पुणे के समीप पहाड़ी में विकसित दिवालिया रियल एस्टेट इकाई लवासा कॉर्पोरेशन को खरीदने के लिए एक भी बोलीदाता ने व्यवहार्य वित्तीय योजना पेश नहीं की। इससे लवासा के ऋणदाता मायूस हैं। इसके लिए अंतिम बोली आज खोली गई थी। घटनाक्रम के जानकार सूत्र ने बताया कि कोई भी बोलीदाता 5 करोड़ रुपये तक का भी अग्रिम नकद देने को तैयार नहीं हैं।
अंतिम समय में दुबई की फंड कंपनी रॉयल पार्टनर्स ने बोली लगाई लेकिन ऋणदाताओं के लिए वह उत्साहजनक नहीं रही क्योंकि बोलीदाता ने पहले ही दिवालिया कंपनी से अपना समर्थन वापस ले लिया था। पुणे के बिल्डर अनिरुद्घ देशपांडे ने अमेरिका के फंड इंटरप्स के साथ संयुक्त बोली लगाई थी। लेकिन ऋणदाता उनकी पेशकश से खुश नहीं हैं। हल्दीराम स्नैक्स प्राइवेट लिमिटेड ने पहले चरण में लवासा में दिलचस्पी दिखाई थी लेकिन उसने एक भी बोली नहीं जमा कराई। लवासा को 2018 में 8,000 करोड़ रुपये के कर्ज भुगतान में चूक करने के कारण दिवालिया अदालत में भेजा गया था।
महामारी के कारण रियल एस्टेट की मांग घटने से ओबेरॉय रियल्टी जैसे कुछ अन्य बोलीदाताओं ने हाथ खींच लिए। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों को ऐसी कंपनी की बोली लगाने से रोक लगाने के बाद यूवी एआरसी भी पीछे हट गई। सूत्रों ने कहा, ‘नीलामी पूरी तरह नाउम्मीद रही और बैंक अब कंपनी को परिसमापन में भेजने पर विचार करेंगे।’
मूल रूप से 2000 में एचसीसी द्वारा स्थापित लवासा को पुणे के समीप आकर्र्षक स्थान पर विकसित किया गया था। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2010 में परियोजना पर काम रोकने के आदेश जारी करने के बाद कंपनी बैंक कर्ज भुगतान नहीं कर पाई।
लवासा में बने होटलों में भी वीरानी छाई है और महामारी की वजह से सप्ताहांत पर यहां आने वाले भी इक्के-दुक्के ही बचे हैं। ऐक्सिस बैंक ने कंपनी पर सबसे ज्यादा 1,266 करोड़ रुपये का दावा किया है। अन्य कर्जदाताओं में भारतीय स्टेट बैंक भी शामिल है। ऋणदाताओं की समिति ने पहले राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट से लवासा को एकीकृत इकाई के तौर पर बेचने की अनुमति मांगी थी लेकिन इसके बावजूद अच्छी बोलियां नहीं मिलीं। भारतीय स्टेट बैंक ने कंपनी के खातों का दूसरा फॉरेंसिक ऑडिट कराने की भी मांग की है।
