टाटा समूह और साइरस मिस्त्री के बीच चली लंबी एवं तीखी कानूनी जंग में जीत आखिरकार टाटा समूह के पाले में आई। उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2016 में मिस्त्री को समूह के चेयरमैन पद और बाद में निदेशक मंडल से हटाने के टाटा संस बोर्ड के निर्णय को आज सही ठहराया। साथ ही शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील प्राधिकरण (एनसीएलएटी) का वह आदेश निरस्त कर दिया, जिसमें मिस्त्री को दिसंबर 2019 में टाटा संस के निदेशक मंडल में दोबारा बहाल करने के लिए कहा गया था और मौजूदा चेयरमैन एन चंद्रशेखरन की नियुक्ति को ‘अवैध’ ठहराया गया था।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाले पीठ ने मिस्त्री समूह की वह याचिका भी खारिज कर दी, जिसमें टाटा संस को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में तब्दील करने और उसका मूल्यांकन किए जाने की गुहार लगाई गई थी। अदालत के फैसले के बाद कानून के जानकारों ने कहा कि अब दोनों पक्ष इस बात पर चर्चा शुरू कर सकते हैं कि मिस्त्री किस तरह अपनी 18.5 प्रतिशत हिस्सेदारी टाटा समूह या उसके द्वारा नामित निवेशकों को बेचेंगे और किस मूल्यांकन पर यह सौदा पूरा होगा। अदालती फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने कहा कि वह इस निर्णय की सराहना करते हैं उच्चतम न्यायालय के अभारी हैं। टाटा ने सोशल मीडिया पर लिखी एक टिप्पणी में कहा, ‘यह मामला हार-जीत का नहीं था। मेरे ऊपर और टाटा समूह के संचालन एवं कार्य व्यवहार पर काफी छींटाकशी हुई थी। टाटा संस की अपील पर उच्चतम न्यायालय की मुहर लगने से यह साबित हो गया है कि हमारा समूह मूल्यों एवं सिद्धांतों पर काम करता है और हमारे सभी फैसले इन्हीं से प्रेरित रहते हैं।’ टाटा संस द्वारा जारी बयान में कहा गया कि न्यायालय के आदेश ने उसके रुख को सही ठहराया है और समूह की कार्य पद्धति को भी बेदाग करार दिया है। समूह ने कहा, ‘टाटा संस उच्चतम न्यायालय का आभार व्यक्त करती है। टाटा समूह राष्ट्र के विकास और दीर्घ अवधि को ध्यान में रखते हुए कारोबार विकास के लिए सतत प्रयास करता रहेगा।’
उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान मिस्त्री की हिस्सेदारी का अनुमानित मूल्यांकन मिस्त्री परिवार ने 1.76 लाख करोड़ रुपये किया था। उधर टाटा समूह ने हिस्सेदारी की कीमत केवल 80,000 करोड़ रुपये बताई थी। टाटा समूह की सूचीबद्घ कंपनियों के शेयरों में तेजी के कारण मिस्त्री की हिस्सेदारी की कीमत भी बढ़ गई है।
विधि मामलों के जानकारों ने कहा कि न्यायालय के निर्णय से टाटा संस सहित उन कंपनियों पर भी असर होगा जो निजी नियंत्रण में जाने की योजना बना रहे हैं।
मिस्त्री परिवार ने टाटा संस को निजी क्षेत्र की इकाई बनाने पर आपत्ति जताई थी और उनके अनुसार इससे टाटा संस के शेयरों में तरलता कम हो गई थी।डीएसके लीगल में मैनेजिंग पार्टनर आनंद देसाई कहते हैं, ‘यह बड़ा और चर्चित विवाद रहा है। उच्चतम न्यायालय ने पूरे विवाद के विभिन्न पहलुओं पर गौर करते हुए दोनों पक्षों द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर महत्त्वपूर्ण नजीर गढ़ी है। भारत में कारोबारी घरानों का आकार तेजी से बढ़ रहा है और इस निर्णय का उद्योग जगत में इस तरह के विवाद पर खासा प्रभाव पड़ेगा।’
टाटा ट्रस्ट्स की टाटा संस में 66 प्रतिशत हिस्सेदारी है। 83 साल के रतन टाटा इसके अध्यक्ष हैं और टाटा समूह के सरंक्षक की भूमिका भी निभाते हैं। पिछले कुछ दशकों से टाटा संस में मिस्त्री परिवार की 18.4 प्रतिशत हिस्सेदारी रही है। टाटा के सेवानिवृत्त होने के बाद मिस्त्री को 2012 में टाटा समूह का चेयरमैन बनाया गया था। रतन टाटा के हाथ में टाटा ट्रस्ट्स की कमान रही, जबकि मिस्त्री टाटा संस और अन्य कंपनियों के चेयरमैन के तौर पर समूह की कंपनियों का परिचालन देख रहे थे। लेकिन दोनों में मतभेद हो गए और टाटा संस के निदेशक मंडल ने अक्टूबर 2016 में मिस्त्री को बर्खास्त कर दिया। मिस्त्री ने दावा किया कि टाटा की गलतियों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बर्खास्त किए जाने के बाद मिस्त्री ने टाटा संस और टाटा ट्रस्ट्स के न्यासी को पत्र लिखे जिनमें उन्होंने दावा किया कि टाटा स्टील यूरोप, नैनो परियोजना, टाटा टेलीसर्विसेस, इंडियन होटल्स, जगुआर लैंड रोवर और टाटा पावर की मुंद्रा परियोजना की वजह से टाटा संस को आर्थिक नुकसान पहुंचा है। मिस्त्री ने जुलाई 2017 में एनसीएलटी में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी, जहां निर्णय टाटा समूह के पक्ष में आया। बाद में एनसीएलएटी ने मिस्त्री के पक्ष में निर्णय दिया और उन्हें टाटा ग्रुप के चेयरमैन के तौर पर बहाल करने का आदेश दिया। यह बात अलग है कि मिस्त्री ने अपनी याचिका में चेयरमैन पद पर बहाल किए जाने की अपील नहीं की थी।
एनसीएलएटी के निर्णय को टाटा समूह ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी, जिसके बाद उसने पिछले वर्ष जनवरी में अगले आदेश तक एनसीएलएटी के आदेश पर रोक ला दी। शीर्ष न्यायालय में सुनवाई शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले मिस्त्री परिवार ने टीसीएस सहित समूह की कंपनियों में हिस्सेदारी मिलने पर टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी बेचने की पेशकश की थी। हालांकि टाटा समूह ने यह कहकर मिस्त्री परिवार का प्रस्ताव ठुकरा दिया कि मिस्त्री ने सार्वजनिक मंच पर मामला उठाकर टाटा समूह की छवि को चोट पहुंचाई थी। एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम मेंं टाटा संस ने सितंबर 2017 में खुद को निजी कंपनी में तब्दील करने का निर्णय लिया था।
