देश के कई मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) का मानना है कि नए साल में भी आर्थिक मंदी से निजात नहीं मिलेगी।
अधिकारियों की राय में तरलता संकट, नकारात्मक माहौल और सुस्त मांग के चलते 2009 में आर्थिक विकास की प्रक्रिया बाधित होगी। दिसंबर के तीसरे और चौथे हफ्ते में बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा विभिन्न कंपनियों के सीईओ के बीच किए गए सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है।
फिलहाल कारोबारियों की उम्मीदें सरकार के अर्थव्यवस्था उत्प्रेरक पैकेज और मुद्रा प्रवाह आसान बनाने की रिजर्व बैंक की कोशिशों पर ही टिकी हैं।
सर्वेक्षण में देश के चौथाई से भी कम मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को वर्ष 2009 में पूंजी बाजार के हालात सुधरने का अनुमान है। हालांकि, ज्यादातर सीईओ का मानना है कि अगले छह महीने में रुपये में मजबूती आएगी।
बहरहाल, तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद कइयों ने तो नए निवेश और कर्मचारियों की नियुक्ति की योजना भी बनाई है। इस सर्वेक्षण में 62 कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को शामिल किया गया।
अध्ययन में देश भर के तमाम क्षेत्रों जैसे धातु और खनन, सूचना तकनीक, एफएमसीजी, फार्मास्यूटिकल्स, ऊर्जा, विमानन, मनोरंजन, इलेक्ट्रॉनिक्स, वित्तीय सेवाएं और रिटेल की कंपनियों को शामिल किया गया।
सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि कंपनियों की हालत इस समय बहुत ही खस्ता है। तरलता घटने और वैश्विक आर्थिक मंदी को देखते हुए करीब 30 फीसदी मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की नजर में 2008 की तुलना में 2009 ज्यादा खराब बीतेगा।
केवल 25 फीसदी सीईओ की राय रही कि 2009 में अर्थव्यवस्था की हालत सुधरेगी। वहीं 20 फीसदी अधिकारियों ने माना कि यह साल 2008 जैसा ही बीतने वाला है। एबीबी इंडिया के प्रबंध निदेशक बिप्लब मजूमदार के मुताबिक, ”कोई नहीं जानता कि आगे क्या होगा।”
ऐसा नहीं कि मजूमदार अकेले ऐसे सीईओ हैं। करीब 15 फीसदी सीईओ ने बताया कि मौजूदा परिस्थितियों में कैसे और क्या कदम उठाए जाएं, समझ में नहीं आता। 80 फीसदी सीईओ ने राय दी कि मौजूदा संकट से कारोबारी माहौल ही खत्म होने का अंदेशा है।
अध्ययन से यह बात भी सामने आई कि कंपनियां अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार का इंतजार नहीं करना चाहती। बल्कि इसके लिए उन्होंने सरकार की ओर उम्मीद भरी निगाहें लगा रखी हैं। इतना ही नहीं, बाजार को गतिशील करने के लिए रिजर्व बैंक से भी इनकी उम्मीदें हैं।
गौरतलब है कि संकट से जूझने के लिए केंद्र सरकार पहले ही एक राहत पैकेज का ऐलान कर चुकी है। इसके तहत जहां निर्यात बाध्यताओं में ढील दी गई, वहीं केंद्रीय उत्पाद कर में चार फीसदी की कटौती और होम लोन सस्ता करने जैसे उपाय किए गए। अब तो सरकार दूसरा राहत पैकेज भी घोषित करने जा रही है।
रेलीगेयर इंटरप्राइजेज के सीईओ और प्रबंध निदेशक सुनील गोधवानी के अनुसार, ”विकास प्रक्रिया को गति देने के लिए सिर्फ मौद्रिक उपाय करना काफी नहीं है। हमें समस्या की तह में जाना होगा जो कि बुनियादी ढांचे का अभाव है।” ज्यादातर सीईओ का अनुमान है कि अगले छह महीनों में डॉलर की तुलना में रुपये में मजूबती आएगी।
कच्चे तेल की कीमतों में अभी और कमी की संभावना है। इस वजह से डॉलर की मांग में गिरावट होने का आकलन है। नौकरियों पर मंडरा रहे ताजा संकट के बावजूद 7 फीसदी अधिकारियों ने नौकरियों में कमी को रेखांकित किया।
घोषित सरकारी राहत मौजूदा संकट से निपटने में नाकाफी साबित हो सकता है।
आर. एस. शर्मा,
चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, ओएनजीसी
बाजार की गतिविधियां सुस्त रहेंगी। सक्रियता के लिहाज से बॉन्डों का प्रदर्शन बेहतर रहेगा।
राशीश शाह,
अध्यक्ष, एडेलवाइस
सरकार को बड़ी आधारभूत परियोजनाओं में 2-3 हजार करोड़ रुपये का निवेश करना चाहिए।
सज्जन जिंदल,
प्रबंध निदेशक, जेएसडब्ल्यू स्टील