प्रवर्तन निदेशालय ने पाया है कि करीब एक दर्जन मुखौटा व निष्क्रिय इकाइयों का इस्तेमाल कथित तौर पर मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट के 310 करोड़ रुपये की हेराफेरी में किया गया, जिसका एक हिस्सा वापस जीवीके समूह के प्रवर्तकों के पास भेजा गया और यह काम जटिल लेनदेन के जरिए हुआ।
निदेशालय जीवीके समूह, उसके चेयरमैन व प्रवर्तक जीवीके रेड्डी व अन्य के खिलाफ धनशोधन के मामले की जांच कर रही है, जो मुंबई एयरपोर्ट के डेवलपमेंट में 705 करोड़ रुपये की कथित हेराफेरी को लेकर है। प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी ने कहा, इन मुखौटा फर्मों ने एयरपोर्ट के पास जमीन विकसित करने के लिए मायल के साथ फर्जी अनुबंध किए, लेकिन वास्तव में ये अनुबंध कभी क्रियान्वित नहीं हुए। मायल व इन मुखौटा कंपनियोंं के विभिन्न लेनदेन के विश्लेषण से पता चलता है कि करीब 50 करोड़ रुपये प्रवर्तक के नियंत्रण वाली कंपनी के पास वापस आए।
समझा जाता है कि निदेशालय ने पिछले हफ्ते मायल के मुख्य कार्याधिकारी राजीव जैन को समन भेजा और उनसे पूछताछ की। उनसे अनुबंध के बारे मेंं जानकारी ली गई और यह भी पूछा गया कि एयरपोर्ट की जमीन विकसित करने के लिए निष्क्रिय कंपनी को अनुबंध देने की क्या वजह थी। सूत्रों ने कहा, कुछ और अधिकारियों से पूछताछ की जा सकती है।
इस बारे में जानकारी के लिए भेजे गए ईमेल के जवाब में जीवीके के प्रवक्ता ने कहा, लगाए गए आरोप पूरी तरह निराधार हैं। प्रवर्तन निदेशालय अभी सीबीआई के एफआईआर में लगाए गए आरोपों की जांच कर रहा है और अभी तक इस जांच से संबंधित आरंभिक तथ्यों के के बारे में हमें पता नहीं है। मायल व जीवीके निदेशालय के साथ सहयोग कर रही है और उन्हें जरूरी सूचना व दस्तावेज मुहैया करा रही है ताकि जांच पूरी हो।
इसके अलावा साल 2012 से जीवीके ने कथित तौर पर मायल के 395 करोड़ रुपये सरप्लस का इस्तेमाल समूह कंपनियों के वित्त पोषण में किया। सूत्रों ने कहा कि जीवीके समूह के यहां तलाशी अभियान में अधिकारियों ने कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेजी सबूत जब्त किए थे, जो बताते हैं कि सरप्लस फंड जीवीके प्रवर्तकों की अन्य कंपनियोंं को कथित तौर पर कर्ज के तौर पर दिए गए।
मायल, जीवीके समूह, एयरपोर्ट अथॉरिटी और विदेशी इकाइयों का संयुक्त उद्यम है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ने एयरपोर्ट के परिचालन, प्रबंधन और उसे विकसित करने के लिए दो अन्य के साथ करार किया है। साल 2017 और 2018 में एयरपोर्ट अथॉरिटी ने जीवीके को 200 एकड़ अर्धविकसित जमीन दोबारा विकसित करने के लिए दी थी। तब मायल ने 310 करोड़ रुपये इन फर्मों को हस्तांतरित किए थे, जिस पर इन कंपनियोंं ने फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट का फायदा भी उठाया, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ।
प्रवर्तन निदेशालय की जांच सीबीआई की तरफ से दर्ज जुलाई की एफआईआर पर आधारित है।