ऐसा लग रहा है कि भारतीय रेडिमेड गारमेंट के निर्यातकों के प्रति बेरुखी अभी कुछ महीने और जारी रहेगी।
अंतरराष्ट्रीय खरीदार अभी भी कम लागत वाले रेडिमेड गारमेंट बनाने वाले देश बांग्लादेश और वियतनाम को ही तरजीह दे रहे हैं। मुद्रा की कमजोरी, बैंक की कम होती दरें और प्रतिस्पर्द्धी मूल्य के बावजूद अमेरिका को रेडिमेड गारमेंट के निर्यात में कमी देखी जा रही है।
भारत के रेडिमेड गारमेंट का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका है। अमेरिका भारत से सालाना 70 अरब डॉलर का टेक्सटाइल उत्पाद खरीदता है। यह हिस्सा भारत द्वारा टेक्सटाइल निर्यात के कुल हिस्सा का एक चौथाई है।
हालांकि मौजूदा वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से अमेरिका में एपेरेल की मांग में कमी आई है, और इसका प्रभाव भारतीय निर्यातकों पर बुरा पड़ा है। अगर जनवरी 2009 से फरवरी 2009 में गारमेंट निर्यात की तुलना की जाए, तो इसमें 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
फरवरी 2009 में भारत से 3.02 अरब डॉलर का गारमेंट निर्यात किया गया, जो जनवरी 2009 में 3.05 अरब डॉलर था। विशेषज्ञों का कहना है कि खरीदार इस विषम परिस्थिति में कम से कम कीमत पर गारमेंट खरीदना चाहते हैं। यही वजह है कि रिटेलर अब गारमेंट की खरीदारी के लिए सस्ते लोकेशनों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।
ताजा आंकड़ों को देखें, तो चीन, वियतनाम और बांग्लादेश की हिस्सेदारी अमेरिकी बाजार में इन दिनों बढ़ गई है, जबकि भारत का हिस्सा इस बाबत कम हुआ है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारतीय टेक्सटाइल और एपेरेल निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार में टिके रहना मुश्किल लग रहा है।
भारतीय टेक्सटाइल उद्योग परिसंघ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि लोअर प्राइस रियलाइजेशन के बावजूद रेडिमेड गारमेंट खंड को अमेरिकी बाजार में ज्यादा तवाो नहीं मिल रही है। सबसे बुरी स्थिति तो यह है कि गारमेंट निर्यात में भारत, बांग्लादेश से भी पीछे है। बांग्लादेश अमेरिका को गारमेंट निर्यात करने में पांचवे पायदान पर है और उम्मीद है कि आगे भी यह जारी रहेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश में बनने वाले रेडिमेड गारमेंट सस्ते होने की वजह से बाजी मार ले रहे हैं। भारतीय परिधान निर्माण संगठन के अध्यक्ष राहुल मेहता के मुताबिक, ‘हमारे निर्यातकों के पास ऑर्डर हैं, लेकिन इसमें काफी अनिश्चितताएं रहती है।
उम्मीद की जा रही है कि सारी स्थितियां सामान्य होने में एक-डेढ़ साल का वक्त तो लग ही जाएगा।’ दरअसल, मंदी के चलते निर्यातकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
