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…कोई लौटा दे विज्ञापन के वो दिन!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 7:29 PM IST

मीडिया क्षेत्र में विज्ञापन दरों में उतार-चढ़ाव और मौजूदा आर्थिक मंदी की वजह से विज्ञापनों का अभाव पैदा होता जा रहा है।
मीडिया में विज्ञापन पहले जहां 3 से 6 महीने की अवधि के लिए दिए जाते थे, वहीं अब यह चक्र घट कर 1 से 2 महीने का रह गया है।
स्ट्रेटेजिक इन्वेस्टमेंट्स, इंडिया मीडिया एक्सचेंज (आईएमएक्स) की प्रमुख मोना जैन कहती हैं, ‘मौजूदा आर्थिक मंदी के कारणं बाजार बेहद गतिशील है। सभी चैनल  दरों पर पुनर्विचार कर रहे हैं। इस वजह से दरों में बदलाव जारी है। इसे देखते हुए विज्ञापनदाताओं ने इंतजार करो और देखो की नीति अपनाई है। वे अपना मीडिया खर्च संक्षिप्त अवधि के लिए करने की योजना बना रहे हैं।’
मांग और आपूर्ति के अंतर ने भी चैनलों और प्रकाशकों को दर में बदलाव के लिए प्रेरित किया है। इनके पास पर्याप्त एयरटाइम और एड स्पेस है, लेकिन कुछ चैनल और प्रकाशक ही इसका फायदा उठाने में कामयाब हो रहे हैं।
स्टारकॉम वर्ल्डवाइड के प्रबंध निदेशक (भारत-पश्चिम एवं दक्षिण) संदीप लखिना स्वीकार करते हुए कहते हैं, ‘विज्ञापन खर्च का चक्र लंबी अवधि के बजाय गिर कर 1 से 2 महीने रह गया है।’ अलायड मीडिया के सीओओ श्रीपाद कुलकर्णी कहते हैं कि अक्सर यह कम अवधि के लिए है।
मुद्रा गु्रप के सीओओ प्रताप बोस इस बात पर सहमति जताते हैं कि ग्राहक बड़े और व्यापक रूप से खर्च करने से परहेज कर रहे हैं। एफएमसीजी कंपनियों को छोड़ कर, अन्य सभी श्रेणियां संक्षिप्त अवधि की तरफ ध्यान दे रही हैं। कोई भी सालाना योजना के तहत विज्ञापन देने के लिए आगे नहीं आ रहा है।
लखिना कहते हैं कि इससे योजनाकारों की व्यस्तता बढ़ गई है। उन्होंने कहा, ‘कंपनियों की मार्केटिंग टीमें बड़े पैमाने पर धन जारी नहीं कर रही हैं और आरओआई का बेहद सख्ती से आकलन कर रही हैं। ऐसे में अब हम पर दबाव अधिक बढ़ गया है।’
जैन ने कहा, ‘हम समय से अधिक काम कर रहे हैं। दरों को लेकर लगातार मोलभाव ने हमारी चिंता बढ़ा दी है।’ कुलकर्णी का कहना है कि आगामी महीने और अधिक मुश्किल भरे होंगे, क्योंकि उस दौरान आईपीएल और आम चुनाव के कारण पुनर्नियोजन का काम बढ़ जाएगा। विज्ञापनदाता दर्शकों की संख्या के मुताबिक ही विज्ञापनों पर खर्च करने के लिए संबद्ध चैनलों का चुनाव करेंगे।
मनोरंजन चैनल रियल की शुरुआत भी आगामी महीनों की योजनाओं में कुछ लहर पैदा कर सकती है। विज्ञापनदाता जीईसी श्रेणी की टीआरपी पर फिर से ध्यान केंद्रित करेंगे और इसी के मुताबिक अपनी योजना बनाएंगे।
जब कलर्स चैनल लॉन्च हुआ और सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने लगा तो सोनी, स्टार और जी की रेटिंग लडख़ड़ानी शुरू हो गई। इस बार विज्ञापनदाताओं ने दीर्घावधि को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है।

First Published : March 10, 2009 | 5:26 PM IST