भारत में जिस तेजी से दूरसंचार क्षेत्र का विकास हो रहा है, उसे देखते हुए जानकारों का कहना है कि अगले दो सालों में दूरसंचार उपकरणों का भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन सकता है।
दूरसंचार कंपनियों की नजर भारत के 600 से 800 अरब रुपये (15 से 20 अरब डॉलर) के दूरसंचार उपकरण बाजार पर है। जानकारों का कहना है कि इस होड़ में कीमत सबसे अहम होगी। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र में 6-7 नए खिलाड़ी आ रह हैं, वहीं 3जी सेवा के लिए नई कंपनियां मैदान में होंगी।
उनके मुताबिक, कम कीमत की वजह से ही यूरोपीय प्रभुत्व वाला दूरसंचार बाजार धीरे-धीरे चीन की ओर खिसक रहा है। उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि एरिक्सन, अल्काटेल, नोकिया-सीमंस जैसी यूरोपीय कंपनियों का करीब 75 फीसदी भारतीय दूरसंचार बाजार पर कब्जा है।
हालांकि वर्तमान में चीनी कंपनियों को मिले ऑर्डर और अनुमान के मुताबिक, चीन की प्रमुख दूरसंचार उपकरण निर्माता कंपनी हुवावेई और जेडटीई का आने वाले समय में भारतीय बाजार पर 50 फीसदी का कब्जा हो जाएगा। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के महानिदेशक टी.वी. रामचंद्रन भी इस बात को स्वीकारते हैं कि भारत दूरसंचार क्षेत्र में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन सकता है।
उनके मुताबिक, यहां दूरसंचार क्षेत्र में चीन की तुलना में तेजी से विकास हो रहा है। अनुमान के मुताबिक, 2010 तक भारत में 50 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता होंगे, जिसके लिए कंपनियों की ओर से 640-800 अरब रुपये के उपकरण खरीदने होंगे। चीनी कंपनियां इनमें से बड़ा हिस्से पर कब्जा जमाने में लगी हैं।
हुआवेई के अधिकारियों को उम्मीद है कि वर्ष 2010 तक वे करीब 20 अरब रुपये के ऑर्डर हासिल करने में सफल हो सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, अगले दो साल के दौरान 5 दूरसंचार कंपनियों की ओर से तकरीबन 20 अरब रुपये के 3जी उपकरणों का ऑर्डर दिया जाएगा। दरअसल, इन कंपनियों को अलगे साल जुलाई तक 3जी सेवा शुरू करने के लिए स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाना है।
जेडटीई इंडिया के प्रबंध निदेशक डी.के. घोष का कहना है कि भारत के कुल दूरसंचार बाजार में हमारी कंपनी की हिस्सेदारी 20 फीसदी रहने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि चाइनीज उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर है, जबकि मूल्य अन्य की तुलना में कम है।
चीनी कंपनियों का कहना है कि उनके उत्पादों की कीमत अन्य के मुकाबले 10 से 15 फीसदी कम है, जबकि गुणवत्ता के मामले में वे किसी से कमतर नहीं है। यही नहीं, भारत में उत्पाद शुल्क (34 से 38 फीसदी) अदा करने के बाद भी इसकी कीमत अन्य के मुकाबले कम ही पड़ती है।
सूत्रों का कहना है कि बीएसएनएल 9.3 करोड़ जीएसएम लाइन के लिए ऑर्डर दे चुकी है। उधर, हुआवेई को रिलायंस कम्युनिकेशंस से 52 अरब रुपये का ऑर्डर मिल चुका है, जबकि एयरसेल से भी कंपनी को बड़े ऑर्डर मिले हैं।
यूरोपीय कंपनियों का कहना है कि चीनी कंपनियों का दबदबा बहुत दिनों तक नहीं रह सकता। यूरोपीय दूरसंचार कंपनी के एक अधिकारी का कहना है कि चीनी कंपनी कीमतों के मामले में तो आगे आ सकती हैं, लेकिन उपभोक्ता बेहतर उपकरण और सेवा की मांग करते हैं। इसमें यूरोपीय कंपनियां खरी उतरती हैं।
अगले दो सालों में 600 से 800 अरब रुपये के ऑर्डर मिलने की उम्मीद
चीनी और तमाम यूरोपीय कंपनियों की है भारतीय बाजार पर नजर