दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमत में जबरदस्त गिरावट के बावजूद सरकारी तेल कंपनियों के वैकल्पिक और अक्षय ऊर्जा पर शोध एवं विकास (आर ऐंड डी) कार्यों में होने वाले खर्चे में कमी नहीं आ रही।
बल्कि इन कंपनियों ने अपने इस तरह के कार्यक्रमों में अपनी रफ्तार को और बढ़ा दिया है। मिसाल के तौर पर देश की सबसे बड़ी तेल मार्केटिंग और रिफाइनिंग कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) ने इस साल अपने आर ऐंड डी खर्च को दोगुना कर 30 करोड़ रुपये से 60 करोड़ रुपये कर दिया है।
कंपनी बायोडीग्रेडेबल लुब्रिकैंट बनाने और तेल रिफाइनिंग तकनीकों सरीखे क्षेत्रों में शोध कर रही है।साथ ही कंपनी जल्द ही फरीदाबाद के अपने केंद्र में एक परीक्षण संयंत्र की शुरुआत करने वाली है। यहां कंपनी कोयले का गैसीकरण और जैव ईंधन से एथेनॉल के उत्पादन की तकनीक लगाएगी।
आईओसी के शोध एवं विकास के निदेशक आनंद कुमार का कहना है, ‘हम वैकल्पिक और अक्षय ऊर्जा के विभिन्न रूपों में निवेश को लेकर उत्साहित हैं।
अपने आर ऐंड डी केंद्र में हम पर्यावरण-अनुकूल लुब्रिकैंट के विकास और शैवाल से डीजल के उत्पादन पर ध्यान दे रहे हैं। हमारे आगे की आर ऐंड डी प्रक्रिया के लिए हम अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा संस्थानों के साथ गठजोड़ पर भी विचार कर रहे हैं।’
आईओसी ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों से पांच वैज्ञानिकों को उसके आर ऐंड डी केंद्र में काम के लिए नियुक्त किया है। सरकारी रिफाइनरी और तेल बेचने वाली कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) ने भी इस साल अपने आर ऐंड डी खर्च को 20 प्रतिशत बढ़ाकर 25 करोड़ से 30 करोड़ रुपये कर दिया है।
अगले वित्त वर्ष में खर्च में हो सकता है कि कंपनी इतना ही या इससे ज्यादा इजाफा करे। कंपनी का आर ऐंड डी के लिए ध्यान बायो डीजल और बायो लुबिक्रैंट, जैव ईंधन से बायो एथेनॉल, नैनोटेक्नोलॉजी और सोलर पीवी सेल पर है।
सरकारी रिफाइनरी की योजना अगले तीन से पांच साल में हाइड्रोजन फ्यूल सेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर 1,000 मेगावाट बिजली बनाने पर भी है। आजकल इस्तेमाल होने वाले फ्यूचल सेल में बतौर रसायन हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है।
जहां कंपनियां वैकल्पिक ऊर्जा को लेकर खासी उत्साहित हैं, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतें काफी गिर रही हैं, ऐसे वक्त में वैकल्पिक ऊर्जा में निवेश करना बेहद आकर्षित नहीं कर रहा।
कच्चे तेल की कीमतें पिछले साल जुलाई में 147 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से लगभग 66 प्रतिशत घटकर इस समय लगभग 49 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर हैं। लेकिन कुमार इस बात से इत्तफाक नहीं रखते।
उनका कहना है, ‘कोई भी कंपनी अपने आर ऐंड डी कार्यों को कच्चे तेल की कीमतों पर निर्भर नहीं रह सकती। कई बार शोध में पांच से दस साल का समय लग जाता है। अगर हम इसे तेल की कीमतों के आधार पर बदलते रहे, तो इस पर लगा हमारा काफी समय और पैसा बर्बाद हो जाएगा।’
निजी तेल कंपनियों में देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस साल अपने सभी कारोबारों में आर ऐंड डी के लिए 308.34 करोड़ रुपये तय किए हैं। यह रकम पिछले साल कंपनी की ओर से खर्च किए गए 324 करोड़ रुपये से कम है।
उच्च गुणवत्ता वाले बायो डीजल ईंधन के लिए आरआईएल ने आंध्र प्रदेश की सरकार के साथ जट्रोफा की खेती के लिए एक औपचारिक करार किया है।
इसके लिए कंपनी ने काकीनाडा में 200 एकड़ की जमीन चुनी है। माना जा रहा है कि नैनो टेक्नोलॉजी कंपनी के शोध का दूसरा क्षेत्र होगी।