दिवालिया कंपनी दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉरपोरेशन के लेनदार संभावित कानूनी संघर्ष के लिए तैयार हो रहे हैं और अपनी कानूनी टीम के साथ इसकी चर्चा कर रहे हैं कि अंतिम नीलामी के लिए कैसे आगे बढ़ा जाए। इस मामले में कंपनी के पूर्व प्रवर्तक कपिल वधावन एनसीएलटी का दरवाजा खटखटाकर लेनदारों से कंपनी के लिए उनकी पेशकश पर विचार करने के लिए कह चुके हैं।
लेनदारोंं ने कहा कि उनका कानूनी बचाव अभिरुचि पत्र जमा कराने से पहले सभी बोलीदाताओं के बीच बांटे गए बोली के नियमों पर निर्भर होगा, जो स्पष्ट कहता है कि बोली के चरण में आवेदक कभी भी अपना प्रस्ताव जमा करा सकते हैं ताकि लेनदारों को अधिकतम रिटर्न मिले। एक बैंंकिंग सूत्र ने कहा, बोली के दस्तावेज में स्पष्ट कहा गया है कि लेनदारों की समिति और प्रशासक अपने स्वविवेक के मुताबिक परिसंपत्ति की अधिकतम वैल्यू के लिए कोई भी कदम उठा सकते हैं। सीओसी ओर प्रशासक को किसी भी समाधान पर विचार करने की आजादी है और ऐसे मामले में अन्य बोलीदाताओं के पास इस पर एतराज का अधिकार नहीं होगा। सूत्र ने कहा, बोली जमा कराकर कोई आवेदक वास्तव में पूरी प्रक्रिया पर एतराज जताने का अधिकार खो देता है। ऐसे में बोली में हार के बाद कुछ बोलीदाता पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं।
अदाणी समूह ने प्रतिस्पर्धी बोलीदाताओं को चौंका दिया था जब उसने डीएचएफएल की पूरी परिसंपत्ति के लिए पेशकश की जबकि पहले दौर में सिर्फ होलसेल ऐसेट के लिए बोली जमा कराई थी। अदाणी समूह ने बैंकों को 31,250 करोड़ रुपये की पेशकश की है जबकि ओकट्री ने 31,000 करोड़ रुपये की पेशकश की थी। चौथी बोलीदाता एससी लॉवी ने होलसेल बुक के लिए बोली लगाई लेकिन उस पेशकश के साथ कई शर्तें थी, जो लेनदारों को पसंद नहीं आई। रिटेल बुक के लिए 25,000 करोड़ रुपये की बोली लगाने वाली पीरामल ने पूरी कंपनी के लिए अदाणी की ऊंची बोली का यह कहते हुए विरोध किया था कि अदाणी ने पहले सिर्फ होलसेल बुक के लिए बोली लगाई थी, न कि पूरी परिसंपत्ति के लिए। ऐसे में इस पेशकश पर ध्यान देने का मतलब नहींं बनता। पीरामल के लिए डीएचएफएल के खुदरा बुक का अधिग्रहण अहम है ताकि होलसेल बुक संतुलित किया जा सके, जो रियल एस्टेट क्षेत्र में मंदंी के कारण कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहा है। सूत्र ने कहा, डीएचएफएल का खुदरा बुक नकदी दे रहा है, जिससे पीरामल को मदद मिल सकती है। कंपनी के खिलाफ 95,000 करोड़ रुपये का दावा करने वाले डीएचएफएल के लेनदार जल्द से जल्द प्रक्रिया पूरी करना चाहते हैं क्योंकि कंपनी के बोर्ड पर आरबीआई के अधिकार करने और प्रशासक नियुक्ति करने के बाद एक साल बीत चुका है। लेनदारों में एसबीआई का कर्ज 10,000 करोड़ रुपये है। जब लेनदारों ने कंपनी या उसकी परिसंपत्तियों के लिए इस साल जनवरी में अभिरुचि पत्र मांगा था तब करीब दो दर्जन कंपनियों ने प्रतिक्रिया जाई थी। लेकिन उनमें से सिर्फ चार ही वित्तीय पेशकश के साथ सामने आई। उन्होंने कहा, कुल मिलाकर मामला परिसंपत्तियों की वैल्यू अधिकतम करने का है। इसी वजह से नीलामी प्रक्रिया शुरू होने से पहले सभी नियम स्पष्ट कर दिए गए। गंवाने वाले पक्षकार के कारण नीलामी की पूरी प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता।
