वाहन उद्योग में आ रही तेजी को भुनाने के लिए टायर कंपनियों ने भी कमर कस ली है।
देश की तीसरी सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी अपोलो टायर्स ने भी बढ़ती मांग को देखते हुए अपनी उत्पादन क्षमता में इजाफा करने का फैसला किया है। कंपनी इस साल उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर लगभग 1,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।
क्षमता में अहम इजाफा
कंपनी के कॉर्पोरेट रणनीति और मार्केटिंग प्रमुख सुनाम सरकार ने फोन पर बातचीत में बताया कि कंपनी की उत्पादन क्षमता फिलहाल 850 टन रोजाना है। लेकिन भारी भरकम निवेश के जरिये इसमें 10 फीसद का विस्तार किया जाएगा।
सरकार ने बताया कि अपोलो के टायरों की 78 फीसद बिक्री पुराने वाहनों में ही होती है। उनके मुताबिक घिसे हुए टायरों को बदलने के मामले में ही उनकी ज्यादा बिक्री होती है। पिछले 6 साल में देश में यात्री कारों की मांग काफी बढ़ गई है। अंतरराष्ट्रीय दिग्गज जनरल मोटर्स कॉर्पोरेशन, निसान मोटर कंपनी और दूसरी कंपनियां भारत में अपने संयंत्र लगाने में लगभग 24,000 करोड़ रुपये का निवेश कर रही हैं। इस वजह से टायर कंपनियों को भी इसमें जबर्दस्त संभावनाएं नजर आ रही हैं।
पुराने टायरों पर भरोसा
सरकार ने कहा, ‘पिछले 4-5 साल में वाहन बाजार में आई रफ्तार का हमें काफी फायदा हुआ है। उस दौरान पुराने टायरों को बदले जाने की दर काफी बढ़ी है।’ इसी वजह से कंपनी को चालू वित्त वर्ष में बिक्री में 16 फीसद के इजाफे की उम्मीद है।
निवेश के लिए रकम का बंदोबस्त किए जाने के सवाल पर सरकार ने बताया कि कंपनी आंतरिक संसाधनों के जरिये ज्यादातर रकम जुटाएगी। बाकी रकम ऋण के जरिये इकट्ठा की जाएगी।
विस्तार योजना में गुजरात और केरल के संयंत्रों में उत्पादन क्षमता बढ़ाना शामिल है क्योंकि कंपनी को इस साल बिक्री में अच्छे खासे इजाफे की उम्मीद है। इसके अलावा वह चेन्नई और हंगरी में नए टायर संयंत्र भी लगाने जा रही है। हंगरी में कंपनी आने वाले कुछ साल में लगभग 1,200 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। इससे कपंनी को यूरोपीय संघ के बाजार में बढ़त मिलने की उम्मीद है। चेन्नई के संयंत्र को लेकर भी कंपनी की योजना तैयार है। उसमें अगले 3 साल में 800 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा।
बाजार तो गरम
टायर बाजार के जानकारों का कहना है कि यदि नए टायरों की मांग में कुछ कमी भी आती है, तो टायर कंपनियों को चिंता नहीं होगी क्योंकि पुराने टायरों को बदलने की दर तो हर हाल में बढ़नी है।
रबर के दाम से चिंता
प्राकृतिक रबर के दामों पर भी कंपनी की निगाह है। सरकार ने बताया कि यदि प्राकृतिक रबर की कीमत में इजाफा नहीं होता है, तो कंपनी का मुनाफा बरकरार रहेगा। दरअसल टायर की कीमत में 70 फीसद हिस्सेदारी कच्चे माल की होती है। प्राकृतिक रबर की कीमत में इस साल 27 फीसद का इजाफा हुआ है। यदि उसकी रफ्तार बनी रहती है, तो टायर कंपनियों के बहीखाते बिगड़ सकते हैं। अपोलो इसके बारे में भी तैयारी कर रही है।