दिल्ली हाईकोर्ट ने बाबा रामदेव की कंपनी पंतजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurved) को उसके च्यवनप्राश विज्ञापन तुरंत हटाने का आदेश दिया है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, यह आदेश डाबर इंडिया लिमिटेड की ओर से दायर शिकायत के बाद दिया गया, जिसमें पतंजलि पर भ्रामक और प्रतिद्वंद्वी उत्पादों को बदनाम करने वाले दावे करने का आरोप लगाया गया था।
विवाद उस विज्ञापन को लेकर उठा, जिसमें पतंजलि के संस्थापक स्वामी रामदेव नजर आ रहे हैं। विज्ञापन में वे अन्य च्यवनप्राश ब्रांड्स की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हुए कहते हैं: “जिनको आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं, चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवन ऋषि की परंपरा में ‘असली’ च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे?”
डाबर ने इस विज्ञापन पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इसमें पतंजलि अपने उत्पाद को ‘असली’ साबित करने की कोशिश कर रही है, जबकि अन्य ब्रांड्स के उत्पादों को अप्रत्यक्ष रूप से ‘साधारण’ बताया गया है। डाबर ने यह भी कहा कि यह सीधा हमला उसके उत्पाद पर है, जो खुद को ‘40+ जड़ी-बूटियों’ से युक्त बताता है और भारतीय च्यवनप्राश बाजार में 60 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखता है।
डाबर की ओर से अदालत को बताया गया कि पतंजलि के दावे तीन स्तर पर अपमानजनक हैं:
पतंजलि की खुद की फार्मूलेशन को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया,
डाबर की आयुर्वेदिक परंपरा और प्रामाणिकता पर सवाल उठाए गए,
डाबर के उत्पाद को ‘हीन’ बताकर उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया गया।
डाबर ने यह भी कहा कि च्यवनप्राश एक पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधि है जो ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत विनियमित है और इसके लिए निर्धारित मानकों का पालन करना अनिवार्य है। ऐसे में किसी ब्रांड को ‘साधारण’ कहना न केवल भ्रामक है, बल्कि उपभोक्ता के भरोसे को भी नुकसान पहुंचाता है।
डाबर ने विज्ञापन में अप्रत्यक्ष रूप से अन्य ब्रांड्स को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताने पर भी आपत्ति जताई। कंपनी का कहना है कि इससे उपभोक्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा होती है और यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है।
डाबर ने यह भी तर्क दिया कि पतंजलि पूर्व में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अवमानना आदेशों का उल्लंघन कर चुकी है और यह उसका दोहराया गया व्यवहार है।
इन दलीलों के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को अपने सभी च्यवनप्राश विज्ञापनों को हटाने का आदेश दिया और मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय की है।