बीएस बातचीत
रिजर्व बैंक के आंतरिक कार्य समूह ने हाल में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंकों में तब्दील करने की अनुमति देने का सुझाव दिया है। श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनैंस (एसटीएफसी) के प्रबंध निदेशक उमेश रेवणकर ने टीई नरसिम्हन से बातचीत में इसकी चुनौतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:
यह सिफारिश एनबीएफसी को किस प्रकार प्रभावित करेगी?
फिलहाल मुझे कोई इसका कोई बड़ा प्रभाव नहीं दिख रहा है। आरबीआई उद्योगपतियों को अपनी एनबीएफसी को बैंक में बदलने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना बना रहा है। ऐसा नहीं है कि आरबीआई पहली बार यह विकल्प दे रहा है। वर्ष 2016 में उसने सार्वभौमिक बैंकिंग लाइसेंस के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे और 2018 में लघु वित्त बैंकों की अवधारणा पेश की गई थी। पहले वित्तीय पेशेवरों के लिए यह विकल्प खुला था लेकिन अब उन्होंने इसे उद्योगपतियों के लिए खोल दिया है। ऐसा शायद इसलिए किया जा रहा है क्योंकि विलय संबंधी कवायद के कारण सरकारी बैंकों की संख्या कम हो गई है।
क्या आप बैंक बनने का विकल्प तलाशेंगे?
यदि हमें इसमें दिलचस्पी होती तो हम चार साल पहले ही इस ओर रुख करते।
आप इस पर विचार क्यों नहीं कर रहे हैं? आखिर इसमें क्या चुनौतियां हैं?
हम एक बड़े जहाज या विमान की तरह हैं और इसलिए ढांचे में बदलाव करना आसान नहीं है। किसी एनबीएफसी को बैंक में तब्दील करने के मुकाबले नए सिरे से बैंक की स्थापना करना आसान है, खासकर श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनैंस जैसी बड़ी एनबीएफसी के संदर्भ में। लोग और लागत प्रमुख चुनौतियां हैं। हमारे पास लगभग 25,000 कर्मचारी हैं। यदि हम बैंक बनने का निर्णय लेते हैं तो कर्मचारियों को नए सिरे से कुशल बनाने की आवश्यकता होगी। इससे कंपनी का वेतन ढांचा बदल जाएगा और कर्मचारी बिल काफी हद तक बढ़ जाएगा। इसके अलावा बैंक के संचालन की लागत अधिक है। आय के मुकाबले लागत को आमतौर पर किसी वित्तीय संस्थान की उत्पादकता को मापने का एक प्रमुख पैमाना माना जाता है। बैंकों के लिए यह लगभग 40 से 50 फीसदी है जबकि हमारे जैसे एनबीएफसी के मामले में यह करीब 23 से 24 फीसदी है। नकद आरक्षी अनुपात एवं अन्य वैधानिक नकदी प्रवाह अनुपात को एक निश्चित स्तर पर बनाए रखने की आवश्यकता भी एक चुनौती होगी। यदि हमें बैंक बनना होगा तो हमें अन्य तमाम सेवाएं शुरू करनी पड़ सकती है क्योंकि राजस्व में कोई खास वृद्धि हुए बिना हमारा दायित्व काफी बढ़ जाएगा। उधारी दरें भी कम हो जाएंगी। इसलिए यह (बैंकिंग) अधिक जोखिम और कम मार्जिन वाला कारोबार है।
क्या आप बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं करेंगे?
हम इसे पूरी तरह से खारिज नहीं कर रहे हैं। यदि हम चाहें तो यह कभी भी हासिल कर सकते हैं। यदि बाद में हमें लगा कि हम बैंक बनकर अपनी सेवाओं में सुधार कर सकते हैं तो हम लाइसेंस के लिए आवेदन करेंगे। अन्यथा हम अपने मौजूदा कारोबार से खुश हैं। साथ ही हम आरबीआई से कुछ सवाल करना चाहते हैं, खासकर एनबीएफसी के बारे में उसके दृष्टिकोण के बारे में। क्या उसे लगता है कि एनबीएफसी वित्तीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं? यदि ऐसा है तो हम एक एनबीएफसी के रूप में बरकरार रहना चाहेंगे। लेकिन यदि वह कहता है कि आप बैंक बनने के बाद भी एनबीएफसी के रूप में जो कुछ कर रहे हैं उसे जारी रख सकते हैं, तो हम निश्चित आश्वासन चाहेंगे।
किस प्रकार की एनबीएफसी इसका इस्तेमाल करेगी?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या बनना चाहते हैं और किसे अपनी सेवाएं प्रदान करना चाहते हैं। हम अंडरबैंक या अनबैंक्ड उधारकर्ताओं की सेवा पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। टाटा या बिड़ला को उधार देने की हमारी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं है। जो बड़े कॉरपोरेट को कर्ज देना चाहते हैं वे इस ओर रुख कर सकते हैं।