सरकार यदि वोडाफोन आइडिया लिमिटेड का परिचालन बरकरार रखने के लिए राहत देना चाहती है तो उसे पर्याप्त भुगतान के साथ-साथ वित्त वर्ष 2023 में राजस्व को छोडऩा पड़ेगा। सरकार को पूरे क्षेत्र के लिए समान प्रोत्साहन की घोषणा करनी पड़ेगी जिससे उसे राजस्व का नुकसान हो सकता है।
उद्योग के आकलन के अनुसार, उद्योग को स्पेक्ट्रम के लिए किस्तों में 21,000 करोड़ रुपये से 25,000 करोड़ रुपये तक का भुगतान करना है जिसके लिए वोडाफोन आइडिया ने मोहलत को एक साल और बढ़ाने मांग की थी। सरकार यदि इसकी अनुमति देती है तो इसका मतलब साफ है कि उसे लगातार तीसरे वर्ष किस्तों का भुगतान गंवाना पड़ेगा। दो साल के लिए मोहलत पहले ही दी जा चुकी है। हालांकि भुगतान की रकम को ब्याज के साथ शेष वर्षों के लिए समायोजित किया जाता है तो योजना अपरिवर्तित रहेगी।
दूरसंचार ऑपरेटरों के संगठन सीओएआई के आकलन के अनुसार, उद्योग पर कुल लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोगिता शुल्क का सालाना बोझ 17,000 करोड़ रुपये से अधिक है। हालांकि दूरसंचार उद्योग और वोडाफोन आइडिया उसे घटाने के लिए दबाव डाल रहे हैं। वे चाहते हैं कि लाइसेंस शुल्क एजीआर के 4 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी और स्पेक्ट्रम उपयोगिता शुल्क को घटाकर आधा किया जाना चाहिए। इसका मतलब साफ है कि सरकारी खजाने के लिए भुगतान में कमी।
एक तीसरा मुद्दा भी जिसके लिए वोडाफोन आइडिया आगे बढ़ रही है। कंपनी उम्मीद कर रही है कि सरकार जीएसटी रिफंड का भुगतान करेगी। यदि उस मांग को स्वीकार कर लिया जाता है तो सरकार को दूरसंचार कंपनियों को कुल मिलाकर 35,000 करोड़ रुपये की मोहलत देनी पड़ेगी जिसे फिलहाल वह बकाया कहती है।
दूसरी ओर यदि वोडाफोन आइडिया का परिचालन बंद होता है तो जाहिर तौर पर सरकार को राजस्व का नुकसान होगा। उदाहरण के लिए, पिछले साल सीओएआई के एक आकलन में कहा गया था कि जीएसटी, लाइसेंस शुल्क और एसयूसी भुगतान के कारण सरकार के राजस्व मेें 17,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। यह आकलन इस आधार पर किया गया था कि वोडाफोन आइडिया का परिचालन अगले 14 वर्षों तक बरकरार रहेगा। जाहिर तौर पर सरकार को एक संतुलित रुख अपनाने की जरूरत होगी।
दूरसंचार विभाग के सूत्रों ने कहा कि इस क्षेत्र के लिए संभावित रियायत पर चर्चा जारी है। वोडाफोन आइडिया के चेयरमैन कुमारमंगलम बिड़ला ने यह कहते हुए सरकार को पहले ही पत्र लिख चुके हैं कि कंपनी को बचाने के लिए वह किसी भी सरकारी अथवा घरेलू वित्तीय संस्थान को अपनी हिस्सेदारी देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि स्पेक्ट्रम भुगतान, एजीआर देनदारी और आधार मूल्य निर्धारण व्यवस्था पर मोहलत के लिए सरकार की मदद के बिना कंपनी खत्म हो जाएगी।
उधर, एसबीआई के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा ने कहा कि फिलहाल कोई दबाव नहीं है। केवल एक ऐसा खाता है जहां निवेश अधिक है और हम उस पर करीबी से नजर रख रहे हैं। कुल मिलाकर दूरसंचार क्षेत्र ठीक है। बैंक किसी भी संभवित खतरे से निपटने के लिए बहीखाते को दुरुस्त करने की हरसंभव पहल करेगा।