सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन (डीएचएफएल) की कर्ज समाधान योजना के लिए पीरामल के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है। शुक्रवार को इस घटनाक्रम के बाद दीवालिया हो चुकी इस आवास वित्त कंपनी के पटरी पर लौटने का रास्ता साफ हो गया है। दिसंबर 2019 से कंपनी का मामला दिवालिया न्यायालय में चल रहा था। इस बारे में एक बैंकर ने कहा कि अमेरिका की फंड ओकट्री का प्रस्ताव काफी पेचीदा था और उसकी योजना में कई खामियां थीं। बैंकों को भविष्य में जारी होने वाले बॉन्ड को लेकर भी भ्रामक जानकारियां दी गई थीं।
पीरामल अपने वित्तीय सेवा कारोबार का विलय डीएचएफएल में करना चाहती है और अपने सभी कर्मचारियों को बनाए रखना चाहती है। एक सूत्र ने कहा कि सभी सरकारी बैंकों के पीरामल की योजना के पक्ष में मतदान करने के बाद यह आवश्यक 66 प्रतिशत मतदान की शर्त पूरा करने में कामयाब रही है। पीरामल की पेशकश के पक्ष में उसे कुल मतों का 94 प्रतिशत प्राप्त हुआ। ओक को 45 प्रतिशत मत मिले। डीएचएफएल अपने कर्जदाताओं को 90,000 करोड़ रुपये के भुगतान में चूक गई थी, जिसके बाद कंपनी का मामला दिसंबर 2019 में दिवालिया न्यायालय पहुंच गया था। कंपनी के प्रवर्तक इस समय जेल में हैं और धन शोधन मामले में आरोपों का सामना कर रहे हैं।
पीरामल की योजना के बाद डीएचएफएल के कर्जदाता बैंकों के लिए अगले पांच वर्षों में 37,250 करोड़ रुपये वसूलना आसान हो जाएगा। अपने कुल भुगतान में पीरामल 12,700 करोड़ रुपये कर्जदाताओं को अग्रिम जमा करेगी। अधिक अग्रिम भुगतान करने का प्रस्ताव देने के कारण ही पीरामल की योजना बैंकों को पसंद आई। पीरामल की योजना के आधार पर डीएचएफएल के मौजूदा शेयरधारकों को शून्य मूल्यांकन मिलेगा। सावधि जमा धारकों ने दोनों योनजाओं के लिए मतदान नहीं किया। तीसरी बोलीदाता अदाणी का प्रस्ताव काफी कम आंका गया, इसलिए इस पर विचार नहीं हुआ।
बोली लगाने की समयसीमा समाप्त हो जाने के बाद ओकट्री ने अतिरिक्त 1,700 करोड़ रुपये की पेशकश की थी, लेकिन कर्जदाताओं ने इसे स्वीकार नहीं किया। कर्जदाताओं की समिति पीरामल की योजना पर अंतिम मुहर के लिए इसे राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) भेजेगी।
ऋणदाता अब ओकट्री के अगले कदम की प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि उसने चेतावनी दी थी कि उसकी पेशकश मंजूर न होने की स्थिति में वह कानूनी कार्रवाई करेगी। मतदान के ऐन पहले ऋणदाताओं को लिखे पत्र में ओकट्री ने कहा था कि सीओसी उसकी पेशकश में 2,700 करोड़ रुपये की कीमत कर रही है और इसीलिए उसके सलाहकार पीरामल समूह को वरीयता दे रहे हैं। इसमें 1,000 करोड़ रुपये की वह राशि शामिल है जो ओकट्री ने डीएचएफएल के जीवन बीमा कारोबार की भविष्य में होने वाली बिक्री से देने की बात की थी। इसमें 1,700 करोड़ रुपये की ब्याज आय भी शामिल है जिसकी पेशकश इस अमेरिकी फर्म ने 22 दिसंबर को बोली लगाने की समय सीमा समाप्त होने के दो दिन बाद ऋणदाताओं को की थी।
एक ऋणदाता ने कहा कि ओकट्री की पेशकश संदेह के घेरे में थी क्योंकि बीमा नियामक उसे बीमा कारोबार में हिस्सा रखने की इजाजत नहीं देगा क्योंकि अधिग्रहण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा का उल्लंघन करेगा क्योंकि 51 फीसदी हिस्सा पहले ही एक विदेशी साझेदार प्रामेरिका के पास है।
