वर्ष 1954 में रोजर बैनिस्टर 3 मिनट, 59.4 सेकंड में चार मील वाली दौड़ जीतने वाले पहले व्यक्ति थे, अब यह आम बात हो गई है। किसी बैंक को चलाना कितना कठिन है? जब 1990 के दशक के मध्य में निजी बैंक लाइसेंस जारी किए गए थे, तो कुछ को ही इस बारे में जानकारी थी। एचडीएफसी बैंक, आईसीआई बैंक और ऐक्सिस बैंक अब दिग्गज हैं, आईडीबीआई बैंक अपनी शुुरुआत के बाद से ही विविधतापूर्ण जिंदगी के साथ अलग बना हुआ है।
एचडीएफसी बैंक के बैनिस्टर आदित्य पुरी के लिए यह आकर्षक यात्रा रही, जो करीब एक-चौथाई शताब्दी के बाद 26 अक्टूबर को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी से मुक्त हो रहे हैं। यह बताना जरूरी है कि जब एचडीएफसी लिमिटेड के चेयरमैन दीपक पारेख ने पेशकश की थी तो कुछ ने बैंक की कमान संभालने का मौका गंवा दिया। पुरी ने स्टार्ट-अप की कमान संभालने के लिए 1993 में सिटीगु्रप में स्टॉक-ऑप्शंस को छोड़ दिया था। उन्हें तत्कालीन मुख्य कार्याधिकारी जॉन रीड द्वारा सिटी के वैश्विक फ्रेंचाइजी में प्रमुख-50 उभरते दिग्गजों में शामिल किया गया था।
एचडीएफसी बैंक आज एक प्रतिष्ठित ब्रांड है और निवेशकों को इसके शेयर के लिए अच्छी कीमत चुकानी होगी। ऐसे लोगों की संख्या कम है जो पुरी की तरह इतने लंबे समय तक अपनी जिम्मेदारी निभाते रहे। जोसफ नेउबेउर ने 31 वर्षों तक अरामार्क का नेतृत्व किया, रे ईरानी ने ऑक्सीडेंटल पेट्रोलियम में 21 साल तक जिम्मेदारी निभाई। यदि आप ऐसे प्रवर्तक-बॉस की सूची देखें जिन्होंने दुनियाभर में कंपनियों की कमान संभाली, तो नेउबेउर-ईरानी की जमात में पुरी हमारा अपना नाम है।
एचडीएफसी बैंक को उसकी जिस खासियत ने दूसरों से अलग बनाए रखा है वह यह है कि यह बैंक जोखिम घटाने में कामयाब रहा है। पहले दशक में, इसे ‘बोरिंग बैंक’ के तौर पर करार दिया गया था। इसमें पुरी के व्यक्तित्व के साथ बड़ा बदलाव आया।
1990 के दशक के मध्य में जब उसके कई प्रतिस्पर्धियों ने बाजार भागीदारी पर ध्यान दिया तो पुरी ने इसे नजरअंदाज कर दिया। बैंक पहली बार बाजार में सुरक्षित उत्पाद लाया, क्रेडिट-कार्ड 2000 में ही पेश किए गए थे। इसके पीछे रणनीति यह थी कि उस समय आपके पास व्यक्तिगत क्रेडिट रिकॉर्ड या क्रेडिट ब्यूरो का अभाव था, जिससे बैंक ने असुरक्षित (रीड क्रेडिट कार्ड) में फंसने से पहले सुरक्षित रिटेल पोर्टफोलियो से उभरते ट्रेंड का सबसे पहले समझने में सफलता हासिल की।
डिजिटल में बैंक के प्रवेश की बात की जाए तो पता चलता है कि 1999 के शुरू में ‘नेटबैंकिंग’ और उसके एक साल बाद ‘एसएमएस बैंकिंग’ की शुरुआत हुई और फिर ‘मोबाइल साइट’ (अब कोई नई बात नहीं है, लेकिन उस समय बैनिस्टर जैसी उपलब्धि थी) आई। उसके बाद पुरी ने ‘बैक आपकी मुट्ठी में’ की शुरुआत की जिससे आपका स्मार्टफोन बैंक शाखा में तब्दील हो गया। यह मोबाइल ऐप आईओएस, एंड्रॉयड और विंडोज पर काम करता था। पुरी ने यह सुनिश्चित किया कि बैंक हर नई तकनीक की पेशकश करे, चाहे वह डिजिटल वॉलेट हो या कॉन्टैक्टलेस पेमेंट।
जहां तक उनकी नेतृत्व शैली का सवाल है, तो वह झूठों और अक्षम लोगों को पसंद नहीं करते थे। वह समय के प्रति पाबंद थे। ऑफिस में सुबह ठीक 8.30 बजे पहुंचना और शाम 6 बजे जाना, उनका निर्धारित रुटीन था।