बीएस बातचीत
वाडिया समूह के स्वामित्व वाली विमानन कंपनी गो एयरलाइंस ने हाल में अपना नाम बदलकर गो फर्स्ट रखने की घोषणा की थी। विमानन कंपनी अब आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिये पूंजी बाजार से 3,500 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बना रही है। गो फस्र्ट के वाइस चेयरमैन बेन बल्डान्जा ने अरिंदम मजूमदार और अनीश फडणीस से बातचीत में विमानन कंपनी के लिए अपनी योजनाओं के बारे में खुलकर चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:
अगले पांच साल में आप गो फस्र्ट को आप कहां देखते हैं?
हमारा मानना है कि गो फस्र्ट इंडिगो के बाद दूसरे पायदान पर काफी मजबूती से रहने जा रही है। हालांकि हम अलग तरीके से ध्यान केंद्रित करेंगे। इंडिगो क्षेत्रीय विमानों के साथ-साथ एयरबस ए320 भी उड़ाती है, कई बड़े शहरों के बीच उसकी उड़ानी की संख्या भी अधिक है और वह काफी कॉरपोरेट यात्रियों को अपनी सेवाएं उपलब्ध कराती है। उसकी 50 फीसदी हिस्सेदारी काफी आकर्षक है लेकिन उसकी विवशता भी है। हम गो फस्र्ट को शेष 50 फीसदी हिस्सेदारी के लिए स्पष्ट तौर पर विजेता के रूप में देखना चाहते हैं। वास्तव में हमें स्पाइसजेट, एयर इंडिया, विस्तारा और एयरएशिया से प्रतिस्पर्धा दिख रही है।
आपकी विमानन कंपनी ने बेहद सस्ती विमानन सेवा (यूएलसीसी) के तौर पर खुद को स्थापित किया है। ऐसे में ग्राहक किस प्रकार के बदलाव की उम्मीद कर सकते हैं?
हम उन ग्राहकों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त विमानन कंपनी होंगे जो टिकटों का भुगतान खुद करते हैं। वास्तव में यूएलसीसी मॉडल का मतलब यह है कि हम अवकाश और छोटे कारोबारी यात्रियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे न कि कॉरपोरेट ग्राहकों पर। इसलिए हम मुंबई और दिल्ली के बीच हमारी दर्जनभर उड़ान नहीं होगी।
भारतीय नियामक आपको कुछ सेवाओं पर शुल्क लगाने की अनुमति संभवत: नहीं दे सकते। क्या इससे आपकी योजनाएं प्रभावित नहीं होंगी?
जहां तक नियामकीय परिवेश का सवाल है तो आप यूरोप में जो कर सकते हैं वह अमेरिका या भारत के मुकाबले अलग हो सकता है। हम बुनियादी सिद्धांतों का पालन करेंगे और उन ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो टिकट का भुगतान खुद करते हैं। इस प्रकार का ग्राहक वर्ग में कम उम्र के लोग शामिल हैं जो अक्सर यात्रा करते हैं और डिजिटल तकनीक के जानकार हैं। समय के साथ-साथ हम सामान आदि पर अलग से शुल्क लगाकर टिकट के दाम घटा सकते हैं। यदि कुछ नियमों में ढील दी जाए तो यह यात्रियों के लिए अच्छा रहेगा। हालांकि हम विवश महसूस नहीं करते हैं।
मुंबई-दिल्ली जैसे महानगरीय मार्गों पर ध्यान देने के बजाय नए मार्ग खोलने से लागत बढ़ सकती है। इस पर आप क्या कहेंगे?
हमारा मानना है कि कई ऐसे बाजार हैं जहां एयरबस ए320 के जरिये परिचालन किया जा सकता है। फिलहाल हम इनमें से कुछ बाजारों में उड़ान भरते हैं तो कुछ में नहीं। जब हम नई नॉन-स्टॉप उड़ान सेवा शुरू करेंगे तो इनमें से कुछ रोजाना एक ट्रिप के लिए दमदार बाजार के तौर पर उभर सकते हैं। इन बाजारों में सफलता के लिए आपको सुबह, दोपहर और शाम की उड़ानों की जरूरत नहीं होगी क्योंकि आमतौर पर कॉरपोरेट बाजार के लिए ऐसा किया जाता है। जहां तक लागत का सवाल है तो यदि विमान का उपयोग अच्छी तरह से किया जाए तो वह अधिक नहीं होगी। यदि विमान रोजाना छह ट्रिप की उड़ान भरता है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह सभी उड़ान दिल्ली के लिए है अथवा पुणे, लखनऊ अथवा श्रीनगर के लिए।
मौजूदा मांग परिदृश्य को आप किस प्रकार देखते हैं?
मौजूदा परिस्थिति काफी अस्थायी है। अगले 6 से 12 महीनों के दौरान हम किसी तरह सामान्य स्थिति में आ जाएंगे। एक अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत में विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं और कोविड-19 उसकी रफ्तार को धीमा कर सकता है लेकिन उसे खत्म नहीं कर सकता। भारत में महज 700 विमान हैं जबकि चीन में करीब 4,000। इसलिए विमानन क्षेत्र काफी व्यस्त लेकिन छोटा है। इंडिगो के 60 फीसदी से 80 फीसदी तक पहुंचने की संभावना नहीं दिखती है जबकि गो फस्र्ट 10 फीसदी से 20 फीसद तक पहुंच सकती है।