कुछ महीने पहले तक प्रबंधन सलाहकारों की बिक्री एक निश्चित पैटर्न पर आगे बढ़ रही थी।
प्रस्तुतिकरण छोटे हुआ करते थे, जिसमें प्रबंधन के शब्दों का भंडार होता था। उस समय मझोली और बड़ी कंपनियों के रूप में ग्राहकों के पास बमुश्किल कोई शब्द होता था।
लेकिन यह सब अब नहीं रहा। प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के प्रबंध निदेशक दीपक कपूर का कहना है, ‘पहले हम समय के 60 प्रतिशत हिस्से में बोलते थे, अब हम 70 प्रतिशत हिस्से में सुनते हैं। अब एक तरह की सलाह देने का समय लद गया है।’
आर्थिक मंदी जो पिछले कुछ महीनों में एक पहाड़ से गिरते हुए बर्फ के गोले की तरह आकार को बडा करती हुई आगे बढ़ रही है, उसने देश के शीर्ष प्रबंधन सलाहकारों के कारोबार का तरीका ही बदल दिया। अब बाजार में विलय एवं अधिग्रहण के मामले में उनकी सलाह लेने वाले कुछ ही लोग बचे हैं।
लेकिन अचानक ही उनकी विशेषज्ञता की जरूरत खर्च का अधिक से अधिक सही इस्तेमाल, कर्मियों की उचित संख्या, कर योजना एवं नकद प्रवाह और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में पड़ने लगी है। बेशक बौखलाए हुए ग्राहक अब अधिक मुंह बनाने लगे हैं और उन्हें अपने पैसे के लिए अधिक सेवाएं भी चाहिए।
कपूर का कहना है कि ग्राहकों को दिए जाने वाले टीमों के प्रस्तुतिकरण ने अधिक व्यस्त कर दिया है।
अर्न्स्ट ऐंड यंग ने वरिष्ठ अधिकारियों को नियुक्त करना शुरू कर दिया है, जिन्हें क्षेत्रों में अधिक विशेषज्ञता हासिल है। अर्न्स्ट ऐंड यंग के कंट्री मैनेजिंग पार्टनर राजीव मेमानी का कहना है, ‘ग्राहकों के साथ बिताने के लिए अब अधिक समय देने की जरूरत है।’
पिछले कुछ वर्षों में ज्यादातर सलाहदाता फर्म 35 प्रतिशत की रफ्तार से विकास कर रही थीं, क्योंकि उनकी विलय और अधिग्रहण की सलाह सेवाओं की मांग काफी अधिक थी।
तब पैसा आसानी से मिल जाता था और भारतीय कारोबारी दुनिया भर में परिसंपत्तियों के अधिग्रहण की दौड़ में शामिल हो रहे थे। तब सलाहकारों की वित्तीय ढांचे और क्या करना चाहिए जैसी सलाह के काफी मायने थे।
अब मुश्किलों से भरे बाजार में भारतीय कंपनियों का ध्यान रातोंरात विकास और शेयरधारकों की हिस्सेदारी से बदलकर एकीकरण पर है। मेमानी का कहना है, ‘हमने पाया है कि कोष प्रबंधन और बाजारों में उतार-चढ़ाव को कैसे संभाला जाए जैसे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।’
कपूर कंपनियों को सलाह देते हैं कि जो आसानी से मिल रहा है, पहले उसे हासिल करें। उनका कहना है, ‘हमारे सलाहकार अब लोगों को बताते हैं कि वे चतुराई के साथ सोचें और कम संसाधनों के साथ ज्यादा काम चलाएं। यह हवा में उड़ने का वक्त नहीं है, यह वक्त है अपनी बुनियाद से जुड़े रहने का।’
ऐसे में सलाहकारों को नया काम भी मिल रहा है। केपीएमजी के मुख्य परिचालन अधिकारी रिचर्ड रेखी का कहना है कि वैश्विक मंदी ने वैश्विक सलाहप्रदाता कारोबार को कम लागत के चलते भारत की ओर मोड़ दिया है।
उनका कहना है, ‘अब कई वैश्विक कंपनियां भारतीय संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहती हैं। इससे विलय एवं अधिग्रहण के कारोबार में किसी भी नुकसान की भरपाई की जा सकेगी।’
विलय एवं अधिग्रहण की सलाह के कारोबार का दूसरा पहलू यह है कि इस पर मार पड़ी है और संसाधनों को दूसरी जगह इस्तेमाल करने की जरूरत है।
रेखी का कहना है, ‘हम कुछ करार कर रहे हैं, लेकिन कोई बहुत बड़े करार नहीं हो रहे। कपूर का कहना है कि विदेशों में परिसंपत्ति खरीद का थोड़ा-बहुत कारोबार अब भी हो रहा है, जबकि देश में विलय एवं अधिग्रहण के मामले लगभग खत्म ही हो गए हैं।
ऐसे में क्या सलाहदाता फर्म अपना स्तर इस वर्ष भी बरकरार रख पाएंगी, इस पर कपूर का कहना है कि पीडब्ल्यूसी मौजूदा वित्त वर्ष में अपने बजट पर खरी उतरेगी। केपीएमजी के रेखी का कहना है कि उनके कारोबार में थोड़ी कमी हो सकती है।
मेमानी ने ये आंकड़े बताने से इनकार कर दिया, जबकि अर्न्स्ट ऐंड यंग में काम करने वाले कुछ सूत्रों का मानना है कि पिछले दो से तीन सालों से विकास में जो तेज रफ्तार बनी हुई थी अब वह मुश्किल दिखाई देती है।