संबंधी महत्वाकांक्षा की उड़ान कभी कमजोर नहीं पड़ी। 2021 में टाटा समूह ने एयर इंडिया का अधिग्रहण करके इतिहास रच दिया।इसके साथ ही समय का एक चक्र भी पूरा हुआ।

दरअसल 1932 में जेआरडी टाटा ने जिस टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की थी वही आगे चलकर एयर इंडिया बनी जिसका भारत सरकार ने 1953 में राष्ट्रीयकरण कर दिया था। करीब 70 वर्ष बाद एयरलाइन वापस टाटा समूह के पास लौटी। एयर इंडिया का अधिग्रहण रतन टाटा के लिए एक विजयी क्षण था।

यह न केवल उनके विमानन से जुड़े सपनों में से एक के पूरा होने जैसा था बल्कि एक ऐतिहासिक विरासत का दोबारा आरंभ भी था। टाटा समूह विमानन क्षेत्र में देश का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी है और घरेलू बाजार के करीब 30 फीसदी हिस्से पर उसका नियंत्रण है।

First Published : October 10, 2024 | 10:26 PM IST