वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में बहुप्रतीक्षित 5जी नीलामी इस साल शुरू होने की घोषणा की है मगर इसमें एक और बड़ी अड़चन है। प्रतिस्पर्धी दूरसंचार कंपनियों में इस पर रजामंद नहीं हैं कि सरकार द्वारा पहले से ही चिह्नित स्पेक्ट्रम में से कितने के लिए आगामी नीलामियों में बोलियां आमंत्रित की जाएं।
एयरटेल ने नियामक को पत्र लिखकर कहा है कि 3.5 गीगाहट्र्ज बैंड में नीलाम होने वाले 5जी स्पेक्ट्रम की मात्रा 370 मेगाहट्र्ज से घटाकर 240 मेगाहट्र्ज की जाए। उसका कहना है कि अवरोध मुक्त स्पेक्ट्रम की ही नीलामी होनी चाहिए। लेकिन रिलायंस जियो की अगुआई में अन्य दूरसंचार कंपनियां चाहती हैं कि पूरे चिह्नित स्पेक्ट्रम की नीलामी होनी चाहिए। उनका कहना कि इस बैंड में कम से कम 100 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम होना एक वैश्विक मानक है और कोई 5जी नेटवर्क इसके बिना हाई स्पीड सेवाएं और कम लेटेंसी मुहैया कराने के बावजूद ग्राहकों को नहीं लुभा पाएगा।
एयरटेल ने ट्राई से कहा कि केवल 3.43 गीगाहट्र्ज से 3.67 गीगाहट्र्ज के बीच के स्पेक्ट्रम (कुल 240 मेगाहट्र्ज) की नीलामी की जाए क्योंकि यह सभी बाहरी व्यवधानों से मुक्त है। हालांकि 3.3 से 3.43 गीगाहट्र्ज के बीच के स्पेक्ट्रम (कुल 130 मेगाहट्र्ज) को अन्य उपयोगकर्ताओं के खाली करने तक नीलाम नहीं किया जाए। 5जी के लिए चिह्नित कुल 3.5 बैंड 3.3 गीगाहट्र्ज से लेकर 3.67 गीगाहट्र्ज तक (370 मेगाहट्र्ज) हैं।
रिलायंस जियो और अन्य दूरसंचार कंपनियों ने इस कदम का विरोध करते हुए सुझाव दिया कि 3.3 से 3.67 गीगाहट्र्ज पूरे समेत पूरे सी-बैंड की नीलामी की जाए। जियो ने भी कहा है कि व्यवधान रहित स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए ट्राई को रैंक आधारित नीलामी (जो 900 मेगाहट्र्ज के लिए की जाती है) करनी चाहिए, जिसमें पहली रैंक के बोलीदाता को बैंड में अपना तरजीही स्लॉट दिया जाएगा।
इन दूरसंचार कंपनियों का तर्क है कि वैश्विक रुझानों के हिसाब से ज्यादातर देश प्रत्येक दूरसंचार कंपनी को कम से कम 100 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम मुहैया करा रहे हैं। देश में 370 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट््रम की नीलामी की जा रही है, इसलिए तीनों निजी कंपनियों में से प्रत्येक को अधिकतम 100 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम मिलेगा जबकि 70 मेगाहट्र्ज बीएसएनएल के लिए आरक्षित होगा।
लेकिन एयरटेल के प्रस्ताव के आधार पर प्रत्येक दूरसंचार कंपनी के लिए औसत स्पेक्ट्रम की सीमा काफी कम 60 मेगाहट्र्ज तय होगी, जो 5जी सेवाओं के परिचालन के लिए पर्याप्त नहीं है। इसकी वजह यह है कि कम स्पेक्ट्रम से नेटवर्क बिछाने की पूंजीगत लागत और परिचालन की लागत बढ़ जाएगी, जिससे ग्राहकों के लिए सेवाएं ज्यादा महंगी हो जाएंगी।
ट्राई नीलामी पर भागीदारों की राय ले रहा है और इसके बाद इस विवादास्पद मुद्दे पर दूरसंचार विभाग को अपनी अंतिम सिफारिशें देगा।
एक दूरसंचार कंपनी के वरिष्ठ कार्याधिकारी ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि दूरसंचार कंपनियां नहीं चाहतीं कि उनके प्रतिस्पर्धी 100 मेगाहट्र्ज तक स्पेक्ट्रम खरीदें और उपलब्धता घटाकर उनका दायरा सीमित करना चाहती हैं। रक्षा और अंतरिक्ष विभाग समाधान निकालने में बहुत अधिक सहयोग कर रहे हैं फिर भी यह स्थिति है।’ उनका तर्क है कि कुछ दूरसंचार कंपनियां खुद पर वित्तीय दबाव के कारण ज्यादा स्पेक्ट्रम नहीं खरीदना चाहती हैं।