यात्रियों के लिए एक खुशखबरी है, लेकिन यही बात भारी घाटे में चल रही एयरलाइंसों के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है।
जनवरी में बड़ी एयरलाइंस और सस्ती एयरलाइंस कंपनियों के मेट्रो रुटों के किराए में अंतर एक तिहाई तक कम हो चुका है। वजह है बड़ी एयरलाइंस कंपनियों का अपने किराए को कम करने की अथक कोशिशें।
उड्डयन सेक्टर की कंसल्टेंट सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (सीएपीए) के मुताबिक अक्टूबर-दिसंबर 2008 में एलसीसी और पूरी सेवा देने वाली विमान कंपनियों के किराये में तकरीबन 1500 रुपये का अंतर था, जो जनवरी 2009 में घटकर 500 से 750 रुपये रह गया है।
भारतीय विमान कंपनियों के कार्यकारी तो यहां तक सोचते हैं कि यह अंतर अब 500 रुपये से भी कम रह गया है। दिल्ली की एक विमान कंपनी के वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा, ‘ एलसीसी के औसत किराये में लगभग 45 फीसदी की कमी आई है और यह 3800 रुपये से घटकर 2100 रुपये रह गई है।
जबकि पूर्ण सेवा देने वाली विमान कंपनियों के किराये में 55 फीसदी की गिरावट हुई है और यह 5500 रुपये से घटकर 2500 रुपये हो गई है। अभी विमान किराया 2005-06 के स्तर को छू गया है।’ हालांकि किराये में कमी से भी यात्रियों की संख्या में कोई इजाफा नहीं हो रहा है।
कापा ने अनुमान लगाया है कि जनवरी 2009 में पिछले साल के मुकाबले यात्रियों की संख्या में 10 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है। इसलिए अब यह माना जा रहा है कि एलसीसी का हिस्सा भी पूर्ण सेवा देने वाली विमान कंपनियों की झोली में आ जाएगा। इसके अलावा जब तक बाजार की स्थिति नहीं सुधरती, तब तक लागत और आय के बीच बने अंतर को नहीं पाटा जा सकता है।
कपिल कौल कहते हैं, ‘एलसीसी और पूर्ण सेवा देने वाली विमान कंपनियों के किराये में हालांकि अंतर काफी कम हो गया है, लेकिन इसके बावजूद यात्रियों की संख्या में इजाफा नहीं हो रहा है। पूर्ण सेवा प्रदान करने वाली विमान कंपनियों की लागत काफी अधिक होती है, जिस वजह से किराया भी ज्यादा होता है। एलसीसी के साथ ऐसी बात नहीं होती है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि स्पाइसजेट ने दिसंबर में लाभ-अलाभ की स्थिति बनाई थी, लेकिन जनवरी में सब पर पानी फिर गया। इसकी वजह यह रही कि लागत के हिसाब से आमदनी नहीं हो पाई। मिसाल के तौर पर पूर्ण विमान सेवा प्रदान करने वाली कंपनी की प्रति व्यक्ति आय 1200 रुपये घटकर 1000 रुपये रह गई है, जबकि एलसीसी के संदर्भ में यह 600 रुपये से घटकर 500 रुपये रह गई है।
इसके अलावा पूर्ण सेवा देने वाली विमान कंपनियों की लागत एलसीसी की तुलना में चार गुनी अधिक है। इसलिए जब तक कीमतों में भारी गिरावट नहीं की जाती है, तब तक यात्रियों की संख्या बढ़ने के आसार नजर नहीं आते।
